देहरादून/हल्द्वानी: पूर्वोत्तर राज्यों में आपदा बन चुके अफ्रीकन स्वाइन फ्लू ने अब कुमाऊं में भी दस्तक दे दी है. जिसने पशुपालकों की नींद उड़ा दी है. लगातार हो रही सुअरों की मौत के बाद पशुपालन विभाग ने नैनीताल और उधमसिंह नगर में सैंपलिंग के लिए अपनी टीमें लगा है. वैसे तो इस बीमारी से इंसानों को कोई खतरा नहीं है, लेकिन यह सुअरों के लिए काफी घातक सिद्ध हो रही है. वहीं, पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने अपने विभागीय अधिकारियों को इस मामले को गंभीरता से लेने के आदेश दिये हैं. उन्होंने कहा कि पशुओं के संक्रमित होने की सूचना पर कोई कोताही नहीं बरती जाए.
बता दें कि उधमसिंह नगर और नैनीताल जिले में अब तक 24 में से 11 सैंपल पॉजिटिव पाए गए हैं. उधम सिंह नगर के सितारगंज इलाके में चार बाजपुर काशीपुर और दिनेशपुर इलाके के एक-एक सुअर में अफ्रीकन स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अग्रिम आदेशों तक इन इलाकों में सुअर का मांस प्रतिबंधित कर दिया गया है और बीमारी की रोकथाम के लिए संक्रमित इलाकों में अतिरिक्त निगरानी बढ़ा दी गई है.
वहीं, अफ्रीकन स्वाइन फ्लू की जांच (African Swine Fever Disease in Uttarakhand) रिपोर्ट पॉजिटिव मिलने के बाद सभी सुअरों को आइसोलेट किया गया है. इन सुअरों के संपर्क में आए अन्य लोगों की भी जांच की जा रही है. इसके लिए पशु चिकित्सा विभाग की ओर से नगर निकायों का भी सहयोग लिया जा रहा है.
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पशुपालन विभाग के अपर निदेशक बीसी कर्नाटक ने बताया कि अफ्रीकन स्वाइन फ्लू (African swine fever virus) तेजी से फैल रहा है. इसके लिए पशुपालकों को सतर्क किया गया है. अभी किसी भी सुअर की मौत का मामला प्रकाश में नहीं आया है. आज टीम ने हल्द्वानी के राजपुरा, जवाहर नगर और अन्य इलाकों में सुअरों के सैंपल लिए हैं. जिन्हें टेस्टिंग के लिए लैब भेजा जा रहा है.
क्या बोले पशुपालन मंत्री सौरव बहुगुणा? उत्तराखंड में अचानक अफ्रीकन स्वाइन फ्लू की दस्तक के चलते पशुपालन विभाग के साथ ही स्वास्थ्य विभाग भी परेशानी में आ गया है. पशुपालन मंत्री सौरव बहुगुणा कहते हैं कि पशुपालन विभाग लगातार इस मामले को गंभीरता से देख रहा है. हालांकि, अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा सुअरों की जान जा चुकी है, लेकिन अब इन मामलों में कमी आ रही है.
क्या है अफ्रीकन स्वाइन फीवर या फ्लू? अफ्रीकन स्वाइन फीवर एक अत्यधिक संक्रामक और खतरनाक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सुअरों को संक्रमित करता है. इसके संक्रमण से सुअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार से पीड़ित होते हैं. इस बीमारी को पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था.
इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है और इस बुखार का अभी तक कोई इलाज नहीं है. इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है. वहीं, जो लोग इस बीमारी से ग्रसित सुअरों के मांस का सेवन करते हैं उनमें तेज बुखार, अवसाद सहित कई गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं.