रामनगर: देश के पहले टाइगर रिजर्व में जहां इंसानों के पैदल चलने पर पाबंदी है, वहां कथित मजारें बना दी गईं और कॉर्बेट प्रशासन गहरी नींद में सोता रहा. दरअसल, वन्यजीवों के लिए जिम कार्बेट नेशनल पार्क सबसे चर्चित स्थान माना जाता है. यहां लाखों की संख्या में टूरिस्ट आते हैं. हैरानी की बात ये रही ये जगह भी अवैध मजारों से अछूती नहीं रही.
हाल ही में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए घपले में एक आईएफएस समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवैध निर्माण, बिना संस्तुति संस्तुति बजट ठिकाने लगाने के आरोप लगाते हुए विजलेंस विभाग ने एफआईआर दर्ज की है. सरकार ने कालागढ़ डिवीजन में टाइगर सफारी को लेकर हुए भ्रष्टाचार को गंभीरता से लिया है. लेकिन कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बनाई गईं कथित मजारों को लेकर फिलहाल सरकार का रवैया सुस्त ही नजर आ रहा है.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett Tiger Reserve) में जहां पैदल भी नहीं चला जा सकता है, उन क्षेत्रों में तीन-तीन मजारें बनाई गई हैं. वन प्रभाग रामनगर के अंतर्गत रिंगोड़ा के पास भी एक मजार बनाने का मामला सामने आया है. जिसके बाद कॉर्बेट प्रशासन ने इस संबंध में उच्च अधिकारियों को सभी मजारों को लेकर जानकारियां उपलब्ध करा दी है.
पढे़ं- देशभक्ति गीत पर थिरकते हुए हरदा का बीजेपी पर तंज, बोले- जल्द सरेआम चलेंगे चप्पल-जूते
होने लगी राजनीति: इस मामले के गर्माने का बाद इस पर अब राजनीति भी होने लगी है. बीजेपी का कहना है कि कॉर्बेट में मजार के मामले की छानबीन के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया गया है. अगर, रिजर्व फॉरेस्ट में इन मजारों का निर्माण हाल फिलहाल में हुआ है तो इस पर कार्रवाई अवश्य की जाएगी. यह जांच का विषय है कि यह मजारें कब बनाई गई. जांच रिपोर्ट आने के बाद इस मामले में आगे की कार्रवाई की जाएगी.
एक्शन में वन मंत्री: वहीं, कॉर्बेट नेशनल पार्क में मजार बनाए जाने के मामले में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल को निर्देश दिए हैं. इसके अनुसार वन विभाग अब वनों में हुए किसी भी धार्मिक निर्माण को लेकर सर्वे करेगा, जिसमें कितनी मजार या विभिन्न धर्मों से जुड़े धार्मिक स्थलों का निर्माण को लेकर वन विभाग एक खाका तैयार करेगा. खास तौर पर इसमें देखा जाएगा कि कौन सा निर्माण नया है और किस निर्माण को 80 के दशक से पूर्व में किया गया था. सर्वे होने के बाद ऐसे निर्माणों पर कार्रवाई करने के भी संकेत वन मंत्री ने दिए हैं.
फोटो वायरल होने पर हरकत में आया कॉर्बेट प्रशासन: बता दें, विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के अंतर्गत पड़ने वाले 3 वन प्रभागों के अंतर्गत पड़ने वाली एक मजार की फोटो एक टूरिज्म व्यवसाई ने खिंची और उसके बारे में लिखा, जिसके बाद कॉर्बेट प्रशासन हरकत में आया है. सभी मजारों का ब्योरा उच्च अधिकारियों को भेजा गया है. इसमें एक मजार झिरना रेंज में झिरना ब्लॉक संख्या 8 में अवस्थित मजार है, जिसकी स्थापना साल 1990 में ग्रामवासियों द्वारा की गई थी. तब झिरना ग्राम तल्ला के ग्राम प्रधान स्वराज सिंह थे. तब वहां लगभग 40-45 परिवार निवास किया करते थे. जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 200 थी. साल 1991 में झिरना रेंज की स्थापना हुई. जिसके बाद झिरना ग्राम का समस्त क्षेत्र संरक्षित वन में सम्मिलित हो गये.
साल 1994 में भारतीय वन अधिनियम 1927 के प्राविधानों के अंतर्गत उक्त झिरना ग्राम को हिम्मतपुर ब्लॉक काशीपुर में विस्थापित कर दिया गया. उक्त मजार में निर्माण वर्ष से वर्तमान तक यथावत स्थिति है. कॉर्बेट के अधिकारियों ने बताया इसमें किसी भी प्रकार का कोई निर्माण या मरम्मत कार्य नहीं किया गया है. वर्तमान में यह मजार कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की झिरना रेंज के कोर जोन में है.
पढे़ं- Azadi Ka Amrit Mahotsav: उत्तराखंड महिला कमांडो दस्ते ने फहराया तिरंगा, डीजीपी ने दी शुभकामनायें
दूसरी मजार: कॉर्बेट के ढेला रेंज के अंतर्गत कालूसिद्ध मजार केला पूर्वी बीट क्रम संख्या 10, ढेला हिल ब्लॉक में है. यह क्षेत्र कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का कोर जोन है. कालूसिद्ध मजार रामनगर, लालढांग पीडब्ल्यूडी मोटर मार्ग पर स्थित है. यह भूमि पीडब्ल्यूडी को स्थानांतरित की गई है. इसकी स्थापना के संबंध में कोई जानकारी नहीं है. ईको विकास समिति ढेला के अध्यक्ष से जानकारी से पता चला कि मजार 50 वर्षों से भी अधिक पुरानी है.
तीसरी मजार: कालूशहीद मजार कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग की सोनानदी रेंज के कालूशाहीद पूर्वी बीट के कालूशहीद ब्लॉक, क्रम संख्या संख्या-11 में स्थित है, जो कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोने का क्षेत्र है. उन्होंने बताया विधिक दृष्टि से यह एक आरक्षित वन क्षेत्र है. स्थानीय जनश्रुति के अनुसार कालूशहीद एक सिद्धपुरुष थे. उनकी मृत्यु के बाद इसी स्थान पर उन्हें दफनाया गया था.
चौथी मजार: रामनगर वन प्रभाग के अंतर्गत आती है, जो रामनगर से 5 किलोमीटर की दूरी पर रिंगोड़ा क्षेत्र से आगे पड़ती है, जो भूरे शेर अली बाबा के नाम से जानी जाती है. यह मजार रामनगर वन प्रभाग के अंतर्गत आती है. इसको लेकर वन प्रभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह भी लगभग 50 सालों से ज्यादा पुरानी मजार है.