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'दो साल में कुलसेकरपट्टिनम से रॉकेट लॉन्च किए जाएंगे', विशेष इंटरव्यू में बोले ISRO चेयरमैन नारायणन - V NARAYANAN INTERVIEW

इसरो चेयरमैन बनने के बाद कन्याकुमारी जिले में अपने गृहनगर पहुंचे वी. नारायणन ने ईटीवी भारत को दिए इंटरव्यू में विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की.

ISRO Chairman V Narayanan Exclusive Interview who visited his hometown in Kanyakumari Tamil Nadu
इसरो चेयरमैन वी. नारायणन (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 2, 2025, 9:48 PM IST

कन्याकुमारी: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नए चेयरमैन वी. नारायणन ने हाल ही में पदभार संभालने के बाद रविवार को पहली बार तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में अपने गृहनगर का दौरा किया. नागरकोइल के सरकारी गेस्ट हाउस पहुंचने पर उन्हें पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. इस अवसर पर अन्य अधिकारियों और पदाधिकारियों ने भी गुलदस्ता भेंट कर उनका स्वागत किया. कई अन्य गणमान्य लोगों ने भी उनसे मुलाकात की और उन्हें बधाई दी.

अपने पैतृक गांव मेलकट्टुविलई जाने से पहले, इसरो चेयरमैन नारायणन ने नागरकोइल सरकारी गेस्ट हाउस में ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में विभिन्न विषयों पर चर्चा की.

सवाल: आप एक साधारण परिवार से हैं और इसरो के अध्यक्ष बने. आज के छात्रों को आप क्या बताना चाहेंगे?

जवाब: मैंने एक साधारण गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. उसके बाद, मैंने अपना डिप्लोमा पूरा किया और इसरो में शामिल हो गया. कल, मैंने इसरो में 41 साल की सेवा पूरी की. मेरे जैसे कई वैज्ञानिक साधारण परिवारों से आते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस गांव से हैं; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस स्कूल में पढ़ते हैं. मायने यह रखता है कि हम कैसे पढ़ते हैं.

अगर कोई युवा सफल होना चाहता है, तो सिर्फ पढ़ाई ही महत्वपूर्ण नहीं है. उन्हें एक अच्छे दिल के साथ बड़ा होना चाहिए जो हर तरह से दूसरों की सेवा कर सके. कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. मेहनत भी जरूरी है; हमें अपने देश के लोगों के लिए जो करना है, उसे करने के लिए खुले दिमाग से काम करना चाहिए.

सवाल: इसरो में नौकरी के अवसरों के बारे में बताइए? युवाओं को उस नौकरी को पाने के लिए किस तरह की तैयारी करनी चाहिए?

जवाब: जरूरी नहीं है कि आप सिर्फ इसरो में ही काम करें. इसरो से जुड़ी कई निजी कंपनियों में युवाओं के लिए कई नौकरियां हैं. कई निजी कंपनियां सैटेलाइट इंजन वगैरह बनाती हैं. युवाओं को ऐसी नौकरियों का भी लाभ उठाना चाहिए. इसरो से सीधे जुड़ना अच्छी बात है. अगर ऐसा नहीं होता है तो आप दूसरी कंपनियों से जुड़ सकते हैं.

सवाल: इसरो में लंबे कार्य अनुभव के बाद आप अपने काम में क्या उपलब्धि मानते हैं?

जवाब: मैं सिर्फ एक विशिष्ट उपलब्धि के बारे में नहीं बता सकता. इसरो की उपलब्धियों का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता. यह सामूहिक प्रयास की सफलता है. इसरो में 20,000 कर्मचारी काम करते हैं. मैं इसरो की उपलब्धियों को उन सभी की उपलब्धियों के रूप में देखता हूं.

1962 से अब तक हमने छह तरह के रॉकेट विकसित किए हैं. हमने अलग-अलग तकनीकों से अलग-अलग तरीके से 131 सैटेलाइट तैयार किए हैं. ये सभी किसी एक व्यक्ति की सफलता नहीं कही जा सकती. ये इसरो के 20,000 कर्मचारियों की सफलता है.

हम हर दिन एक चुनौतीपूर्ण कार्य कर रहे हैं. हमने 40 साल पहले एक छोटा रॉकेट डिजाइन किया था. उस समय इसे एक उपलब्धि माना जाता था. जब हमने क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का उपयोग करके रॉकेट लॉन्च करने की कोशिश की, तो एक छोटे से परीक्षण में एक छोटी सी चिंगारी भी हमारे लिए उपलब्धि मानी जाती थी.

सवाल: जिन देशों ने हमें क्रायोजेनिक इंजन तकनीक सिखाने से इनकार कर दिया, वे भारत को किस तरह सम्मान देते हैं?

जवाब: क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन तकनीक एक ऐसी परियोजना है, जिसमें रॉकेट इंजन को तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पर संचालित किया जाता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से ईंधन के रूप में किया जाता है. लेकिन, जब दूसरे देशों ने हमें यह तकनीक सिखाने से मना कर दिया, तो हमने 1995 में क्रायोजेनिक परियोजना शुरू की. हम सभी वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को विकसित करने के लिए मिलकर काम किया. इसके लिए डिजाइन का काम तिरुवनंतपुरम में किया गया. हमने महेंद्रगिरी में इसका परीक्षण किया.

हमने न सिर्फ उस उच्च तकनीक में कामयाबी हासिल की है, जिसे दूसरे देशों ने हमें सिखाने से मना कर दिया था, बल्कि यह हम सभी के लिए गर्व की बात है कि भारत आज रॉकेट लॉन्च में क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का उपयोग करने वाला दुनिया का छठा देश है. ईश्वर की कृपा से मुझे क्रायोजेनिक इंजन तकनीक विकसित करने की परियोजना पर काम करने का मौका मिला.

सवाल: ऐसी कौन-सी परियोजनाएं हैं जिनसे आपको संतुष्टि मिली और जिन्हें आप अपनी उपलब्धियों में शामिल करना चाहेंगे?

जवाब: मैंने 7 साल तक 'मार्क 3' प्रोजेक्ट पर बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर काम किया. उस प्रोजेक्ट से मुझे संतुष्टि मिली. जब 'चंद्रयान 2' सफल नहीं हुआ तो राष्ट्रीय स्तर की एक समिति बनाई गई. मुझे उस समिति का नेतृत्व करने का मौका मिला. हमने मिलकर 30 दिन में सैकड़ों सुझाव दिए कि क्या करना है. उसके बाद प्रोजेक्ट सफल भी हुआ.

अगर कोई विफलता भी हुई तो हम उसे विफलता नहीं मानेंगे. हम उसे एक नए अनुभव के रूप में देखेंगे. जैसे अगर आपके पास प्रतिभा है तो प्रतिभाशाली लोग आपका सम्मान करेंगे, आज सभी देश भारत का सम्मान करते हैं.

सवाल: आप कन्याकुमारी जिले से इसरो प्रमुख का पद संभालने वाले तीसरे व्यक्ति हैं! इस बारे में आप क्या सोचते हैं?

जवाब: इसरो प्रमुख के पद पर बैठे लोगों को कन्याकुमारी जिले, तमिलनाडु और केरल में मत बांटिए. यह भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम है. प्रधानमंत्री मोदी के अधीन एक बड़ी परियोजना. हमारे कार्यालय में प्रतिभा को महत्व दिया जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस क्षेत्र से हैं. मैंने एक साधारण गांव से पढ़ाई की है. अगर मुझे इसरो प्रमुख के पद पर चुना गया है, तो यह मेरी प्रतिभा की पहचान है.

सवाल: कुलसेकरपट्टिनम में इसरो केंद्र की स्थापना के कार्य की स्थिति क्या है?

जवाब: थूथुकुडी जिले (तमिलनाडु) के कुलसेकरपट्टिनम में इसरो केंद्र स्थापित करने का काम जोरों पर है. अगले दो साल में वहां से रॉकेट लॉन्च किए जाएंगे.

कौन हैं नारायणन
नारायणन का जन्म 1964 में कन्याकुमारी जिले के मेलकट्टुविलई नामक गांव में हुआ. उन्होंने क्षेत्र के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, बाद में डिप्लोमा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और कई निजी और सरकारी संगठनों में काम किया.

नारायणन को तकनीक सीखने का बहुत शौक था और वो शोध में कुछ नया करना चाहते थे. इसी उद्देश्य से नारायणन 1984 में तकनीशियन के रूप में इसरो से जुड़े. अपनी प्रतिभा के दम पर वह इसरो में कई उच्च पदों की जिम्मेदारी संभाली और अब वह इसरो के चेयरमैन हैं.

यह भी पढ़ें- रेलवे का नया मोबाइल ऐप लॉन्च, टिकट बुक करना होगा आसान, जानें और क्या सुविधाएं मिलेंगी

कन्याकुमारी: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नए चेयरमैन वी. नारायणन ने हाल ही में पदभार संभालने के बाद रविवार को पहली बार तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में अपने गृहनगर का दौरा किया. नागरकोइल के सरकारी गेस्ट हाउस पहुंचने पर उन्हें पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. इस अवसर पर अन्य अधिकारियों और पदाधिकारियों ने भी गुलदस्ता भेंट कर उनका स्वागत किया. कई अन्य गणमान्य लोगों ने भी उनसे मुलाकात की और उन्हें बधाई दी.

अपने पैतृक गांव मेलकट्टुविलई जाने से पहले, इसरो चेयरमैन नारायणन ने नागरकोइल सरकारी गेस्ट हाउस में ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में विभिन्न विषयों पर चर्चा की.

सवाल: आप एक साधारण परिवार से हैं और इसरो के अध्यक्ष बने. आज के छात्रों को आप क्या बताना चाहेंगे?

जवाब: मैंने एक साधारण गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. उसके बाद, मैंने अपना डिप्लोमा पूरा किया और इसरो में शामिल हो गया. कल, मैंने इसरो में 41 साल की सेवा पूरी की. मेरे जैसे कई वैज्ञानिक साधारण परिवारों से आते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस गांव से हैं; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस स्कूल में पढ़ते हैं. मायने यह रखता है कि हम कैसे पढ़ते हैं.

अगर कोई युवा सफल होना चाहता है, तो सिर्फ पढ़ाई ही महत्वपूर्ण नहीं है. उन्हें एक अच्छे दिल के साथ बड़ा होना चाहिए जो हर तरह से दूसरों की सेवा कर सके. कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. मेहनत भी जरूरी है; हमें अपने देश के लोगों के लिए जो करना है, उसे करने के लिए खुले दिमाग से काम करना चाहिए.

सवाल: इसरो में नौकरी के अवसरों के बारे में बताइए? युवाओं को उस नौकरी को पाने के लिए किस तरह की तैयारी करनी चाहिए?

जवाब: जरूरी नहीं है कि आप सिर्फ इसरो में ही काम करें. इसरो से जुड़ी कई निजी कंपनियों में युवाओं के लिए कई नौकरियां हैं. कई निजी कंपनियां सैटेलाइट इंजन वगैरह बनाती हैं. युवाओं को ऐसी नौकरियों का भी लाभ उठाना चाहिए. इसरो से सीधे जुड़ना अच्छी बात है. अगर ऐसा नहीं होता है तो आप दूसरी कंपनियों से जुड़ सकते हैं.

सवाल: इसरो में लंबे कार्य अनुभव के बाद आप अपने काम में क्या उपलब्धि मानते हैं?

जवाब: मैं सिर्फ एक विशिष्ट उपलब्धि के बारे में नहीं बता सकता. इसरो की उपलब्धियों का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता. यह सामूहिक प्रयास की सफलता है. इसरो में 20,000 कर्मचारी काम करते हैं. मैं इसरो की उपलब्धियों को उन सभी की उपलब्धियों के रूप में देखता हूं.

1962 से अब तक हमने छह तरह के रॉकेट विकसित किए हैं. हमने अलग-अलग तकनीकों से अलग-अलग तरीके से 131 सैटेलाइट तैयार किए हैं. ये सभी किसी एक व्यक्ति की सफलता नहीं कही जा सकती. ये इसरो के 20,000 कर्मचारियों की सफलता है.

हम हर दिन एक चुनौतीपूर्ण कार्य कर रहे हैं. हमने 40 साल पहले एक छोटा रॉकेट डिजाइन किया था. उस समय इसे एक उपलब्धि माना जाता था. जब हमने क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का उपयोग करके रॉकेट लॉन्च करने की कोशिश की, तो एक छोटे से परीक्षण में एक छोटी सी चिंगारी भी हमारे लिए उपलब्धि मानी जाती थी.

