हल्द्वानी: कृषि विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में हर साल कृषि भूमि घट रही है. उत्तराखंड राज्य गठन के दौरान वर्ष 2000-01 में प्रदेश में 769,944 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि थी. ये भूमि घटकर वर्ष 2022-23 में 568,488 हेक्टेयर रह गई है. आंकड़ों की बात करें तो पिछले 5 सालों में कृषि भूमि का सबसे ज्यादा व्यवसायीकरण हुआ है.
उत्तराखंड में घटी कृषि भूमि: वर्ष 2015-16 में 698,413 हेक्टेयर, 2016-17 में 690,562 हेक्टेयर, 2017-18 में 672,530 हेक्टेयर, 2018-19 में 647,788 हेक्टेयर, 2019-20 में 637,978 हेक्टेयर, 2020-21 में 620,629 हेक्टेयर, 2021-22 में 593,686 हेक्टेयर कृषि भूमि थी. 2022-23 में 568,488 हेक्टेयर कृषि भूमि ही रह गई है. लगातार कम हो रही कृषि भूमि इस बात को दर्शाती है कि उत्तराखंड में अनियोजित विकास कहीं ना कहीं सरकार और सिस्टम पर भी सवाल खड़े कर रहा है. पहाड़ हो या मैदान हर जगह कंक्रीट के जंगल देखे जा रहे हैं. पहाड़ों पर हो रहे अनियोजित विकास उत्तराखंड की सुंदरता को खत्म करने के साथ-साथ आपदा के भी कारण बन रहे हैं. उत्तराखंड प्रदेश के सामाजिक, आर्थिक ढांचे में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है. प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका कृषि और पशुपालन पर निर्भर है.
कृषि भूमि घटी, उत्पादन बढ़ा: सहायक निदेशक कृषि विभाग कुमाऊं मंडल प्रदीप कुमार सिंह का कहना है कि प्रदेश में कृषि भूमि का क्षेत्रफल कम हुआ है, लेकिन उत्पादकता में वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि लगातार औद्योगिकीरण, शहरीकरण और पलायन ने कहीं न कहीं कृषि भूमि को काम किया है. लेकिन उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. जिसके तहत किसान फसलों को बेहतर कर अच्छा उत्पादन कर रहे हैं. कृषि विभाग द्वारा किसानों को वैज्ञानिक पद्धति से कृषि करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिसका नतीजा है कि पहाड़ के किसान कृषि के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें: बारिश और बर्फबारी नहीं होने से सूखे जैसे हालात, 'धरती पुत्र' की बढ़ी परेशानियां