नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दून घाटी को सितंबर 1989 को इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के बाद भी वहां नियम विरुद्ध तरीके से किए जा रहे विकास कार्यों को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सेक्रेटरी पर्यटन से पूछा है कि केंद्र सरकार के शासनादेश सितंबर 1989 के तहत जिसमें दून घाटी को इको सेंसटिव जोन घोषित किया गया था, उसके बाद से अब तक वहां विकास कार्य हेतु क्या मास्टर प्लान बनाया गया है. पर्यटन विकास हेतु क्या पॉलिसी बनाई गयी, इससे सम्बंधित समस्त दस्तावेजों के साथ एक विस्तृत शपथपत्र 6 सितंबर तक कोर्ट में पेश करने को कहा है.
साथ में कोर्ट ने पर्यटन सचिव से भी उक्त तिथि को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में उपस्थित रहने को कहा था. जिसके बाद पर्यटन सचिव पूर्व के आदेश के क्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में उपस्थित रहे. पिछली तिथि को कोर्ट ने पूछा था कि 1 सितंबर 1989 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना पर क्या हुआ. जिसमें दून घाटी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया था और राज्य पर्यटन विभाग ने पर्यटन विकास योजना बनाई है या नहीं अवगत कराएं? जिस पर कोर्ट ने उनसे फिर से विस्तृत शपथ पत्र पेश करने को कहा है.
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मामले के अनुसार देहरादून निवासी आकाश वशिष्ठ ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि साल 1989 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय केंद्र सरकार ने दून घाटी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था. लेकिन 34 साल बीत जाने के बाद भी इस शासनादेश को प्रभावी तौर पर लागू नहीं किया गया. जिसकी वजह से दून घाटी में नियम विरुद्ध तरीके से विकास कार्य, खनन, पर्यटन और अन्य गतिविधियां गतिमान हैं. विकास कार्यों हेतु मास्टर प्लान नहीं है न ही पर्यटन के लिए पर्यटन विकास योजना बनाई गई. जिसकी वजह से नियम विरुद्ध विकास कार्य हो रहे हैं. जनहित याचिका में कहा गया कि दून घाटी में समस्त विकास कार्य मास्टर प्लान के अनुरूप हों. विकास कार्य करने से पहले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति ली जाए.