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Condition of Uttarakhand Villages: इस गांव तक आते-आते हांफ गया 'विकास', आजादी के 75 साल बाद की सच्चाई यहां देखें

तेजी से विकास करने के दावे करने वाली सरकारें आजादी के 75 साल बाद भी एक गांव में पुल निर्माण नहीं करवा सकी है. एक दशक से ज्यादा समय से चुकुम गांव में एक तटबंध बनाने की मांग हो रही है, वो काम तक आगे नहीं बढ़ सका है. ग्रामीणों और स्कूल के बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. मानसून के समय तो गांव वालों के लिए सबसे अधिक मुसीबत रहती है जब गांव बहने का खतरा उनके सिर पर मंडराता रहता है.

chukum village in ramnagar
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Published : Feb 25, 2023, 2:05 PM IST

Updated : Feb 27, 2023, 2:10 PM IST

इस गांव तक आते-आते हांफ गया 'विकास'

रामनगरः वैसे तो हम आज आधुनिकता के युग 21वीं सदी में जी रहे हैं पर आज भी नैनीताल जिले के रामनगर शहर से लगता हुआ एक ऐसा गांव है जहां लोग अपनी जिंदगी खतरे में डालकर नदी पार करते हैं. जलौनी लकड़ी के सहारे यहां एक अस्थायी पुल बनाया गया है जिसको पार कर स्कूली बच्चे व ग्रामीण आवाजाही कर रहे हैं. आजादी के 75 साल बाद भी रामनगर से महज कुछ दूरी पर बसे चुकुम गांव के लोगों को तटबंध न बनने की सूरत में पूरे गांव के बहने का खतरा सता रहा है.

खतरे में स्कूली बच्चों और ग्रामीणों की जानः चुकुम गांव के ग्रामीण व स्कूली बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर नदी को पार करते हैं. एक खतरनाक लकड़ी के पुल से होकर सभी को सफर तय करना पड़ता है. इस गांव में पिछली बरसात में गई घर पानी मे बह गए थे. वहीं इस बार भी अगर तटबंध नहीं बना तो पूरे गांव को बहने का खतरा बना हुआ है, जिससे ग्रामीण काफी चिंतित हैं और प्रशासन से लगातार विस्थापित व तटबंध बनाने की गुहार लगा रहे हैं.

chukum village in ramnagar
बरसात के समय होती हैं भारी दिक्कतें.

रामनगर से लगता है गांवः आपको बता दें कि नैनीताल जिले के रामनगर से 25 किलोमीटर दूर बसे इस आखिरी राजस्व गांव चुकुम के करीब 120 परिवार से 652 लोग मतदाता हैं. यहां स्कूली बच्चे प्राथमिक के बाद पढ़ाई के लिए गांव से 3 किलोमीटर दूर कोसी नदी को पार कर मोहान इंटर कॉलेज जाते हैं. वहीं, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 25 किमी. दूर रामनगर आना पड़ता है.

chukum village in ramnagar
जाम खतरे में डालकर हो रही आवाजाही.

पढ़ें- केदारनाथ में भक्तों का खतरनाक खेल! जान जोखिम में डाल ऐसे पहुंच रहे धाम

ग्रामीणों ने बनाया अस्थायी लकड़ी का पुलः रोजमर्रा की दिक्कतों को देखते हुए चुकुम गांव के ग्रामीणों ने जलौनी की लकड़ियों से एक अस्थायी लकड़ी का पुल बनाया है लेकिन ये पुल कतई सुरक्षित नहीं है. जब इस लकड़ी के पुल पर लोग चलते हैं तो गिरने का खतरा बना रहता है. किसी तरह ग्रामीण जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे हैं.

chukum village in ramnagar
अस्थायी पुल से आवाजाही करते स्कूली बच्चे.

