रामनगर: विश्व प्रसिद्ध शिकारी एडवर्ड जेम्स 'जिम' कॉर्बेट ने 33 नरभक्षी बाघों और तेंदुए को मारकर उत्तराखंड के लोगों को उनके आतंक से निजात दिलाई थी. खास बात ये थी कि इन आदमखोर शिकारी जानवरों को मारने के बाद जिम कॉर्बेट वन्यजीव संरक्षण का सबसे बड़ा उदाहरण बने थे. जिम कॉर्बेट के पास दो कुत्ते थे, जिनका नाम रोबिन और रोसीना था. जिम को दोनों कुत्तों से काफी प्रेम था. यही वजह थी कि उन्होंने अपने कुत्तों की समाधि भी बनाई थी.
₹15 में खरीदा था रोबिन, जिम कॉर्बेट की बचाई थी जान: जिम कॉर्बेट के दोनों कुत्ते रोबिन और रोसीना उनके साथ शिकार पर जाते थे. दोनों ही काफी वफादार थे. रोबिन ने दो बार जिम कॉर्बेट की जान बचाई थी. जिम ने अपनी किताब 'मैन इटर्स ऑफ कुमाऊं' में रोबिन का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि 'रोबिन ने मेरी कई बार बाघ, तेंदुआ, भालू से जान बचाई. रोबिन को जिम कॉर्बेट ने भवाली से ₹15 में खरीदा था. जब कुत्तों की मौत हुई तो उन्होंने उनकी समाधि छोटी हल्द्वानी में बनाई थी. जो आज भी मौजूद है. जिसे देखने के लिए पर्यटक देश विदेश से पहुंचते हैं.
ये भी पढ़ेंः जिम कॉर्बेट की बंदूक को जल्द मिलने जा रहा नया वारिस, सैलानी भी कर सकेंगे दीदार
छोटी हल्द्वानी (कालाढूंगी) में स्थित जिम की धरोहर यानी म्यूजियम को देखने के लिए दूर-दूर लोग आते हैं. नेचर गाइड पूरन कहते हैं कि जिम कॉर्बेट को कुत्तों से काफी प्रेम था. जब भी जिम आदमखोर बाघ या गुलदार को मारने जाते तो रोबिन भी उनके साथ रहता था. पूरन कहते हैं कि रोबिन की सूंघने की पावर बहुत ज्यादा थी. इसीलिए वो हमेशा जिम के साथ रहता था.
पहले शिकारी थे, फिर बने वन्यजीव संरक्षक: बता दें कि जिम कॉर्बेट ने जीव जंतुओं और जैव विविधता के महत्व पर जागरूकता पैदा करने के लिए बड़ा योगदान दिया था. उन्हें उत्तराखंड के लोगों को आदमखोर जानवरों से बचाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने 33 आदमखोर शिकारी जानवरों को मारा था. जिसके बाद सबसे महान वन्यजीव संरक्षकों में से एक बन गए.
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का इतिहास: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की स्थापना साल 1936 में की गई थी. मूल रूप से इसका नाम हैली नेशनल पार्क था. कॉर्बेट पार्क के इतिहास पर गौर करें तो साल 1800 तक यह क्षेत्र टिहरी के नरेश की निजी संपत्ति था. गोरखाओं के आक्रमण के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने टिहरी नरेश की मदद की. जिसकी एवज में यह क्षेत्र टिहरी नरेश ने अंग्रेजों को सौंप दिया गया. साल 1934 में तत्कालीन गवर्नर सर विलियम हैली ने इस क्षेत्र को वन्य जीवों के लिए संरक्षित जाने की वकालत की थी.
ये भी पढ़ेंः जिम कॉर्बेट ने 33 नरभक्षी बाघों-तेंदुओं का किया था शिकार, फिर बने पालनहार
वहीं, महान शिकारी और वन्यजीवों के संरक्षण कर्ता बने जिम एडवर्ड कॉर्बेट को इसकी सीमाओं का निर्धारण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. 8 अगस्त 1936 को यूनाइटेड प्रोविंस नेशनल पार्क एक्ट के तहत यह हैली नेशनल पार्क के रूप में भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान बना. उसके बाद इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया. इसी बीच साल 1955 में जिम एडवर्ड कार्बेट का निधन हो गया. इसके बाद साल 1956 में उनकी याद में इस पार्क का नाम रामगंगा नेशनल पार्क से बदल कर 'जिम कार्बेट नेशनल पार्क' रख दिया गया.