रामनगरः उत्तराखंड की ऐपण कला अपने आप में खास है. दीपावली का त्योहार हो या अन्य कोई शुभ या मांगलिक काम, ऐपण घर में जरूर बनाई जाती है, लेकिन आधुनिकता की मार के चलते यह कला अब धीरे धीरे विलुप्त होने की कगार पर है. हालांकि, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस कला को सहेजने का काम कर रहे हैं. जिनमें रामनगर की रंजना नेगी भी शामिल हैं, जो न केवल कुमाऊंनी ऐपण कला की विधा आगे ले जाने का काम कर रही हैं. बल्कि, स्वरोजगार से भी जुड़ गई हैं.
उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में महिलाएं ऐपण कला को आय का जरिया बना रही हैं. रामनगर की ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती को तो सभी जानते ही हैं, लेकिन उसके अलावा कई महिलाएं ऐसे हैं, जो इस कला के जरिए स्वरोजगार से जुड़ी हैं. रामनगर की गृहणी रंजना नेगी भी पूजा की थाली, कलश, दीये, करवा चौथ की थाली, भगवान की चौकियों आदि में ऐपण उकेरने का काम कर रही हैं. रंजना खासकर करवाचौथ और दीपावली को देखते हुए बेहद खूबसूरत ऐपण बना रही हैं. इतना ही नहीं रंजना को ऑर्डर भी मिलने लगे हैं. जिससे उनकी कुछ आमदनी भी हो जाती है.
रंजना नेगी कहती हैं कि वो अपनी संस्कृति का संरक्षण कर रही हैं. अपनी संस्कृति नई पीढ़ी भूलती जा रही है. उन्हें इस कला से रूबरू करवाने के लिए वो आगे आईं हैं. रंजना बताती हैं कि उनके बनाए ऐपण लोगों को भा रहे हैं. उनके पास कई ऑर्डर उत्तराखंड के साथ ही बाहर से भी आ रहे हैं. इसमें उनका परिवार पूरा साथ दे रहा है. वहीं, रंजना की सास भवानी देवी कहती हैं कि उन्हें अपनी बहू पर गर्व है कि वो अपनी संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रही हैं. अगर किसी में हुनर है तो उसे छुपाना नहीं, बल्कि उसे आगे बढ़ाना चाहिए.
बता दें कि कुमाऊं में शुभ कार्यों जैसे मंगल कार्य, देवपूजन, त्योहार आदि मौकों पर घरों में ऐपण बनाने की परंपरा है. जो काफी शुभ माने जाते हैं. आज भी पहाड़ों में कई जगह ऐपण बनाए जाते हैं. ऐपण को चावल, गेरू, प्राकृतिक लाल मिट्टी, रंगों आदि से बनाया जाता है. हालांकि, बदलते दौर में ऐपण कला को लोग भूलते जा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग अभी भी इस कला को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.