हल्द्वानीः उत्तराखंड के वन क्षेत्रों के लिए अभिशाप बन चुके चीड़ के पेड़ (Pine trees) अब उत्तराखंड के जंगलों से निकलकर खेत, खलिहान और गांव तक पहुंच चुके हैं. चीड़ के पेड़ परंपरागत मिश्रित वनों के साथ ही जैव विविधता के लिए भी खतरनाक साबित हो रहे हैं. इससे निकलने वाला लीशा और इसकी पिरूल (पत्तियों) अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण गर्मी के मौसम में जंगलों की आग को बढ़ाने में सहयोग करता है. लेकिन नैनीताल जिले के ग्रामीण इलाकों में आजकल इन पिरूल का प्रयोग आड़ू, खुमानी और सेब की पैकिंग (pirul is being used in packing of fruits) में किया जा रहा है.
नैनीताल के रामगढ़ जैसे ठंडे इलाके में सेब, खुमानी और आड़ू के पैकिंग में पिरूल का प्रयोग (use of pirul in packing) किया जा रहा है. पिरूल को फलों के पेटी में फलों की सुरक्षा के लिए रखा जा रहा है. इससे वन क्षेत्रों से पिरूल भी कम हो रहा है. जिससे आग की घटनाओं का खतरा कम हो रहा है. ग्रामीण तेजी से वन क्षेत्रों में पिरूल इकट्ठा करने के काम में लगे हैं.
उत्तराखंड के जंगलों में जिस तरह से आग लगी हुई है, उसका मुख्य कारण चीड़ की पत्ती (पिरूल) है, जो सबसे अधिक ज्वलनशील है. रामगढ़ के ग्रामीण जिस तरह पिरूल को इकट्ठा कर इसका प्रयोग फलों की पैकिंग में कर रहे हैं उससे उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में वन क्षेत्रों से पिरूल की मात्रा कम हो जाएगी. इससे आग लगने का खतरा कम होगा.
चीड़ के फायदे
- चीड़ को फायदे के रूप में देखा जाए तो इसके पत्ते बेहद ज्वलनशील होते हैं. इसलिए इनका विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है.
- चीड़ की लकड़ी का भी व्यवसायिक कार्यों में उपयोग किया जाता है और इस लिहाज से इसके अलग ही फायदे हैं.
- चीड़ के पेड़ों से लीसा निकलता है और यह भी व्यवसायिक रूप से इस पेड़ का फायदा है.
चीड़ के नुकसान
- जहां तक चीड़ से होने वाले नुकसान की बात करें तो इसका नुकसान बेहद ज्यादा है. इसीलिए सरकार इन्हें अब नियंत्रित करने के लिए प्रयास में जुट गई है.
- उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में चीड़ जंगलों में आग की वजह बन रहा है. इसकी पत्तियां यानी पीरूल के कारण जंगलों में तेजी से आग फैलती है. पिछले कुछ समय में उत्तराखंड के जंगलों में आग की चीड़ का वृक्ष बड़ी वजह बना है.
- चीड़ का सबसे ज्यादा नुकसान जैव विविधता को लेकर है. रिसर्च में पाया गया है कि चीड़ के वृक्षों के आसपास दूसरी प्रजाति के वृक्ष नहीं पनप पाते.
- चीड़ के वृक्षों के प्रसार से बांज के जंगल खत्म हो रहे हैं जो कि जल संरक्षण और जमीन में नमी के लिए बेहद जरूरी होते हैं.
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पर्यावरणविद् एसपी सती कहते हैं कि यूं तो चीड़ पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं है, लेकिन जिस तरह चीड़ अपना प्रसार कर रहा है उससे बाकी प्रजातियों पर खतरा बन गया है. चीड़ की खास बात यह है कि यह वनों में आग की घटनाओं को बढ़ाता तो है लेकिन वनाग्नि के बाद ये वृक्ष खुद बेहद तेजी से फैलता है. यही कारण है कि वनों की विभिन्न प्रजातियां वनाग्नि में खत्म हो जाती हैं और चीड़ उनकी जगह ले लेता है.