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सुहागन महिलाओं के लिए कल का दिन होगा विशेष, पति के लिए रखें ये व्रत

सदियों से सनातन धर्म से जुड़ी सुहागिन महिलाएं व्रत धारण करती आ रही हैं. बट सावित्री व्रत की कथा का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति के प्राणों को यमराज से वापस ले लिया था.

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Published : Jun 2, 2019, 3:09 PM IST

बट सावित्री व्रत

हल्द्वानी: कल यानी 3 जून को अमावस्या पड़ रही है. इस मौके पर सुहागिन अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री की पूजा करेंगी. आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है वट सावित्री का व्रत और क्या है इसकी महत्ता.

आचार्य डॉक्टर नवीन चंद्र जोशी.

शास्त्र जानकार के अनुसार इस साल वट सावित्री का व्रत सोमवार को रोहड़ी नक्षत्र का अद्भुत योग सुहागिनों के लिए सौभाग्यकारक होगा. कल सुबह 7:10 से दोपहर 12:45 बजे तक पूजा करने का विशेष मुहूर्त रहेगा. यह व्रत विशेषकर सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए होता है. लेकिन अन्य महिलाएं भी इस पूजा को कर सकती हैं.

इस दिन वट (बरगद के पेड़) की होती है पूजा
मान्यता के अनुसार इस पूजा में सुहागिन महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा और आभूषण धारण कर 24 तरह के पकवान टोकरी में रखकर बट के पेड़ के नीचे रखकर पूजा अर्चना करते हैं. इसके साथ ही पति की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए सूत से पेड़ को चारों ओर से लपेटा जाता है.

वट सावित्री की कथा सत्यवान और सावित्री की कथा से जुड़ा हुआ है
सदियों से सनातन धर्म से जुड़ी सुहागिन महिलाएं व्रत धारण करती आ रही हैं. बट सावित्री व्रत की कथा का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति के प्राणों को यमराज से वापस ले लिया था. देवी भागवत के अनुसार जेठ कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन जो स्त्रियां बट सावित्री की पूजा करती हैं, वे सदा सौभाग्यवती बनी रहती हैं.

ब्रह्मा और सावित्री की भी पूजा होती है
आचार्य डॉक्टर नवीन चंद्र जोशी का कहना है कि वैदिक काल से वट सावित्री व्रत किया जाता है. महिलाएं पति और पुत्र की दीर्घायु के लिए सावित्री और भगवान ब्रह्मा का पूजा करती हैं. जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न होकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

हल्द्वानी: कल यानी 3 जून को अमावस्या पड़ रही है. इस मौके पर सुहागिन अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री की पूजा करेंगी. आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है वट सावित्री का व्रत और क्या है इसकी महत्ता.

आचार्य डॉक्टर नवीन चंद्र जोशी.

शास्त्र जानकार के अनुसार इस साल वट सावित्री का व्रत सोमवार को रोहड़ी नक्षत्र का अद्भुत योग सुहागिनों के लिए सौभाग्यकारक होगा. कल सुबह 7:10 से दोपहर 12:45 बजे तक पूजा करने का विशेष मुहूर्त रहेगा. यह व्रत विशेषकर सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए होता है. लेकिन अन्य महिलाएं भी इस पूजा को कर सकती हैं.

इस दिन वट (बरगद के पेड़) की होती है पूजा
मान्यता के अनुसार इस पूजा में सुहागिन महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा और आभूषण धारण कर 24 तरह के पकवान टोकरी में रखकर बट के पेड़ के नीचे रखकर पूजा अर्चना करते हैं. इसके साथ ही पति की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए सूत से पेड़ को चारों ओर से लपेटा जाता है.

वट सावित्री की कथा सत्यवान और सावित्री की कथा से जुड़ा हुआ है
सदियों से सनातन धर्म से जुड़ी सुहागिन महिलाएं व्रत धारण करती आ रही हैं. बट सावित्री व्रत की कथा का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति के प्राणों को यमराज से वापस ले लिया था. देवी भागवत के अनुसार जेठ कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन जो स्त्रियां बट सावित्री की पूजा करती हैं, वे सदा सौभाग्यवती बनी रहती हैं.

ब्रह्मा और सावित्री की भी पूजा होती है
आचार्य डॉक्टर नवीन चंद्र जोशी का कहना है कि वैदिक काल से वट सावित्री व्रत किया जाता है. महिलाएं पति और पुत्र की दीर्घायु के लिए सावित्री और भगवान ब्रह्मा का पूजा करती हैं. जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न होकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

Intro: स्लग-वट सावित्री पूजा पति की दीर्घायु की कामना
रिपोर्टर- भावनाथ पंडित हल्द्वानी
एंकर- अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए कल अमावस्या के मौके पर सुहागिन वट सावित्री का पूजा करेंगीं। अपने सुहाग की कुशलता , दीर्घायु कामना के साथ सुहागन परंपरागत तरीके से बट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखेंगी। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट के पेड़ की पूजा अर्चना कर अखंड सुहाग का वर मांगेगी।
आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है वट सावित्री का व्रत क्या है इसकी महत्वता ,कैसे करें पूजा


Body:ज्योतिषी के अनुसार इस वर्ष वट सावित्री का व्रत सोमवार को रोहड़ी नक्षत्र का अद्भुत योग सुहागिनों के लिए सौभाग्यकारक होगा। सुबह 7:10 से दोपहर 12:45 बजे तक पूजा करने का विशेष मुहूर्त रहेगा।
विशेषकर या पूजा सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए होता है मगर अन्य स्त्री अभी इस पूजा को कर सकती हैं।
इस दिन वट( बरगद के पेड़) का पूजा होता है।

मान्यता अनुसार इस पूजा में सुहागिन महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा और आभूषण धारण कर 24 तरह के पकवान और 24 तरह कृपाल टोकरी में रखकर बट के पेड़ के नीचे पूजा अर्चना करते हैं और पति की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए सूत से पेड़ को चारों ओर से लपेटी हैं।
वट सावित्री की कथा सत्यवान और सावित्री की कथा से जुड़ा हुआ है।
सदियों से सनातन धर्म से जुड़ी सुहागिन महिलाएं व्रत धारण करती आ रही है। बट सावित्री व्रत की कथा का पुराना में उल्लेख मिलता है कि सावित्री ने अपने पति के प्राणों को यमराज से वापस ले लिया था। देवी भागवत के अनुसार जेठ कृष्ण पक्ष अमावस्या को जो स्त्रियां बट सावित्री का पूजा करती है वह सदा सौभाग्यवती बनी रहती है वटवृक्ष के साथ ब्रह्मा और सावित्री का पूजा होता है।


Conclusion:आचार्य डॉक्टर नवीन चंद्र जोशी का कहना है कि वैदिक काल से वट सावित्री व्रत मनाया जा रहा है। महिलाएं पति व पुत्र की दीर्घायु के लिए सावित्री और भगवान ब्रह्मा का पूजा करती है जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न होकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

बाइट -अचार्य नवीन चंद्र जोशी शास्त्र जानकार
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