हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के लिए भी जाना जाता है. उत्तराखंड का तेजपत्ता अब कई प्रदेशों में अपनी खास पहचान बना रहा है. यहां का तेजपत्ता अन्य प्रदेशों के तेजपत्तों की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और पोष्टिक है. जिसके चलते यहां के तेज पत्ते की लगातार डिमांड बढ़ रही है. वर्तमान में प्रदेश के करीब 5000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तेजपत्ते की खेती की जा रही है, जिससे करीब 9000 से अधिक काश्तकार तेजपत्ते की खेती से जुड़े हुए हैं. जबकि उत्पादन की बात करें तो सालाना करीब 15,000 टन से अधिक तेजपत्ते का उत्पादन किया जा रहा है.
उत्तराखंड का तेजपात राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में मीठा तेजपात के नाम से जाना जाता है. यहां के तेजपत्ता की खुशबू का हर कोई मुरीद है. ऐसे में अब उत्तराखंड का तेजपत्ता का बाजार धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है, जिसका उपयोग मसाला के साथ-साथ आयुर्वेदिक एवं चिकित्सा पद्धतियों में किया जा रहा है. वर्तमान में तेजपत्ता के मूल्य काश्तकारों को ₹45 से ₹50 प्रति किलो मिल रहा है. ऐसे में किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा है. उत्तराखंड के तेजपत्ते का नैनीताल जनपद के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र के अलावा अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत के पर्वतीय क्षेत्रों मे खूब उत्पादन किया जा रहा है, जबकि यहां के काश्तकार अपने अपने तेजपत्ते को काठगोदाम, रामनगर और टनकपुर के मंडियों में लाकर बेच रहे हैं.
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हल्द्वानी के तेजपत्ता कारोबारी महेश कुमार अग्रवाल के मुताबिक उत्तराखंड की तेजपत्ता अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर हैं. वहीं, अन्य प्रदेशों की तेजपत्ता की क्वालिटी बेहतर नहीं होने के चलते उत्तराखंड की तेजपते की डिमांड लगातार बढ़ रही है. ऐसे में यहां के काश्तकार तेजपत्ते की खेती कर अपने आमदनी में इजाफा कर रहे हैं. साथ ही तेजपत्ते के कारोबार से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.