स्कूली बच्चों का कहना है बरसात के समय नदी का जलस्तर बढ़ने से वो कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाते, जिससे पढ़ाई का नुकसान हो जाता है. बच्चों ने ये भी बताया कि इस पुल से गिरकर कई हादसे भी हो चुके हैं. छात्रों ने स्थानीय प्रशासन के साथ ही विधायक से उनके विस्थापन की गुहार लगाई है. साथ ही उनके गांव में इस बार नदी का कटाव न हो उसके लिए तटबंद बनाने की मांग भी उठाई है.
पढ़ें- पानी की तेज रफ्तार के बीच कंधे पर स्कूली बैग...जान पर खेलकर ऐसे स्कूल पहुंचते हैं स्टूडेंट्स

किसी सरकार ने ध्यान नहीं दियाः वहीं, गांव के पूर्व ग्राम प्रधान जशी राम का कहना है कि उनके गांव की ओर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. अगर इस बरसात में गांव में तटबंध नहीं बनाया गया तो पूरा गांव नदी में समा जाएगा. वो कहते हैं कि चुकुम गांव के विस्थापन के लिए प्रशासन ने 2016 में एक सर्वे भी किया था. प्रशासन की कई बैठकों के बाद तय किया गया कि जिस ग्रामीण के पास गांव में जितनी भूमि है, उन्हें उतनी ही भूमि व वर्ग 4 की भूमि पर रहने वाले प्रति परिवार के मुखिया को कुछ रकम देकर यहां से विस्थापित किया जाएगा लेकिन आज तक वो मामला भी लटका हुआ है.

जशी राम बताते हैं कि, हर बरसात में कोसी नदी व जंगल के बीच बसे इस गांव के लोगों पर बाढ़ कहर बरपाती है, जिसमें कई आशियाने टूटते हैं तो कई लोगों की जमीनें बह जाती हैं. पिछले साल 2022 की बरसात में कई घर बाढ़ में बह गए थे.
पढ़ें- हल्द्वानी में बारिश से हाहाकार: जान जोखिम में डालकर नदी नाले पार कर रहे लोग, देखें VIDEO

बता दें कि ये चुकुम गांव आपदाग्रस्त गांव में आता है, जहां बरसात के समय ग्रामीण काले पानी जैसी सजा काटते हैं. बाढ़ आने से चुकूम गांव का संपर्क मुख्य धारा पूरा टूट जाता है. कुनखेत वन मार्ग से साढ़े आठ किलोमीटर का वैकल्पिक रास्ता है. वन्यजीवों के खतरे के बीच इस पैदल रास्ते के जरिये चुकुम गांव के ग्रामीण कुनखेत गांव पहुंचते हैं.

1954 से दिए जा रहे आश्वासनः गुजरे एक दशक से ये गांव अपने विस्थापन की राह तक रहा है. हर चुनाव से पहले चुकुम गांव के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, पर वो केवल खोखले वादे साबित होते हैं. यहां के लोगों को साल 1954 से विस्थापन का भरोसा दिया जा रहा है. इस गांव की आबादी करीब 750 है. इन ग्रामीणों के विस्थापन को लेकर आजतक कोई ठोस रणनीति नही बनाई गई है.

वहीं, तटबंद को लेकर सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता तरुण कुमार बंसल ने कहा कि चुकुम गांव किनारे तटबंद बनाने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था. प्रस्ताव पास हो चुका है. जैसे ही पैसा आवंटित होगा कार्य शुरू कर दिया जाएगा.

पढ़ें- एक दशक बाद भी नहीं बना निर्माणाधीन जखोल-लिवाड़ी मोटरमार्ग, लकड़ी पुल के सहारे ग्रामीणों का जीवन

क्या कहते हैं विधायकः उधर, क्षेत्रीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट भी मानते हैं कि चुकुम गांव का विस्थापन होना बेहद जरूरी है. बहुत सालों से इसकी प्रक्रिया चल भी रही है. विधायक कहते हैं कि पिछली सरकार में भी उन्होंने शासन से मांग की थी, प्रक्रिया प्रारंभ भी हुई थी, लेकिन किसी कारणवश वो आगे नहीं बढ़ पाई. उन्होंने कहा कि फिर भी वो विस्थापना की मांग को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसको लेकर शासन स्तर पर लगातार बैठकें चल रही हैं. गांव किनारे तटबंध बनाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि, इसको लेकर सवा करोड़ रुपये पास हो चुके हैं, जल्द ही पैसे आवंटित होने पर कार्य आरंभ कर दिया जाएगा.

