हल्द्वानी: सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2022) बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के साथ-साथ परिवार की सुख शांति के लिए व्रत और पूजा करती हैं. इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. इस बार 29 मई को यानी कल वट सावित्री व्रत पर्व मनाया जाएगा.
इस बार वट सावित्री व्रत को लेकर असमंजस की स्थिति भी में बनी हुई है. कई लोग कुछ शास्त्रों में 29 मई जबकि कुछ ज्योतिष के अनुसार 30 मई को व्रत की तिथि मानी गई है लेकिन उत्तराखंड में 29 मई को वट सावित्री का व्रत मनाया जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं विधि-विधान से भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुख समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी (Astrologer Dr Naveen Chandra Joshi) के मुताबिक ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 29 मई दिन रविवार दोपहर से हो रही है. ऐसे में 29 मई को वट सावित्री का व्रत मनाया जाएगा. इसलिए पूजा करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजे के बाद से बन रहा है, जो शाम तक चलेगा. जबकि 30 मई को प्रतिपदा लग रही है ऐसे में 30 को पूजा नहीं हो सकती है.
वट सावित्री पूजा की मान्यता: शास्त्रों के अनुसार बरगद के वृक्ष में भगवान विष्णु, ब्रह्मा और भगवान शिव का वास होता है. इसलिए माना जाता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से इन तीनों भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. संतान प्राप्ति के लिए वट की पूजा करना लाभकारी माना जाता है.
मान्यता है कि तीर्थांकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी. पौराणिक मान्यता है कि सावित्री बरगद के पेड़ के नीचे अपने मृत पति के जीवन को वापस लायी थी. यमराज को अपने पुण्य धर्म से प्रसन्न करके आशीर्वाद प्राप्त किया था. यही कारण है कि वट सावित्री व्रत पर महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं. मान्यता है कि सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों की मां होने का वरदान भी मांगा था.
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ऐसे करें पूजा: सबसे पहले सुबह उठकर महिलाएं स्नान करें. उसके बाद वस्त्र धारण कर सोलह श्रृंगार करें. उसके बाद बांस या पीतल की टोकरी में पूजा सामग्री को इकट्ठा कर लें. सबसे पहले महिलाएं भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं और अपने नजदीकी वटवृक्ष के पास जाकर देवी सावित्री को वस्त्र और सोलह श्रृंगार चढ़ाएं. फल-फूल अर्पित करने के बाद वटवृक्ष की विधि-विधान से पूजा करें. उसके बाद वट वृक्ष की परिक्रमा करें. इसके अलावा वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की पुण्य कथा ध्यान पूर्वक सुननी चाहिए और पूरे दिन व्रत रखने के बाद व्रत का समापन करें.
ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक वट सावित्री व्रत के दिन जो भी महिलाएं 'ओंकार पूर्व के देवी वीणा पुस्तक धारिणी वेदमातर्नमस्तुभ्यं अवैधव्यं प्रयच्छ में! सपरिवारंभ्या सावित्री ब्रह्माभ्यां नमः' मंत्र का जाप करेंगी, उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी.