नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड में भ्रष्टाचार के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने मामले में सरकार को निर्देश दिया कि हरिद्वार, उधमसिंह नगर, देहरादून और पौड़ी में हुए अनियममिताओं के बारे में चारों जिलाधिकारियों से रिपोर्ट मंगाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें. इसके साथ ही कार्रवाई की रिपोर्ट कोर्ट में 8 दिसंबर से पहले पेश करें.
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई. अब मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी. मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में कहा गया उधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी के जिलाधिकारी अपने यहां हुए घोटाले की जांच रिपोर्ट पेश नहीं कर रहे हैं. जबकि सरकार ने उन्हें जांच करने के आदेश चार माह पहले दे दिए हैं.
याचिकाकर्ता पूर्व में सरकार की तरफ से एक जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर बताया गया था कि 20 करोड़ रुपया का गबन नहीं हुआ है. जो 20 करोड़ रुपया था, वह विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से किसी दूसरी कंपनी को दे दिया गया. अब वह सरकार के खाते में जमा हो गया है. बोर्ड के जिन अधिकारियों के कारण यह हुआ है, सरकार उनके खिलाफ उत्तराखंड सरकारी सेवक अनुशासनिक संशोधित नियमावली 2010 के प्रावधानों के अंतर्गत कार्रवाई कर रही है.
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जिन अधिकारियों द्वारा यह किया गया है, उनमें दमयंती रावत तत्कालीन सचिव भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड, डॉक्टर आकाशदीप मुख्य चिकित्सा अधिकारी कर्मचारी, राज्य बीमा, बीएन सेमवाल मुख्य फार्मासिस्ट कर्मचारी, राज्य बीमा योजना और नवाब सिंह वरिष्ठ सहायक श्रम सम्मलित है. इस पर कोर्ट ने कहा कि यह कानून के आखों में धूल झोंकने के बराबर है. इस मामले में गहरी जांच की जानी चाहिए.
इस मामले में काशीपुर निवासी खुर्शीद अहमद ने जनहित याचिका दायर किया था. याचिकर्ता का कहना है कि 2020 में भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड में श्रमिकों को टूल किट, सिलाई मशीनें एवं साइकिल देने के लिए विभिन्न समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया गया था, लेकिन इनको खरीदने में बोर्ड के अधिकारियों द्वारा वित्तीय अनियमिताएं बरती गई. जब इसकी शिकायत प्रशासन व राज्यपाल से की गई तो अक्टूबर 2020 में बोर्ड को भंग कर दिया गया और बोर्ड का नया चेयरमैन शमशेर सिंह सत्याल को नियुक्त किया गया.
जब इसकी जांच चेयरमैन द्वारा कराई गई तो घोटाले की पुष्टि हुई. मामले में श्रम आयुक्त उत्तराखंड ने भी जांच की, जिसमें बड़े-बड़े सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों के नाम सामने आए, लेकिन सरकार ने उनको हटाकर उनकी जगह नया जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया. जिसके द्वारा निष्पक्ष जांच नहीं की जा रही है. अपने लोगों को बचाया जा रहा है. याचिकर्ता का कहना है कि मामले की जांच एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर निष्पक्ष रूप से कराई जाए.