हल्द्वानी: देश की राजनीति में नारायण दत्त तिवारी (ND tiwari) का बहुत बड़ा कद रहा है. एनडी तिवारी तीन बार यूपी और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही आंध्र प्रदेश के राज्यपाल और केंद्र में मंत्री की जिम्मेदारी निभाने वाले एक मात्र कांग्रेस के दिग्गज नेता है. वहीं, चुनाव नजदीक आते ही भाजपा और कांग्रेस उनके नाम को अब चुनाव में भुनाने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके अलावा उनके उत्तराधिकारी को लेकर भी सिसायत तेज हो गई है. उनकी राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा? इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है.
एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर तिवारी अब इस दुनिया में नहीं है. वहीं, उनकी पत्नी उज्वला शर्मा का राजनीति से अब नाता भी नहीं रहा है. ऐसे में सवाल यही है कि उनकी राजनीकि विरासत (political legacy) को आगे कौन बढ़ाएंगा? जानकारों की मानें तो वर्तमान समय में स्वर्गीय एनडी तिवारी के राजनीतिक विरासत को उनके ममेरे नाती दीपक बलुटिया आगे बढ़ा सकते हैं, जो इन दिनों हल्द्वानी के राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हैं और कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता भी हैं. बलुटिया हल्द्वानी से आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से दावेदारी भी कर चुके हैं.
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दीपक बलुटिया से उम्मीद: स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के ममेरे नाती दीपक बलुटिया का कहना है कि एनडी तिवारी का देश की राजनीति में बड़ा कद और नाम रहा है. उत्तराखंड में उनके द्वारा किए गए कामों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. रही बात राजनीतिक विरासत संभालने की तो जो भी एनडी तिवारी के पद चिन्हों पर चलेगा, वो उनकी राजनीतिक विरासत को संभाल सकता है. पंडित नारायण दत्त तिवारी ने राजनीति (nd tiwari politics) में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देश की सेवा की.
दीपक बलुटिया का कहना है कि पंडित नारायण दत्त तिवारी से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है और वर्तमान समय में वे उनके पद चिन्हों पर चलने का काम कर रहे हैं और उनके अधूरे सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं.
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बेटे रोहित को नहीं दिला पाए थे टिकट: राजनीतिक विशेषज्ञ गणेश पाठक का कहना है कि स्वर्गीय एनडी तिवारी के विरासत को उनके पुत्र रोहित शेखर तिवारी संभालने के योग्य हो गए थे, लेकिन 2017 के चुनाव में उनको टिकट नहीं मिला, जिसके चलते हुए चुनाव नहीं लड़ पाए. अब वे दुनिया में ही नहीं हैं. जबकि एनडी तिवारी अपने भतीजे मनीष तिवारी को 2012 में गदरपुर से टिकट दिलवाया, लेकिन उनको वहां से हार का मुंह देखना पड़ा.
गणेश पाठक ने बताया कि 2017 में एनडी तिवारी ने अपने पुत्र रोहित शेखर को लालकुआं और हल्द्वानी से चुनाव लड़ाने और टिकट दिलाने की कोशिश बहुत की, लेकिन स्वास्थ्य सही नहीं होने के कारण वे ज्यादा भागदौड़ नहीं कर पाए और इसी वजह से रोहित को टिकट नहीं मिल पाया.
कांग्रेस और बीजेपी को याद आए तिवारी: गणेश पाठक का मानना है कि उम्र बढ़ने के साथ एनडी तिवारी का राजनीतिक कद घटता गया. अब एक बार फिर से कांग्रेस और बीजेपी को एनडी तिवारी की याद आने लगी है. प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रुद्रपुर सिडकुल का नाम एनडी तिवारी के नाम पर रख दिया है तो वहीं, कांग्रेस भी एनडी तिवारी के नाम पर अपने वोट बैंक तैयार करने में जुट गई है.
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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एनडी तिवारी के पैतृक आवास पदमपुरी गांव से पदयात्रा शुरू निकाली थी और उनके परिवार के लोगों को सम्मानित भी किया था. चुनाव नजदीक आते ही स्वर्गीय एनडी तिवारी का नाम चर्चाओं में आना शुरू हो गया है. वहीं, उनके राजनीति विरासत पर भी चर्चा तेज हो गई है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो वर्तमान समय में ऐसा कोई भी पारिवारिक सदस्य या करीबी रिश्तेदार नहीं है जो एनडी तिवारी के राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा सकता है, लेकिन एनडी तिवारी के ममेरे नाती हल्द्वानी निवासी दीपक बलुटिया उनके विरासत को बढ़ाने की काबिलियत रखते हैं. आगामी विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी भी कर चुके हैं. ऐसे में दीपक बलुटिया को टिकट मिलता है तो संभवत: एनडी तिवारी के राजनीतिक विरासत को वो आगे बढ़ा सकते हैं.