नैनीताल: उत्तराखंड में कई विचित्र और रहस्यमई कहानियां है, जिनमें से एक है बेतालघाट के नकवा बुबु की कहानी, जो अपने आप में अद्भुत है. यूं तो विक्रम बेताल की कहानी बेहद प्रसिद्ध है लेकिन गांव बेतालघाट में भी एक अद्भुत और मददगार बेताल है जिसको लोग नकवा बूबू के नाम से जानते हैं. स्थानीय मानते हैं कि भटके हुए यात्रियों को नकवा बेताल बूबू आज भी रास्ता दिखा रहे हैं.
कई कहानियां हैं प्रचलित
कहा जाता है कि बेतालघाट गांव में सड़क की दिक्कत थी और गांव को सड़क के दूसरे छोर से जोड़ने के लिए सरकार द्वारा एक पुल बनाने का ठेका किसी बाहरी ठेकेदार को दिया गया था. जब ठेकेदार ने गांव पहुंचकर पुल का निर्माण शुरू कराया तब बेतालघाट के लोगों ने ठेकेदार से गांव के स्थानीय देवता नकवा बूबू की पूजा को कहा लेकिन ठेकेदार भगवान को नहीं मानता था. ऐसे में उसने बगैर पूजा-पाठ के ही पुल का निर्माण शुरू कर दिया और पुर का काम पूरा भी हो गया.
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जिस दिन पुल को स्थानीय लोगों के लिए खोला जाना था उसी रात को अचानक आंधी आई और पुल अपनी जगह से करीब 3 फीट की दूरी पर खिसक गया. लेकिन गांव में सब कुछ सामान्य था. गांव में कच्ची झोपड़ी और मकान थे. इन मकानों का एक तिनका तक नहीं हिला. इस घटना को देख कर गांव के लोग हैरान थे, जिसके बाद स्थानीय बुजुर्गों द्वारा ठेकेदार से माफी मांगने को कहा गया और ठेकेदार ने माफी मांगी और पूजा की, जिसके बाद ये पुल खुद ही अपनी जगह पर आ गया.
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ये भी है मान्यता
नकवा बूबू के बारे में एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि पौराणिक समय में नकवा बूबू (बेताल) दिन में यहां के बच्चों के साथ खेलते थे और रात होते ही एक बच्चे को उठाकर ले जाते थे, इस बात से परेशान होकर स्थानीय लोगों ने देवताओं का आह्वान किया, जिस पर नकवा बूबू ( बेताल) खुद ही प्रकट हुए और बोले कि वो क्षेत्राधीपति हैं, अगर उनकी स्थापना शिव मंदिर के पास कर दी जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा. जिसके बाद लोगों ने नकवा बूबू के कहे अनुसार उनके मंदिर की स्थापना कर दी और बच्चों के गायब होने का सिलसिला खत्म हो गया.