इस गांव तक आते-आते हांफ गया 'विकास'

रामनगरः वैसे तो हम आज आधुनिकता के युग 21वीं सदी में जी रहे हैं पर आज भी नैनीताल जिले के रामनगर शहर से लगता हुआ एक ऐसा गांव है जहां लोग अपनी जिंदगी खतरे में डालकर नदी पार करते हैं. जलौनी लकड़ी के सहारे यहां एक अस्थायी पुल बनाया गया है जिसको पार कर स्कूली बच्चे व ग्रामीण आवाजाही कर रहे हैं. आजादी के 75 साल बाद भी रामनगर से महज कुछ दूरी पर बसे चुकुम गांव के लोगों को तटबंध न बनने की सूरत में पूरे गांव के बहने का खतरा सता रहा है.

खतरे में स्कूली बच्चों और ग्रामीणों की जानः चुकुम गांव के ग्रामीण व स्कूली बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर नदी को पार करते हैं. एक खतरनाक लकड़ी के पुल से होकर सभी को सफर तय करना पड़ता है. इस गांव में पिछली बरसात में गई घर पानी मे बह गए थे. वहीं इस बार भी अगर तटबंध नहीं बना तो पूरे गांव को बहने का खतरा बना हुआ है, जिससे ग्रामीण काफी चिंतित हैं और प्रशासन से लगातार विस्थापित व तटबंध बनाने की गुहार लगा रहे हैं.

chukum village in ramnagar
बरसात के समय होती हैं भारी दिक्कतें.

रामनगर से लगता है गांवः आपको बता दें कि नैनीताल जिले के रामनगर से 25 किलोमीटर दूर बसे इस आखिरी राजस्व गांव चुकुम के करीब 120 परिवार से 652 लोग मतदाता हैं. यहां स्कूली बच्चे प्राथमिक के बाद पढ़ाई के लिए गांव से 3 किलोमीटर दूर कोसी नदी को पार कर मोहान इंटर कॉलेज जाते हैं. वहीं, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 25 किमी. दूर रामनगर आना पड़ता है.

chukum village in ramnagar
जाम खतरे में डालकर हो रही आवाजाही.

पढ़ें- केदारनाथ में भक्तों का खतरनाक खेल! जान जोखिम में डाल ऐसे पहुंच रहे धाम

ग्रामीणों ने बनाया अस्थायी लकड़ी का पुलः रोजमर्रा की दिक्कतों को देखते हुए चुकुम गांव के ग्रामीणों ने जलौनी की लकड़ियों से एक अस्थायी लकड़ी का पुल बनाया है लेकिन ये पुल कतई सुरक्षित नहीं है. जब इस लकड़ी के पुल पर लोग चलते हैं तो गिरने का खतरा बना रहता है. किसी तरह ग्रामीण जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे हैं.

chukum village in ramnagar
अस्थायी पुल से आवाजाही करते स्कूली बच्चे.

स्कूली बच्चों का कहना है बरसात के समय नदी का जलस्तर बढ़ने से वो कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाते, जिससे पढ़ाई का नुकसान हो जाता है. बच्चों ने ये भी बताया कि इस पुल से गिरकर कई हादसे भी हो चुके हैं. छात्रों ने स्थानीय प्रशासन के साथ ही विधायक से उनके विस्थापन की गुहार लगाई है. साथ ही उनके गांव में इस बार नदी का कटाव न हो उसके लिए तटबंद बनाने की मांग भी उठाई है.
पढ़ें- पानी की तेज रफ्तार के बीच कंधे पर स्कूली बैग...जान पर खेलकर ऐसे स्कूल पहुंचते हैं स्टूडेंट्स

