नैनीताल: उत्तराखंड में नियम विरुद्ध संचालित हो रहे स्टोन क्रशर के मामले नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव समेत सचिव उद्योग को 10 जून को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए हैं.
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से ये पूछा
बुधवार को मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि उत्तराखंड में स्टोन क्रशर लगाने की अनुमति देने से पहले साइलेंट जोन, इंडस्ट्रियल जोन व रेजिडेंशियल जोन को निर्धारित किया जाता है या नहीं? याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि उत्तराखंड को बने हुए 20 साल हो चुके हैं. अभीतक राज्य सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि कौन सा क्षेत्र रेजिडेंशियल है और कौन सा इंडस्ट्रियल और कौन सा साइलेंट जोन? जिस वजह से उत्तराखंड में अनियंत्रित रूप से स्टोन क्रशर स्थापित हो रहे हैं. इसका पर्यावरण समेत मानव जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है.
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मामले को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने प्रदेश के मुख्य सचिव और सचिव उद्योग को अगली सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होकर जवाब देने को कहा है. वहीं मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में जितने भी खनन समेत स्टोन क्रशर की याचिकाएं और जनहित याचिका चल रही है, उनको एक साथ क्लब कर दिया है. ताकि सरकार की स्टोन क्रशर और खनन नीति स्पष्ट हो सके.
याचिकाकर्ता ने ये कहा...
बता दें कि रामनगर निवासी आनंद सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. उन्होंने कहा था कि कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास सक्खनपुर में मनराल स्टोन क्रशर अवैध रूप से संचालित किया जा रहा है. स्टोन क्रशर स्वामी के पास प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का लाइसेंस और राज्य सरकार की वैध अनुमति नहीं है. स्टोन क्रशर संचालित करने में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लंघन किया गया है. लिहाजा स्टोन क्रशर को बंद किया जाए.
वहीं याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्होंने क्रशर को बंद करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और वन विभाग के उच्च अधिकारियों को प्रत्यावेदन दिया गया, लेकिन उनके प्रत्यावेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.