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पिथौरागढ़ में मोस्टामानू मेले का आयोजन, धरती पर अवतरित होते हैं बारिश के देवता - मोस्टमानू मेला

मंदिरों में लगने वाले मेले पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत की पहचान हैं. आज के उपभोक्तावादी दौर में भी पहाड़वासियों के लिए इन मेलों का महत्व कम नहीं हुआ है. आस्था और मनोरंजन को समेटा एक ऐसा ही मेला है सोरघाटी पिथौरागढ़ का मोस्टमानू मेला.

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Published : Sep 1, 2022, 9:59 PM IST

Updated : Sep 1, 2022, 10:50 PM IST

पिथौरागढ़: प्राचीन काल से ही देवभूमि उत्तराखंड में मेलों का खासा महत्व रहा है. तेजी से बदलते इस दौर में जहां लोग आधुनिकता की अंधी दौड में भाग रहे हैं. वहीं पिथौरागढ़ के मोस्टमानू मेले में लोगों का उमड़ा जनसैलाब पहाड़ में मेलों के महत्व को बयां कर रहा है. सदियों से पिथौरागढ़ जिलें में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है.

मोस्टा देवता को यहां के लोग बारिश के देवता यानी वरूण देव के रूप में पूजते हैं. मान्यता है प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा, तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हें प्रसन्न किया और झमाझम बारिश होने लगी. तभी से ये मेला हर साल को यहां मनाया जाता है.

पिथौरागढ़ में मोस्टामानू मेले का आयोजन
पढ़ें- नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव का आगाज, जानें कैसी है पुलिस की तैयारी

मोस्टामानू मेले का मुख्य आकर्षण है मोस्टा देवता का डोला, जिसे कंधा देने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ लगी रहती है. मान्यता है कि जो भी इस डोले को कंधा देता है उस पर मोस्टा देवता की कृपा सदैव बनी रहती है. हर साल भादो माह में पड़ने वाली ऋषि पंचमी के दिन मोस्टा देवता का ये डोला आता है और सोरघाटी पिथौरागढ़ के लोगों को अपना आशीर्वाद देकर चला जाता है. इस मेले को देखने लोग दूर दूर से आते है. लोगों का मानना है कि ये मेंला लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का बेहतरीन जरिया है.

पिथौरागढ़ जिले का सुप्रसिद्ध तीन दिवसीय मोस्टामानू मेला होकर 2 अगस्त तक चलेगा. गुरुवार को मोस्टा देवता का डोला निकाला गया. पिथौरागढ़ से 7 किलोमीटर की दूरी पर चंडाक में मोष्टा देवता की पूजा की जाती है, जिन्हें बारिश का देवता माना जाता है. यहां के लोग अपने खेतों में उन्नत फसल के लिए मोष्टा देवता की आराधना करते हैं और ऐसा भी माना जाता है कि मोष्टा देवता इस क्षेत्र में आपदा से लोगों की रक्षा करते हैं. ये मेला पहाड़ के कृषि जीवन को तो दर्शाता ही है, साथ ही पहाड़ के सांस्कृतिक इतिहास को बयां करता है.

पिथौरागढ़: प्राचीन काल से ही देवभूमि उत्तराखंड में मेलों का खासा महत्व रहा है. तेजी से बदलते इस दौर में जहां लोग आधुनिकता की अंधी दौड में भाग रहे हैं. वहीं पिथौरागढ़ के मोस्टमानू मेले में लोगों का उमड़ा जनसैलाब पहाड़ में मेलों के महत्व को बयां कर रहा है. सदियों से पिथौरागढ़ जिलें में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है.

मोस्टा देवता को यहां के लोग बारिश के देवता यानी वरूण देव के रूप में पूजते हैं. मान्यता है प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा, तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हें प्रसन्न किया और झमाझम बारिश होने लगी. तभी से ये मेला हर साल को यहां मनाया जाता है.

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मोस्टामानू मेले का मुख्य आकर्षण है मोस्टा देवता का डोला, जिसे कंधा देने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ लगी रहती है. मान्यता है कि जो भी इस डोले को कंधा देता है उस पर मोस्टा देवता की कृपा सदैव बनी रहती है. हर साल भादो माह में पड़ने वाली ऋषि पंचमी के दिन मोस्टा देवता का ये डोला आता है और सोरघाटी पिथौरागढ़ के लोगों को अपना आशीर्वाद देकर चला जाता है. इस मेले को देखने लोग दूर दूर से आते है. लोगों का मानना है कि ये मेंला लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का बेहतरीन जरिया है.

पिथौरागढ़ जिले का सुप्रसिद्ध तीन दिवसीय मोस्टामानू मेला होकर 2 अगस्त तक चलेगा. गुरुवार को मोस्टा देवता का डोला निकाला गया. पिथौरागढ़ से 7 किलोमीटर की दूरी पर चंडाक में मोष्टा देवता की पूजा की जाती है, जिन्हें बारिश का देवता माना जाता है. यहां के लोग अपने खेतों में उन्नत फसल के लिए मोष्टा देवता की आराधना करते हैं और ऐसा भी माना जाता है कि मोष्टा देवता इस क्षेत्र में आपदा से लोगों की रक्षा करते हैं. ये मेला पहाड़ के कृषि जीवन को तो दर्शाता ही है, साथ ही पहाड़ के सांस्कृतिक इतिहास को बयां करता है.

Last Updated : Sep 1, 2022, 10:50 PM IST
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