सवाल: जिन देशों ने हमें क्रायोजेनिक इंजन तकनीक सिखाने से इनकार कर दिया, वे भारत को किस तरह सम्मान देते हैं?

जवाब: क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन तकनीक एक ऐसी परियोजना है, जिसमें रॉकेट इंजन को तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पर संचालित किया जाता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से ईंधन के रूप में किया जाता है. लेकिन, जब दूसरे देशों ने हमें यह तकनीक सिखाने से मना कर दिया, तो हमने 1995 में क्रायोजेनिक परियोजना शुरू की. हम सभी वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को विकसित करने के लिए मिलकर काम किया. इसके लिए डिजाइन का काम तिरुवनंतपुरम में किया गया. हमने महेंद्रगिरी में इसका परीक्षण किया.

हमने न सिर्फ उस उच्च तकनीक में कामयाबी हासिल की है, जिसे दूसरे देशों ने हमें सिखाने से मना कर दिया था, बल्कि यह हम सभी के लिए गर्व की बात है कि भारत आज रॉकेट लॉन्च में क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का उपयोग करने वाला दुनिया का छठा देश है. ईश्वर की कृपा से मुझे क्रायोजेनिक इंजन तकनीक विकसित करने की परियोजना पर काम करने का मौका मिला.

सवाल: ऐसी कौन-सी परियोजनाएं हैं जिनसे आपको संतुष्टि मिली और जिन्हें आप अपनी उपलब्धियों में शामिल करना चाहेंगे?

जवाब: मैंने 7 साल तक 'मार्क 3' प्रोजेक्ट पर बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर काम किया. उस प्रोजेक्ट से मुझे संतुष्टि मिली. जब 'चंद्रयान 2' सफल नहीं हुआ तो राष्ट्रीय स्तर की एक समिति बनाई गई. मुझे उस समिति का नेतृत्व करने का मौका मिला. हमने मिलकर 30 दिन में सैकड़ों सुझाव दिए कि क्या करना है. उसके बाद प्रोजेक्ट सफल भी हुआ.

अगर कोई विफलता भी हुई तो हम उसे विफलता नहीं मानेंगे. हम उसे एक नए अनुभव के रूप में देखेंगे. जैसे अगर आपके पास प्रतिभा है तो प्रतिभाशाली लोग आपका सम्मान करेंगे, आज सभी देश भारत का सम्मान करते हैं.

सवाल: आप कन्याकुमारी जिले से इसरो प्रमुख का पद संभालने वाले तीसरे व्यक्ति हैं! इस बारे में आप क्या सोचते हैं?

जवाब: इसरो प्रमुख के पद पर बैठे लोगों को कन्याकुमारी जिले, तमिलनाडु और केरल में मत बांटिए. यह भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम है. प्रधानमंत्री मोदी के अधीन एक बड़ी परियोजना. हमारे कार्यालय में प्रतिभा को महत्व दिया जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस क्षेत्र से हैं. मैंने एक साधारण गांव से पढ़ाई की है. अगर मुझे इसरो प्रमुख के पद पर चुना गया है, तो यह मेरी प्रतिभा की पहचान है.

सवाल: कुलसेकरपट्टिनम में इसरो केंद्र की स्थापना के कार्य की स्थिति क्या है?

जवाब: थूथुकुडी जिले (तमिलनाडु) के कुलसेकरपट्टिनम में इसरो केंद्र स्थापित करने का काम जोरों पर है. अगले दो साल में वहां से रॉकेट लॉन्च किए जाएंगे.

कौन हैं नारायणन
नारायणन का जन्म 1964 में कन्याकुमारी जिले के मेलकट्टुविलई नामक गांव में हुआ. उन्होंने क्षेत्र के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, बाद में डिप्लोमा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और कई निजी और सरकारी संगठनों में काम किया.

नारायणन को तकनीक सीखने का बहुत शौक था और वो शोध में कुछ नया करना चाहते थे. इसी उद्देश्य से नारायणन 1984 में तकनीशियन के रूप में इसरो से जुड़े. अपनी प्रतिभा के दम पर वह इसरो में कई उच्च पदों की जिम्मेदारी संभाली और अब वह इसरो के चेयरमैन हैं.

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