हल्द्वानी: हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, लेकिन सवाल ये है कि व्यवहारिकता में यह कितनी हमारे दिनचर्या में शरीक हो पाई है. हिंदी दिवस पर देश भर में हिंदी भाषा को अपनाने की बड़ी-बड़ी बातें तो की जाती हैं, लेकिन सच्चाई इससे एकदम उलट है. ऐसे में कुमाऊं के एक कवि ने अपनी कविताओं में उपेक्षित हो रही हिंदी को बयां किया है.
देश में सरकारी कार्यालय हो या बैंक इन सब जगहों पर हिंदी भाषा के बजाय अंग्रेजी को ही तरजीह दी जाती है. ऐसे में कवि वेद प्रकाश 'अंकुर' ने अपनी कविता में समाज में भाषा को लेकर वैचारिक मतभेदों के पिरोया है...
'गर्व हमें है हिंदी हमारी भाषा है, गर्व हमें हिंदी हमारी भाषा है'
हिंदी की फैली स्कृति अभी हमारी अभिलाषा है.
शर्म हमें कैसी हिंदी को अपनाने में, कहते हैं हिंदी राष्ट्रभाषा है.
हिंदी जीवन की परिभाषा है हिंदी जीवन की परिभाषा है.
उन्होंने आगे कटाक्ष करते हुए लिखा कि.....
सरकार से सभी विभागों में हिंदी में कार्य करने का आदेश हुआ, सरकार से सभी विभागों में हिंदी में कार्य करने का आदेश हुआ, किंतु आदेश था जो अंग्रेजी में लिखा हुआ था, किंतु आदेश था जो अंग्रेजी में लिखा हुआ था.
बता दें कि हल्द्वानी के रहने वाले कवि अंकुर ने अपनी कविताओं का लोहा बड़े-बड़े मंचों पर मनवा चुके हैं. अंकुर के द्वारा लिखित हिंदी की कवितायें अपने आप में अजूबा हैं. वहीं कवि का कहना है कि हिंदी कविता को संरक्षित करने और देश में हिंदी भाषा को अपनाने की जरूरत है. ऐसे में अब जरूरत है कि, हिंदी कविताओं का भी संरक्षण किया जाए तभी हिंदी को बढ़ावा मिलेगा.
वहीं, हिंदी दिवस के मौके पर कवि वेद प्रकाश का कहना है कि आज के दौर में हिंदी की कविताएं सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. अगर कविताएं जिंदा रहेंगी तो हमारी बोली, भाषा भी जिंदा रहेगी.