नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिथौरागढ़ जिले के मिलम जौहार गांव के ग्रामीणों की करीब ढाई हेक्टेयर भूमि को आईटीबीपी की अग्रिम चौकी निर्माण के लिए अधिग्रहित किए जाने के खिलाफ दायर विशेष अपील पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने अगली सुनवाई हेतु 6 जुलाई की तिथि नियत की है. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि डायरेक्टर रिहैबिलिटेशन का पद अभी है या नहीं.
सुनवाई के दौरान मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने कोर्ट को बताया कि सरकार इनको कंपनसेशन देने के लिए तैयार है और 15 करोड़ रुपए आईटीबीपी ने सरकार के पास जमा कर दिया है. आईटीबीपी ने 1963 से ही यहां पर बंकर व चौकियां बनाना शुरू कर दिया था. सरकार ने 2015 में इस भूमि को अधिकृत करना शुरू किया. यह सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र है. आईटीबीपी ने यहां पर बंकर, चौकियां, हेलीपैड, आवास व ऑफिस बना दिया है. इस क्षेत्र का विकास होने के कारण याचिकर्ता इस भूमि को वापस लेना चाहते हैं. अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता यहां रहते नहीं हैं. ये सभी हल्द्वानी रहते हैं. यह भूमि बंजर भूमि है. इनके पास मुआवजा लेने के अलावा और कोई उपाय नहीं है.
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गौरतलब है कि हीरा सिंह पांगती व अन्य ने विशेष अपील दायर कर एकलपीठ के आदेश को चुनौती दी है. पूर्व में एकलपीठ ने सरकार की अधिसूचना को सही ठहराया था. सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के विरुद्ध ग्रामीणों ने एकलपीठ में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार ने एक अगस्त 2015 को तहसील मुनस्यारी के मिलम गांव की 2.4980 हेक्टेयर भूमि आईटीबीपी की अग्रिम चौकी बनाने के लिए अधिग्रहित की थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे 1880 से इस गांव में रहते हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत भोटिया जनजाति में सूचीबद्ध हैं. जिन्हें सरकार ने विशेष अधिकार दिए हैं. सरकार की ओर से उनकी जमीन का अधिग्रहण करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है.
एकलपीठ में सरकार की ओर से बताया गया कि चीन सीमा पर स्थित मिलम गांव वास्तविक नियंत्रण रेखा से 20-25 किमी की दूरी पर है, जो चीनी सेना के फायरिंग रेंज में है. मिलम गांव सड़क मार्ग से जुड़ा अंतिम गांव है. जहां पर सेना अथवा अर्धसैनिक बलों की चौकी होना आवश्यक है. ताकि जरूरत के समय वहां तक युद्ध सामग्री पहुंचाई जा सके. अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे दुर्गम क्षेत्र में पर्याप्त बुनियादी ढांचे के साथ सुरक्षा प्रदान करना सार्वजनिक उद्देश्य के दायरे में होगा. एकलपीठ ने पूर्व में इसे सामरिक दृष्टि व देश सुरक्षाहित को देखते हुए सरकार की अधिसूचना को सही ठहराया था और याचिकाकर्ताओं की याचिका को निरस्त कर दिया था. इसके विरुद्ध याचिकाकर्ताओं ने खंडपीठ में विशेष अपील दायर की.