नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नंधौर इको सेंसिटिव वन क्षेत्र में राज्य सरकार ने बाढ़ राहत योजना के तहत खनन की अनुमित देने के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मामलों को निस्तारित करते हुए सरकार को आदेश दिए हैं कि बाढ़ राहत कार्य के तहत नदी से निकलने वाले खनन को वहीं निस्तारित किया जाए और उसकी क्रशिंग नहीं होनी चाहिए.
खंडपीठ ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिए है कि नदी की ड्रेजिंग सरकारी एजेंसियों से ही कराया जाए, प्राइवेट कंपनियों से नहीं. आज 14 फरवरी को मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की खंडपीठ में हुई.
पढ़ें- Tanakpur Taxi Stand Case: हाईकोर्ट ने टैक्सी संचालकों से तीन हफ्ते में मांगा जवाब
मामले के अनुसार चोरगलिया निवासी दिनेश कुमार चंदोला एवं अन्य ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कहा है कि हल्द्वानी के नंधौर क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन में आता में है. इस क्षेत्र में सरकार ने बाढ़ से बचाव के कार्यक्रम के नाम पर माइनिंग करने की अनुमति प्राइवेट कंपनियों को दे रखी है. इसका फायदा उठाते हुए कंपनी मानकों के विपरीत जाकर खनन कर रही है.
इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट को बताया कि प्राइवेट कंपनियां एकत्र मैटेरियल को क्रशर के लिए ले जाया जा रही है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. जनहित याचिका में कहा गया कि इको सेंसिटिव जोन में खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती हैं, क्योंकि यह पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड एवं इको सेंसिटिव जोन के नियमावली के विरुद्ध है और इस पर रोक लगाई जाए. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है.