किसी सरकार ने ध्यान नहीं दियाः वहीं, गांव के पूर्व ग्राम प्रधान जशी राम का कहना है कि उनके गांव की ओर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. अगर इस बरसात में गांव में तटबंध नहीं बनाया गया तो पूरा गांव नदी में समा जाएगा. वो कहते हैं कि चुकुम गांव के विस्थापन के लिए प्रशासन ने 2016 में एक सर्वे भी किया था. प्रशासन की कई बैठकों के बाद तय किया गया कि जिस ग्रामीण के पास गांव में जितनी भूमि है, उन्हें उतनी ही भूमि व वर्ग 4 की भूमि पर रहने वाले प्रति परिवार के मुखिया को कुछ रकम देकर यहां से विस्थापित किया जाएगा लेकिन आज तक वो मामला भी लटका हुआ है.

जशी राम बताते हैं कि, हर बरसात में कोसी नदी व जंगल के बीच बसे इस गांव के लोगों पर बाढ़ कहर बरपाती है, जिसमें कई आशियाने टूटते हैं तो कई लोगों की जमीनें बह जाती हैं. पिछले साल 2022 की बरसात में कई घर बाढ़ में बह गए थे.
पढ़ें- हल्द्वानी में बारिश से हाहाकार: जान जोखिम में डालकर नदी नाले पार कर रहे लोग, देखें VIDEO

बता दें कि ये चुकुम गांव आपदाग्रस्त गांव में आता है, जहां बरसात के समय ग्रामीण काले पानी जैसी सजा काटते हैं. बाढ़ आने से चुकूम गांव का संपर्क मुख्य धारा पूरा टूट जाता है. कुनखेत वन मार्ग से साढ़े आठ किलोमीटर का वैकल्पिक रास्ता है. वन्यजीवों के खतरे के बीच इस पैदल रास्ते के जरिये चुकुम गांव के ग्रामीण कुनखेत गांव पहुंचते हैं.

1954 से दिए जा रहे आश्वासनः गुजरे एक दशक से ये गांव अपने विस्थापन की राह तक रहा है. हर चुनाव से पहले चुकुम गांव के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, पर वो केवल खोखले वादे साबित होते हैं. यहां के लोगों को साल 1954 से विस्थापन का भरोसा दिया जा रहा है. इस गांव की आबादी करीब 750 है. इन ग्रामीणों के विस्थापन को लेकर आजतक कोई ठोस रणनीति नही बनाई गई है.

वहीं, तटबंद को लेकर सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता तरुण कुमार बंसल ने कहा कि चुकुम गांव किनारे तटबंद बनाने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था. प्रस्ताव पास हो चुका है. जैसे ही पैसा आवंटित होगा कार्य शुरू कर दिया जाएगा.

पढ़ें- एक दशक बाद भी नहीं बना निर्माणाधीन जखोल-लिवाड़ी मोटरमार्ग, लकड़ी पुल के सहारे ग्रामीणों का जीवन

क्या कहते हैं विधायकः उधर, क्षेत्रीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट भी मानते हैं कि चुकुम गांव का विस्थापन होना बेहद जरूरी है. बहुत सालों से इसकी प्रक्रिया चल भी रही है. विधायक कहते हैं कि पिछली सरकार में भी उन्होंने शासन से मांग की थी, प्रक्रिया प्रारंभ भी हुई थी, लेकिन किसी कारणवश वो आगे नहीं बढ़ पाई. उन्होंने कहा कि फिर भी वो विस्थापना की मांग को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसको लेकर शासन स्तर पर लगातार बैठकें चल रही हैं. गांव किनारे तटबंध बनाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि, इसको लेकर सवा करोड़ रुपये पास हो चुके हैं, जल्द ही पैसे आवंटित होने पर कार्य आरंभ कर दिया जाएगा.

Last Updated : Feb 27, 2023, 2:10 PM IST
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