कालाढूंगी: मन में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल आड़े नहीं आती है. इसी पंक्ति को चरितार्थ करते हैं कालाढूंगी के ईश्वर मेहरा. ईश्वर भारतीय सेना में रहते हुए संगीत की दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बना रहे हैं. ईश्वर मेहरा अबतक 60 से ज्यादा कुमाऊंनी लोकगीत गा चुके हैं. इनमें उत्तराखंड से लगातार हो रहे पलायन की पीड़ा और इसके समाधान को लेकर संदेश हैं.
लोकगायक और भारतीय सैनिक ईश्वर मेहरा के गीतों में पलायन का दर्द सुनने को मिलता है. ईश्वर आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं. इसके साथ ही ईश्वर मेहरा के गीतों को लोगों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है.
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सैनिक ईश्वर मेहरा ने बताया कि जब भी में ड्यूटी में रहता हूं तो उस दौरान में पूरी लगन के साथ देश की सेवा करता हूं. उस दौरान जब कभी मुझे अपने घर और खेत-खलिहानों की याद आती है तो उन यादों को मैं अपने गीतों में पिरोता हूं. उसके बाद भारतीय सेना से छुट्टी लेकर जब घर आता हूं, तब उन गीतों को रिकॉर्ड कर लॉन्च करता हूं.
लोकगायक ईश्वर मेहरा का कहना है कि वह अपनी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयासरत हैं. साथ ही उनका प्रयास है कि भावी पीढ़ी उनके गीतों से माध्यम से अपनी लोकसंस्कृति और रीति रिवाजों को जान सके.
ईश्वर के गानों में पढ़े-लिखे बेरोजगारों का दर्द झलकता है. उनका एक गाना इस तरह है.
ये गरीबी-बेरोजगारी, के नी भे कमाई
कैसी दिन काटणा होला
पढ़ी लेखी भाई
सौंदर्य गीत में भी ईश्वर पीछे नहीं हैं. पिछोड़ी तेरी गीत में उनका यही अंदाज दिखता है.
पिछोड़ी तेरी हेमा, क्या भलि लागेंछा तेमा
नई नवेली दुल्हन के दुख को भी ईश्वर मेहरा ने अपने गीत में ढाल दिया. नानि छै चेलि (बेटी) गीत में ये दर्द साफ छलक आता है.
नानि छौ चेली, भारी छौ दुख