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धामी सरकार को लोकायुक्त नियुक्त करने का हाईकोर्ट ने दिया अंतिम अवसर, कर्मचारियों के वेतन पर दिया ये आदेश

Lokayukta in Uttarakhand नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में लोकायुक्त को लेकर बड़ा आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने सरकार को लोकायुक्त नियुक्त करने का अंतिम अवसर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि 3 महीने के अंदर लोकायुक्त की नियुक्ति हो जानी चाहिए. इस दौरान लोकायुक्त कार्यालय में तैनात कर्मचारियों के वेतन को लेकर भी नैनीताल हाईकोर्ट ने धामी सरकार को सख्त आदेश दिया है. क्या है ये आदेश, पढ़िए इस खबर में.

Nainital High Court
नैनीताल हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 25, 2023, 4:18 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल में गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी द्वारा, लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार को लोकायुक्त की नियुक्ति करने हेतु तीन माह का अंतिम अवसर दिया.

लोकायुक्त कार्यालय में तैनात कर्मचारियों के वेतन पर आदेश: इस दौरान नैनीताल हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि जब तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो जाती, उसके कार्यालय के कर्मचारियों को वहां से वेतन नहीं दिया जाये. चाहे तो सरकार उनसे अन्य विभाग से कार्य लेकर भुगतान कर सकती है. आज राज्य की तरफ से कोर्ट में लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए 6 माह का अतिरिक्त समय देने और कर्मचारियों को उसके कार्यालय से वेतन देने की मांग की गई.

लोकायुक्त नियुक्ति पर सरकार को 3 महीने का समय: सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि लोकायुक्त के कार्यालय में 26 कर्मचारी हैं, जिसमें से 9 रेरा में कार्य कर रहे हैं, उनको वहीं से वेतन दिया जाता है. 17 कर्मचारी लोकायुक्त के कार्यालय में हैं. इसलिए इनका वेतन लोकायुक्त कर्यालय से देने के आदेश दिए जाएं. इस पर हाईकोर्ट ने सरकार को लोकायुक्त नियुक्त करने हेतु 3 माह का अंतिम अवसर देने के साथ साथ कर्मचारियों को उसके कार्यालय से वेतन नहीं देने के आदेश दिए हैं.
ये भी पढ़ें: कब होगी लोकायुक्त की नियुक्ति? सरकार पर बढ़ने लगा दबाव, सीएम धामी ने विधानसभा के पाले में डाली गेंद

ये है जनहित याचिका: मामले के अनुसार जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है. जबकि संस्थान के नाम पर वार्षिक 2 से 3 करोड़ रुपए खर्च हो रहा है. जनहित याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक में और मध्य प्रदेश में लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जा रही है. परंतु उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं. हर एक छोटे से छोटा मामला उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है.

जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता पर उठाया सवाल: जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन हैं. जिनका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में है. वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नहीं है, जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति के, किसी भी राजपत्रित अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कर सके.
ये भी पढ़ें: High Court News: विद्यालयों में फर्जी टीचरों के मामले पर हुई सुनवाई, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

लोकायुक्त की शीघ्र नियुक्ति की मांग: याचिकाकर्ता ने ये भी उल्लेख किया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है. उसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है. एक पूरी तरह से पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था राज्य के नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए रिक्त पड़े लोकायुक्त पद पर नियुक्ति शीघ्र की जाये.
ये भी पढ़ें: HC ने उत्तराखंड में 8 हफ्ते के भीतर लोकायुक्त नियुक्त करने के दिए आदेश, काम का ब्यौरा भी मांगा

नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल में गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी द्वारा, लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार को लोकायुक्त की नियुक्ति करने हेतु तीन माह का अंतिम अवसर दिया.

लोकायुक्त कार्यालय में तैनात कर्मचारियों के वेतन पर आदेश: इस दौरान नैनीताल हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि जब तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो जाती, उसके कार्यालय के कर्मचारियों को वहां से वेतन नहीं दिया जाये. चाहे तो सरकार उनसे अन्य विभाग से कार्य लेकर भुगतान कर सकती है. आज राज्य की तरफ से कोर्ट में लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए 6 माह का अतिरिक्त समय देने और कर्मचारियों को उसके कार्यालय से वेतन देने की मांग की गई.

लोकायुक्त नियुक्ति पर सरकार को 3 महीने का समय: सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि लोकायुक्त के कार्यालय में 26 कर्मचारी हैं, जिसमें से 9 रेरा में कार्य कर रहे हैं, उनको वहीं से वेतन दिया जाता है. 17 कर्मचारी लोकायुक्त के कार्यालय में हैं. इसलिए इनका वेतन लोकायुक्त कर्यालय से देने के आदेश दिए जाएं. इस पर हाईकोर्ट ने सरकार को लोकायुक्त नियुक्त करने हेतु 3 माह का अंतिम अवसर देने के साथ साथ कर्मचारियों को उसके कार्यालय से वेतन नहीं देने के आदेश दिए हैं.
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ये है जनहित याचिका: मामले के अनुसार जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है. जबकि संस्थान के नाम पर वार्षिक 2 से 3 करोड़ रुपए खर्च हो रहा है. जनहित याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक में और मध्य प्रदेश में लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जा रही है. परंतु उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं. हर एक छोटे से छोटा मामला उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है.

जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता पर उठाया सवाल: जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन हैं. जिनका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में है. वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नहीं है, जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति के, किसी भी राजपत्रित अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कर सके.
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लोकायुक्त की शीघ्र नियुक्ति की मांग: याचिकाकर्ता ने ये भी उल्लेख किया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है. उसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है. एक पूरी तरह से पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था राज्य के नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए रिक्त पड़े लोकायुक्त पद पर नियुक्ति शीघ्र की जाये.
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