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उत्तराखंडी सेब उत्पादकों को नहीं मिल रहे उचित दाम, 10 साल पुराने रेट पर बेचने को मजबूर - उत्तराखंड की सेब की बाहरी राज्यों में मांग

देशभर में सभी चीजों के दाम हर दिन बढ़ते ही जा रहे हैं. लोग महंगाई से परेशान हैं, लेकिन उत्तराखंड के काश्तकार सेब के दाम नहीं बढ़ने से परेशान हैं. इसकी मुख्य वजह है कि हिमाचल सहित अन्य राज्यों के सेब उत्तराखंड की मंडी में पहुंच रहे हैं. ये सेब उत्तराखंड के सेब के मुकाबले ज्यादा अच्छी क्वालिटी के हैं. जिससे पहाड़ के किसान 10 साल पुरानी कीमत में सेब बेचने को मजबूर हैं.

Uttarakhand Apple growers
उत्तराखंडी सेब उत्पादक
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Published : Jul 8, 2022, 5:13 PM IST

Updated : Jul 8, 2022, 6:43 PM IST

हल्द्वानी: देश में लगातार महंगाई बढ़ रही है. उसका असर देवभूमि में भी पड़ रहा है. लगातार घरेलू उत्पादों के दाम भी बढ़ रहे हैं, लेकिन कुमाऊं की फल पट्टी क्षेत्र के नाम से विकसित रामगढ़ विकासखंड में सेब की खेती करने वाले किसानों को आज भी अपने फलों के उचित दामों नहीं मिल रहे हैं. जिसके चलते पहाड़ के काश्तकार परेशान हैं.

दरअसल, इस महंगाई के दौर में पिछले 10 सालों से पहाड़ के सेब के दाम बढ़ने के बजाय कम हो गए हैं. सेब की पैदावार करने वाले किसानों का कहना है कि पिछले 10 सालों से उनको मंडी में वही दाम मिल रहे हैं, जो पहले से मिला करते थे. जबकि महंगाई में किसान बेहतर दाम मिलने की उम्मीद लगाए हुए थे.

उत्तराखंडी सेब उत्पादकों को नहीं मिल रहे उचित दाम.

कुमाऊं मंडल के नैनीताल जनपद के कई क्षेत्रों में भारी तादाद में किसान सेब की खेती करते हैं. मंडी में अपनी फसल बेचने आने वाले रामगढ़ के काश्तकारों का कहना है कि 10 साल पहले जिस सेब की पेटी की कीमत करीब 400₹ हुआ करती थी. आज 10 साल बाद वो बढ़ने के बजाय और कम हो गयी है. अब वही सेब की पेटी करीब 350 रुपए में मंडी में बेची जाती है.

ये भी पढ़ें: टिहरी विस्थापित क्षेत्रों में हाथी का आतंक, कई घरों की दीवार तोड़ी

यही वजह है कि सेब काश्तकार फल पट्टी के नाम से मशहूर रामगढ़ क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं. इसके पीछे किसान सरकारों का भी दोष मानते हैं. क्योंकि सरकार ने सभी किसानों को बेहतर प्रजाति के सेब के पौधे और नई किस्म की फसल की पैदावार का न तो प्रशिक्षण दिया, न ही पौध उपलब्ध कराई. यही वजह है कि जो पुराना काश्तकार है, आज हाशिए पर आने लगा है.

कुमाऊं की सबसे बड़ी हल्द्वानी मंडी से सेब का बड़ा कारोबार होता था. किसानों से सेब खरीदने वाले कारोबारियों का कहना है कि हिमाचल सहित अन्य राज्यों से सेब यहां पहुंच रहे हैं. उनकी क्वालिटी भी बेहतर है. यही वजह है कि उत्तराखंड के सेब की खरीद कम हुई है. जिससे सेब काश्तकारों को दाम भी कम मिल रहे हैं. क्योंकि बाहरी राज्यों से भी सेब की पैदावार यहां मंडी में आ रही है.

पहले उत्तराखंड के सेब की बाहरी राज्यों में भी मांग थी, लेकिन धीरे-धीरे यह कम हो गई. अन्य राज्यों के सेब की गुणवत्ता अच्छी होने की वजह से उत्तराखंड का सेब न सिर्फ कम बिकने लगा, बल्कि उत्तराखंड के बाजारों में भी बाहरी राज्यों का सेब आ रहा है. किसानों का कहना है कि इसके लिए राज्य सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं.

