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हाथियों के कॉरिडोर पर इंसानों ने किया अतिक्रमण, मानव-वन्यजीव संघर्ष में हुआ इजाफा

Uttarakhand Forest Department हाथियों के कॉरिडोर पर इंसानों ने कब्जा जमाने से मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में इजाफा हुआ है. जिसके बाद हाथियों के झुंड अपने विचरण के लिए नए-नए रास्ते खोज रहे हैं. हाथियों के कॉरिडोर पर इंसानी कब्जे ने हाथियों का विचरण प्रभावित कर दिया है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 23, 2023, 11:19 AM IST

Updated : Sep 23, 2023, 11:51 AM IST

Uttarakhand
एलिफेंट कॉरिडोर
हाथियों के कॉरिडोर पर इंसानों ने किया अतिक्रमण

हल्द्वानी: उत्तराखंड के जंगल हाथियों के लिए सुरक्षित वास स्थल माना जाता है. इसी का नतीजा है कि उत्तराखंड के जंगलों में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लेकिन हाथियों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ उनकी लगातार हो रही मौत भी चिंता का विषय बनती जा रही है. वहीं एलिफेंट कॉरिडोर पर इंसानों ने कब्जा कर लिया है. जिससे हाथियों का आबादी वाले क्षेत्रों में विचरण बढ़ा है. जिससे मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं.

Uttarakhand
एलिफेंट कॉरिडोर पर अतिक्रमण से बढ़ा मानव-वन्यजीव संघर्ष

जानकारों की मानें तो उत्तराखंड के जंगलों में विचरने वाले हाथी अब नए-नए रास्ते ढूंढ रहे हैं. उत्तराखंड का भाबर क्षेत्र का जंगल एशियन एलिफेंट कॉरिडोर का हिस्सा है. जहां से हाथियों के झुंड आते-जाते रहते हैं. हाथियों के ये झुंड नेपाल से भारत, भूटान और फिर आगे अरुणाचल के जंगल तक आते जाते रहते हैं. लेकिन अब धीरे-धीरे हाथियों के इस रास्ते में अतिक्रमण बाधा बन रहा है. जिसका नतीजा है कि अब मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं के साथ-साथ की हाथियों के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है. जानकारों की मानें तो हाथियों के रास्ते में मानव बस्तियां,सड़क, रेल, हाईवे सहित अन्य प्रोजेक्ट बन जाने की वजह से एशियन एलिफेंट कॉरिडोर में हाथियों का विचरण प्रभावित हुआ है.
पढ़ें-हल्द्वानी: एलीफेंट इंफोर्समेंट टीम हाथियों के आतंक से दिलाएगी निजात

जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में करीब 20 किमी चौड़ा और करीब 130 किमी लंबा एलिफेंट कॉरिडोर नेपाल सीमा से लगा हुआ है. जहां हाथी विचरण करते हैं. पूर्व पीसीएफ उत्तराखंड ईश्वरी दत्त पांडे के मुताबिक हाथियों के विचरण के लिए बड़े क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है. हाथियों को जंगल में ही पर्याप्त मात्रा में भोजन की जरूरत होती है.लेकिन कुछ दिनों में देखा गया है कि हाथियों को जंगल में पर्याप्त मात्रा में मिलने वाले भोजन नहीं मिल पा रहे हैं. इसके अलावा हाथियों के रास्तों में मानव खलल कहीं ना कहीं समस्या बनकर उभरा है. जिसका नतीजा है कि हाथी अपने पुराने रास्ते को छोड़कर नए रास्ते की तलाश कर रहे हैं.
पढ़ें-लाखों की सोलर फेंसिंग 3 महीने से है खराब, सताने लगा जंगली जानवरों का डर

हाथियों ने अपने मार्ग बदलने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रयास करते हैं. जहां उन्हें लगता है कि नहर है, ढाल ज्यादा है वो दूसरे रास्ते को चुनते हैं लेकिन जंगल यदि रहने दिया जाए तो हाथी ही नहीं अन्य वन्य जीवों के लिए भी परंपरागत रास्ते ही बेहतर हैं. अन्यथा मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. प्रभागीय वन अधिकारी हल्द्वानी बाबूलाल के मुताबिक नंधौर वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में हाथियों की तादाद काफी है, जहां से हाथी नेपाल को भी विचरण करते हैं. नंधौर अभ्यारण्य हल्द्वानी वन प्रभाग में गौला और शारदा नदियों के बीच स्थित है और 269.96 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है. नंधौर अभ्यारण्य नेपाल के ब्रह्मदेव और सुखलाफाटा वन्यजीव अभ्यारण्य और रामनगर के पश्चिमी जंगलों और तराई केंद्रीय वन प्रभाग के बीच एक कड़ी है.

