नैनीताल: हाई कोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल मामले में राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. रोडवेज कर्मचारी एसोसिएशन की ओर से डाली गई याचिका में बताया गया था कि प्रदेश में डग्गामार, ई-रिक्शा और अवैध बसों का संचालन हो रहा है. जिससे निगम को घाटा हो रहा है. लेकिन सरकार इस ओर कोई काम नहीं कर रही है. इसके अलावा लंबित वेतन के नाम पर राज्य सरकार ने निगम के लिए बकाया 21 करोड़ रुपए के बजाए सिर्फ 17 करोड़ जारी किए.
एसोसिएशन की ओर से हाई कोर्ट में डाली गई याचिका में बताया गया कि राज्य सरकार की तरफ से कर्मचारियों के अगस्त माह का वेतन, ईपीएफ व अन्य देय का भुगतान भी नहीं किया गया है. जबकि उत्तराखंड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक ने सरकार को हिल लॉस और अन्य भुगतान के लिए 85 करोड़ रुपए का बिल भेजा था, जिस पर सरकार ने विचार तक नहीं किया.
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याचिका में ये भी कहा गया है कि राज्य सरकार कर्मचारियों के खिलाफ एस्मा लगाने जा रही है, जो सरासर गलत है. सरकार कर्मचारियों को हड़ताल करने पर मजबूर कर रही है. इसके अलावा सरकार व परिवहन निगम न तो संविदा कर्मचारियों को नियमित कर रहे हैं, न ही उनको नियमित वेतन दे रहे हैं. पिछले 4 साल से ओवरटाइम का पैसा तक नहीं दिया गया. वहीं रिटायर्ड कर्मचारियों के देय का भी अब तक भुगतान नहीं किया गया है.
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सरकार और निगम कर्मियों के बीच कई बार समझौता
कर्मचारी यूनियन का ये भी कहना है कि सरकार और निगम का कई बार मांगों को लेकर समझौता हो चुका है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश परिवहन निगम द्वारा उत्तराखंड परिवहन निगम को 700 करोड़ रुपए देना है. इस वजह से उत्तराखंड परिवहन निगम को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन राज्य सरकार यूपी से बकाया लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है. इन सभी दिक्कतों का असर ये है कि उत्तराखंड परिवहन निगम नई बसें नहीं खरीद पा रहा है, न ही यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए सीसीटीवी समेत अन्य सुविधाएं की व्यवस्था कर पा रहा है. जबकि कोर्ट बसों में सीसीटीवी समेत अन्य सुविधाएं देने के आदेश दे चुका है. मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश नारायण सिंह धनिक की खंडपीठ ने सरकार और उत्तराखंड परिवहन निगम को जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.