सेब कारोबारियों की मानें तो पहाड़ का सेब इस समय ₹40 प्रति किलो मिल रहा है. हिमाचल सहित अन्य राज्यों के सेब भी इसी कीमत पर मंडियों में मिल रहे हैं, जो उत्तराखंड के सेब की क्वालिटी से बेहतर हैं. यही कारण है कि उत्तराखंड के सेब की डिमांड अन्य मंडियों से नहीं आ रही है.

हल्द्वानी: देश में लगातार महंगाई बढ़ रही है. उसका असर देवभूमि में भी पड़ रहा है. लगातार घरेलू उत्पादों के दाम भी बढ़ रहे हैं, लेकिन कुमाऊं की फल पट्टी क्षेत्र के नाम से विकसित रामगढ़ विकासखंड में सेब की खेती करने वाले किसानों को आज भी अपने फलों के उचित दामों नहीं मिल रहे हैं. जिसके चलते पहाड़ के काश्तकार परेशान हैं.

दरअसल, इस महंगाई के दौर में पिछले 10 सालों से पहाड़ के सेब के दाम बढ़ने के बजाय कम हो गए हैं. सेब की पैदावार करने वाले किसानों का कहना है कि पिछले 10 सालों से उनको मंडी में वही दाम मिल रहे हैं, जो पहले से मिला करते थे. जबकि महंगाई में किसान बेहतर दाम मिलने की उम्मीद लगाए हुए थे.

उत्तराखंडी सेब उत्पादकों को नहीं मिल रहे उचित दाम.

कुमाऊं मंडल के नैनीताल जनपद के कई क्षेत्रों में भारी तादाद में किसान सेब की खेती करते हैं. मंडी में अपनी फसल बेचने आने वाले रामगढ़ के काश्तकारों का कहना है कि 10 साल पहले जिस सेब की पेटी की कीमत करीब 400₹ हुआ करती थी. आज 10 साल बाद वो बढ़ने के बजाय और कम हो गयी है. अब वही सेब की पेटी करीब 350 रुपए में मंडी में बेची जाती है.

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यही वजह है कि सेब काश्तकार फल पट्टी के नाम से मशहूर रामगढ़ क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं. इसके पीछे किसान सरकारों का भी दोष मानते हैं. क्योंकि सरकार ने सभी किसानों को बेहतर प्रजाति के सेब के पौधे और नई किस्म की फसल की पैदावार का न तो प्रशिक्षण दिया, न ही पौध उपलब्ध कराई. यही वजह है कि जो पुराना काश्तकार है, आज हाशिए पर आने लगा है.

कुमाऊं की सबसे बड़ी हल्द्वानी मंडी से सेब का बड़ा कारोबार होता था. किसानों से सेब खरीदने वाले कारोबारियों का कहना है कि हिमाचल सहित अन्य राज्यों से सेब यहां पहुंच रहे हैं. उनकी क्वालिटी भी बेहतर है. यही वजह है कि उत्तराखंड के सेब की खरीद कम हुई है. जिससे सेब काश्तकारों को दाम भी कम मिल रहे हैं. क्योंकि बाहरी राज्यों से भी सेब की पैदावार यहां मंडी में आ रही है.

पहले उत्तराखंड के सेब की बाहरी राज्यों में भी मांग थी, लेकिन धीरे-धीरे यह कम हो गई. अन्य राज्यों के सेब की गुणवत्ता अच्छी होने की वजह से उत्तराखंड का सेब न सिर्फ कम बिकने लगा, बल्कि उत्तराखंड के बाजारों में भी बाहरी राज्यों का सेब आ रहा है. किसानों का कहना है कि इसके लिए राज्य सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं.

सेब कारोबारियों की मानें तो पहाड़ का सेब इस समय ₹40 प्रति किलो मिल रहा है. हिमाचल सहित अन्य राज्यों के सेब भी इसी कीमत पर मंडियों में मिल रहे हैं, जो उत्तराखंड के सेब की क्वालिटी से बेहतर हैं. यही कारण है कि उत्तराखंड के सेब की डिमांड अन्य मंडियों से नहीं आ रही है.

Last Updated : Jul 8, 2022, 6:43 PM IST
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