हल्द्वानी: देवभूमि की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है. जिस विरासत को देखने लोग खिचे चले आते हैं. कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में ऐपण कला लोगों की जीवनशैली में रचा और बसा हुआ है. ऐपण कला के बिना हर तीज और त्योहार अधूरा सा लगता है. जिसे लोगों द्वारा सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है. जिसको बनाने में पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं में महारत हासिल है. साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाएं मोमबत्तियों बनाने में भी अपना जौहर दिखा रही है. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती जा रही है.
गौर हो कि, समय के साथ बाजार के मिलावटी रंगों का प्रचलन शुरू हो गया है, लेकिन उत्तराखंड की ये परंपरा आज भी जीवंत है. देवभूमि में ऐपण का जो रूप सालों पहले था. वहीं रूप आज भी है बल्कि यूं कह सकते हैं कि समय के साथ-साथ यह और भी समृद्ध हो चला है. कुमाऊं की गौरवशाली परंपरा की पहचान बन चुकी ऐपण उत्तराखंड के हर घर की दहलीज में अपनी जहग बना लेता है. हल्द्वानी में गीता सत्यावली संस्था से जुड़ी महिलाओं ने देवभूमि की इस परंपरा को बढ़ावा देने का काम किया है. यह संस्था तरह-तरह की ऐपण बनाकर लोगों को इस परंपरा से जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं. यही नहीं इस बार ये ऐपण के साथ ही रंगबिरंगी मोमबत्तियां बनाकर लोगों का मनमोह लेने का काम कर रही है.
बाजारों में तरह-तरह की मोमबत्तियां दिखाई देंगी, लेकिन इसमें से अधिकतर मोमबत्तियां प्रदूषण युक्त और खराब क्वालिटी की होती हैं, लेकिन हल्द्वानी की महिलाएं सुपर बाइट मोमबत्ती तैयार कर रही हैं. ये मोमबत्तियां प्रदूषण मुक्त हैं. इन महिलाओं का कहना है कि संस्था सभी को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए ट्रेनिंग दिया जा रहा है. अभी तक ये करीब 6000 महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई के साथ-साथ मोमबत्ती, ऐपण, सहित उत्तराखंड की कई परंपरिक उत्पादों पर ट्रेनिग दे चुका है.
महिलाओं का कहना है कि ट्रेनिंग के बाद वे लोग अपना स्वरोजगार अपना रही हैं. दीपावली का समय है ऐसे में इन दिनों वह लोग मोमबत्ती के साथ-साथ ऐपण भी तैयार कर रही हैं. उन्होंने बताया कि इस संस्था की मदद से उनको अपने घरेलू काम के साथ-साथ पार्ट टाइम कार्य करने के बाद आमदनी में भी इजाफा होता है.