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हॉस्पिटलों की बदहाली पर सियासत: नेता प्रतिपक्ष ने CM को  बताया जिम्मेदार, भट्ट ने किया पलटवार - ajay bhatt

प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवा किसी से छुपी नहीं है. ये मुद्दा की राजनीति में भी हमेशा से अहम रहा है. विपक्ष में हर बार लचर स्वास्थ्य व्यवस्था का मुद्दा जोर-शोर से उठता है लेकिन चिकित्सा व्यवस्था में लेस मात्र का सुधार नहीं होता. एक ओर सोबन सिंह जीना अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है तो दूसरी ओर सुशीला तिवारी अस्पताल इलाज में लापरवाही को लेकर सुर्खियों में रहता है. प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों के हालात ऐसे ही हैं.

बदहाल स्वास्थ्य सेवा पर सियासत
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Published : Apr 20, 2019, 11:11 AM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड की चरमराती स्वास्थ्य सेवा की वजह से प्रदेश की जनता काफी परेशान है. नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने सरकारी अस्पतालों की बदहाली के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री को ठहराया है, क्योंकि सीएम के पास ही स्वास्थ्य विभाग जैसा अहम विभाग है. उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है. कई अस्पतालों में मशीनें खराब पड़ी हैं. लेकिन सरकार की तरफ से कुछ नहीं किया जा रहा है. नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि स्वास्थ्य महकमे की खुद जिम्मेदारी उठा रहे मुख्यमंत्री गैर जिम्मेदार बने हुए हैं.

नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का कहना है कि मुख्यमंत्री स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं हैं. वो सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए मेयर और सांसदों को जीता रहे हैं, जिससे उनकी कुर्सी बची रहे. विपक्ष द्वारा स्वास्थ्य व्यवस्था का मामला विधानसभा में उठाने पर मुख्यमंत्री कोई जवाब नहीं देते हैं.

बदहाल स्वास्थ्य सेवा पर सियासत

BJP ने कहा- कांग्रेस के कार्यकाल में बदहाल थी स्वास्थ्य व्यवस्था, अब हुआ है सुधार

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि सैकड़ों डॉक्टरों की नियुक्ति की जा चुकी है और आगे भी नियुक्ति का कार्य चलता रहेगा. उन्होंने कहा कि अस्पतालों को टेली रेडियोलॉजी से जोड़ा गया है. अस्पतालों की बदहाली कांग्रेस सरकार के समय में थी लेकिन वर्तमान में काफी सुधार हुआ है.

पर्वतीय इलाकों में रेफर सेंटर बने सभी चिकित्सा केंद्र

उत्तराखंड में डॉक्टरों के एक हजार के करीब पद खाली पड़े हैं. अधिकतर अस्पतालों में सिटी स्किन मशीन, एक्स-रे मशीन ठीक खराब हैं, कई अस्पतालों में दवाई का टोटा है. पर्वतीय जनपदों में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति और भी दयनीय है. दस पर्वतीय और तीन मैदानी जनपद वाले इस सूबे में स्वास्थ्य सेवाएं नाम मात्र के लिए हैं.

खासकर पर्वतीय जनपदों में जगह-जगह सरकारी अस्पताल तो खोले गए हैं लेकिन यहां न तो डॉक्टर हैं न दवा. ये महज रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं. छोटी से छोटी बीमारी के इलाज के लिए पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को मैदानी क्षेत्र की ओर दौड़ लगानी पड़ती है. कई बार अस्पताल पहुंचने से पहले ही मरीज दम तोड़ देते हैं.

पिछले साल नीति आयोग के 21 राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में स्वास्थ्य सेवाएं के मामले में उत्तराखंड 15 स्थान पर रहा. जबकि उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों से मेल खाता हिमाचल प्रदेश पांचवा स्थान में था. ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य प्रदेशों की तुलना में कितना पीछे है.


हॉस्पिटलों की बदहाली पर सियासत: नेता प्रतिपक्ष ने CM को बताया जिम्मेदार, भट्ट ने किया पलटवार

हल्द्वानी: उत्तराखंड की चरमराती स्वास्थ्य सेवा की वजह से प्रदेश की जनता काफी परेशान है. नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने सरकारी अस्पतालों की बदहाली के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री को ठहराया है, क्योंकि सीएम के पास ही स्वास्थ्य विभाग जैसा अहम विभाग है. उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है. कई अस्पतालों में मशीनें खराब पड़ी हैं. लेकिन सरकार की तरफ से कुछ नहीं किया जा रहा है. नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि स्वास्थ्य महकमे की खुद जिम्मेदारी उठा रहे मुख्यमंत्री गैर जिम्मेदार बने हुए हैं.

नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का कहना है कि मुख्यमंत्री स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं हैं. वो सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए मेयर और सांसदों को जीता रहे हैं, जिससे उनकी कुर्सी बची रहे. विपक्ष द्वारा स्वास्थ्य व्यवस्था का मामला विधानसभा में उठाने पर मुख्यमंत्री कोई जवाब नहीं देते हैं.

बदहाल स्वास्थ्य सेवा पर सियासत

BJP ने कहा- कांग्रेस के कार्यकाल में बदहाल थी स्वास्थ्य व्यवस्था, अब हुआ है सुधार

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि सैकड़ों डॉक्टरों की नियुक्ति की जा चुकी है और आगे भी नियुक्ति का कार्य चलता रहेगा. उन्होंने कहा कि अस्पतालों को टेली रेडियोलॉजी से जोड़ा गया है. अस्पतालों की बदहाली कांग्रेस सरकार के समय में थी लेकिन वर्तमान में काफी सुधार हुआ है.