हाथियों के कॉरिडोर पर इंसानों ने किया अतिक्रमण

हल्द्वानी: उत्तराखंड के जंगल हाथियों के लिए सुरक्षित वास स्थल माना जाता है. इसी का नतीजा है कि उत्तराखंड के जंगलों में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लेकिन हाथियों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ उनकी लगातार हो रही मौत भी चिंता का विषय बनती जा रही है. वहीं एलिफेंट कॉरिडोर पर इंसानों ने कब्जा कर लिया है. जिससे हाथियों का आबादी वाले क्षेत्रों में विचरण बढ़ा है. जिससे मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं.

Uttarakhand
एलिफेंट कॉरिडोर पर अतिक्रमण से बढ़ा मानव-वन्यजीव संघर्ष

जानकारों की मानें तो उत्तराखंड के जंगलों में विचरने वाले हाथी अब नए-नए रास्ते ढूंढ रहे हैं. उत्तराखंड का भाबर क्षेत्र का जंगल एशियन एलिफेंट कॉरिडोर का हिस्सा है. जहां से हाथियों के झुंड आते-जाते रहते हैं. हाथियों के ये झुंड नेपाल से भारत, भूटान और फिर आगे अरुणाचल के जंगल तक आते जाते रहते हैं. लेकिन अब धीरे-धीरे हाथियों के इस रास्ते में अतिक्रमण बाधा बन रहा है. जिसका नतीजा है कि अब मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं के साथ-साथ की हाथियों के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है. जानकारों की मानें तो हाथियों के रास्ते में मानव बस्तियां,सड़क, रेल, हाईवे सहित अन्य प्रोजेक्ट बन जाने की वजह से एशियन एलिफेंट कॉरिडोर में हाथियों का विचरण प्रभावित हुआ है.
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जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में करीब 20 किमी चौड़ा और करीब 130 किमी लंबा एलिफेंट कॉरिडोर नेपाल सीमा से लगा हुआ है. जहां हाथी विचरण करते हैं. पूर्व पीसीएफ उत्तराखंड ईश्वरी दत्त पांडे के मुताबिक हाथियों के विचरण के लिए बड़े क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है. हाथियों को जंगल में ही पर्याप्त मात्रा में भोजन की जरूरत होती है.लेकिन कुछ दिनों में देखा गया है कि हाथियों को जंगल में पर्याप्त मात्रा में मिलने वाले भोजन नहीं मिल पा रहे हैं. इसके अलावा हाथियों के रास्तों में मानव खलल कहीं ना कहीं समस्या बनकर उभरा है. जिसका नतीजा है कि हाथी अपने पुराने रास्ते को छोड़कर नए रास्ते की तलाश कर रहे हैं.
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हाथियों ने अपने मार्ग बदलने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रयास करते हैं. जहां उन्हें लगता है कि नहर है, ढाल ज्यादा है वो दूसरे रास्ते को चुनते हैं लेकिन जंगल यदि रहने दिया जाए तो हाथी ही नहीं अन्य वन्य जीवों के लिए भी परंपरागत रास्ते ही बेहतर हैं. अन्यथा मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. प्रभागीय वन अधिकारी हल्द्वानी बाबूलाल के मुताबिक नंधौर वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में हाथियों की तादाद काफी है, जहां से हाथी नेपाल को भी विचरण करते हैं. नंधौर अभ्यारण्य हल्द्वानी वन प्रभाग में गौला और शारदा नदियों के बीच स्थित है और 269.96 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है. नंधौर अभ्यारण्य नेपाल के ब्रह्मदेव और सुखलाफाटा वन्यजीव अभ्यारण्य और रामनगर के पश्चिमी जंगलों और तराई केंद्रीय वन प्रभाग के बीच एक कड़ी है.

Last Updated : Sep 23, 2023, 11:51 AM IST
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