नैनीताल: 1978 में आईएमपीसीएल की स्थापना जनपद अल्मोड़ा के मोहान क्षेत्र में की गई थी. जिसका उद्देश्य पहाड़ी एवं पिछड़े क्षेत्र का विकास और कमजोर वर्ग के व्यक्तियों को रोजगार देना तथा पहाड़ों में पाई जाने वाली अधिकांश जड़ी बूटियों से उच्च गुणवत्ता की औषधियों का निर्माण का राज्य सरकार के औषधालयों में आपूर्ति करना था.
लेकिन, जब से यह कंपनी स्थापित हुई है तब से निरंतर लाभ में है. बावजूद इसके भारत सरकार ने इसका निजीकरण करने का मन बना लिया है. इसके चलते बीते 13 अप्रैल को टेंडर प्रकाशित हो चुके हैं. जो 18 मई को खुलने वाले हैं. इसे लेकर आईएमपीसीएल के कर्मचारी संघ ने विरोध जताया है.
कर्मचारियों का कहना है कि निरंतर लाभ देने वाली कंपनी को निजी हाथों में बेचना उचित नहीं है. क्योंकि 5 हजार व्यक्ति अपनी आजीविका के लिए इस कंपनी पर निर्भर है. जबकि निगम की विनिवेश प्रक्रिया में शेयर परचेज एग्रीमेंट में कर्मचारियों के लिए मात्र एक वर्ष की सर्विस का प्रावधान किया गया है. उसके बाद छंटनी की छूट खरीदार को दे दी गई है. जो कि सर्विस नियमावली एवं मानव अधिकारों का उलंघन है.
आईएमपीसीएल के एसडी प्रदीप कुमार प्रजापति का कहना है कि कंपनी के निजीकरण होने के बाद कंपनी प्रबंधन एक वर्ष के बाद कभी भी किसी भी कर्मचारी को निकाल सकती है. जिस वजह से कंपनी में काम करने वाले कई कर्मचारियों पर बेरोजगारी की तलवार लटक रही है. इसका विरोध करते हुए कर्मचारी संघ ने 2 मई को कंपनी के गेट पर धरना देने का निर्णय लिया है.