पर्वतीय इलाकों में रेफर सेंटर बने सभी चिकित्सा केंद्र

उत्तराखंड में डॉक्टरों के एक हजार के करीब पद खाली पड़े हैं. अधिकतर अस्पतालों में सिटी स्किन मशीन, एक्स-रे मशीन ठीक खराब हैं, कई अस्पतालों में दवाई का टोटा है. पर्वतीय जनपदों में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति और भी दयनीय है. दस पर्वतीय और तीन मैदानी जनपद वाले इस सूबे में स्वास्थ्य सेवाएं नाम मात्र के लिए हैं.

खासकर पर्वतीय जनपदों में जगह-जगह सरकारी अस्पताल तो खोले गए हैं लेकिन यहां न तो डॉक्टर हैं न दवा. ये महज रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं. छोटी से छोटी बीमारी के इलाज के लिए पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को मैदानी क्षेत्र की ओर दौड़ लगानी पड़ती है. कई बार अस्पताल पहुंचने से पहले ही मरीज दम तोड़ देते हैं.

पिछले साल नीति आयोग के 21 राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में स्वास्थ्य सेवाएं के मामले में उत्तराखंड 15 स्थान पर रहा. जबकि उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों से मेल खाता हिमाचल प्रदेश पांचवा स्थान में था. ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य प्रदेशों की तुलना में कितना पीछे है.

Intro:स्लग- बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर सियासत
रिपोर्टर -भावनाथ पंडित /हल्द्वानी
एंकर- प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवा किसी से छुपी नहीं है। उत्तराखंड के बने 18 साल हो गए हैं। लेकिन विरासत में मिले मर्म के घाव अब तक नहीं भर पाए हैं। वक्त के साथ यह घाव और नासूर बनता जा रहा है। बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से जहां लोग परेशान हैं तो वहीं सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है तो अधिकतर अस्पतालों में मशीनें खराब पड़ी हुई है। सरकारी अस्पतालों की बदहाली पर सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने स्वास्थ्य महकमे की खुद जिम्मेदारी उठा रहे मुख्यमंत्री और उनके सरकार पर गैर जिम्मेदार होने का आरोप लगाया है। वहीं बीजेपी स्वास्थ्य सेवा की बदहाली का ठीकरा कांग्रेस सरकार पर फोड़ रही है।


Body:प्रदेश के बने हुए 18 साल हो गए सरकारी अस्पतालों की बदहाली किसी से नहीं छुपा हुआ है। डॉक्टरों के एक हजार के करीब पद खाली पड़े हैं। अधिकतर अस्पतालों में सिटी स्किन मशीन एक्स रे मशीन ठीक है नहीं दवाई उपलब्ध है ।पर्वतीय जनपदों में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति और भी दयनीय हैं। सरकारी अस्पतालों में निर्धारित संख्या के मुताबिक बहुत कम डॉक्टर तैनात हैं। दस पर्वतीय और तीन मैदानी जनपद वाले इस सूबे में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ही कुछ ऐसा है। राज्य के सुविधाजनक मैदानी क्षेत्रों में कुछ हद तक स्वास्थ्य सेवाएं ठीक है लेकिन पर्वतीय जनपदों में जगह-जगह सरकारी अस्पताल खोले हैं पर वहां ना डॉक्टर है ना दवा छोटी से छोटी बीमारी में भी पर्वती क्षेत्र के लोगों को मैदानी क्षेत्र की ओर दौड़ लगानी पड़ती है पर्वतीय गांव के लोग बड़े अस्पतालों में पहुंचने से ही पहले ही दम तोड़ देते हैं। पिछले वर्ष नीति आयोग के 21 राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में स्वास्थ्य सेवाएं के मामले में उत्तराखंड 15 स्थान पर रहा। जबकि उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों से मेल खाता हिमाचल प्रदेश पांचवा स्थान में रह चुका है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य प्रदेशों की तुलना में कितना पीछे है।
वहीं उत्तराखंड के स्वास्थ्य व्यवस्था पर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने खुद मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहरा है और कहा है कि मुख्यमंत्री के पास स्वास्थ्य महकमा है मुख्यमंत्री स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं है जिसके चलते प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था लगातार खराब हो रही है । इंदिरा हरदेश का कहना है कि मुख्यमंत्री सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए मेयर और सांसदों को जीता रहे हैं जिसकी उनकी कुर्सी बची रहे। विपक्ष द्वारा स्वास्थ्य अवस्था का मामला विधानसभा में उठाने पर मुख्यमंत्री कोई जवाब नहीं देते हैं।

बाइट -इंदिरा हरदेश नेता प्रतिपक्ष


Conclusion:वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि वर्तमान में सैकड़ों डॉक्टरों की नियुक्ति की जा चुकी है और आगे भी काम चल रहा है अस्पतालों में टेली रेडियोलॉजी से जोड़ा गया है। अस्पतालों की बदहाली कांग्रेस के सरकार के समय मैं थी लेकिन वर्तमान में काफी सुधार हो चुका है।

बाइट अजय भट्ट बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष
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