नैनीताल: जनकवि गिरीश तिवारी (गिर्दा) की गुरुवार को 9 पुण्यतिथि मनाई गई. गिर्दा के पुण्यतिथि पर नैनीताल की मालरोड में रंगकर्मी और साहित्य जगत से जुड़े कई लोगों ने उनकी कविताएं गाई और उन्हें श्रद्धांजली दी.
गिर्दा 1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के लिए पहाड़ी जनमानस को अपने जनगीतों और कविताओं के जरिए बड़े प्रभावशाली ढंग से आंदोलित करने का काम किया था. लखनऊ की सड़कों पर रिक्शा चलाने के बाद गिर्दा ने राज्य आंदोलन की ऐसी राह पकड़ी कि वह उत्तराखंड में आंदोलनों के पर्याय बन गये. उन्होंने जनगीतों से लोगों को अपने हक-हकूकों के लिये न सिर्फ लड़ने की प्रेरणा दी बल्कि परिवर्तन की आस जगाई.
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गिर्दा आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी हमारे दिलों मे जिंदा हैं. उन्होंने 1977 में चले वन बचाओ आंदोलन, 1984 के नशा नहीं रोजगार दो और 1994 के उत्तराखंड आंदोलन में गिर्दा की रजनाओं ने जान फूंकी थी. इतना ही नहीं उसके बाद भी गिर्दा ने हर में आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन 22 अगस्त 2010 को अचानक गिर्दा की आवाज हमेशा के लिये खामोश हो गई.
ये गिर्दा के जनवादी होने का ही प्रमाण था कि समाज की कुरीतियां कभी उनके ऊपर हावी नहीं हो पायीं. उनकी रचनाओं ने हमेशा राजनीति के ठेकेदारों पर गहरा वार किया. राज्य आंदोलन के दौरान लोगों को एक साथ बांधने का काम भी गिर्दा ने ही किया था.
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उत्तराखंड में गिर्दा की अहमियत महज एक कवि तक नहीं है. वह सही मायने में एक दूरदर्शी आंदोलनकारी थे. गिर्दा की भरपाई करना मुश्किल ही नहीं नामुकिन है.