हल्द्वानीः भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज पुण्यतिथि है, लेकिन हल्द्वानी में आज गोविंद बल्लभ पार्क में स्थित पंडित गोविंद बल्लभ पंत की मूर्ति पर किसी भी जनप्रतिनिधि ने माल्यार्पण करने की जहमत तक नहीं उठाई. ऐसे में देखा जा सकता है कि भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की उपेक्षा किस तरह से कुमाऊं मंडल के हल्द्वानी शहर के लोग कर रहे हैं. पंडित गोविंद बल्लभ पंत की योगदान को कभी भी नहीं बुलाया जा सकता है, क्योंकि पंडित पंत आजादी के नायक थे.
गोविंद बल्लभ पंत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे. गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ग्राम खूंटी में हुआ था. सन 1957 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. गोविंद बल्लभ पिता का नाम मनोरथ पंथ था. बचपन में उनके पिता का साया छूट गया और देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उनके दादा बद्री दत्त जोशी ने पूरी की. 1905 में वह इलाहाबाद चले गए और उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की.
वर्ष 1907 में बीए और 1909 में कानून की डिग्री पढ़ाई पूरी करने के बाद 1910 में वह अल्मोड़ा आकर वकालत करने लगे. समय के साथ उनके वकालत की धाक जमने लगी और देश में मशहूर वकीलों में जाने जाने लगे. गोविंद बल्लभ पंत साफ-सुथरे और अच्छे मुकदमे लड़ने वाले वकील के नाम से जाने जाते थे. उन्होंने रानीखेत और काशीपुर में भी वकालत की. 1899 में 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह गंगा देवी के साथ हो गया. इलाहाबाद में छात्र जीवन के दौरान ही कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में जाने जाने लगे. दिसंबर 1991 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के माध्यम से राजनीति में आए. 9 अगस्त 1925 में काकोरी कांड में ब्रिटिश खजाना लूटने वाले युवकों की पैरवी की.
1930 के नमक छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने पर देहरादून जेल में भी डाला गया था. 1934 में गोविंद बल्लभ पंत केंद्रीय विधानसभा के लिए चुने गए. उनके राजनीतिक कौशल ने नेताओं का दिल जीत लिया. वह विधानसभा में कांग्रेसी पार्टी के उप नेता बने. उन्होंने 1937 से 1939 तक संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री के रूप में संभाला और 1947 के चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद वह स्वतंत्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने.
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गोविंद बल्लभ पंत 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1954 तक उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री प्रथम मुख्यमंत्री रहे. बाद में वह भारत के गृह मंत्री बने जो 1955 से 1961 तक रहे. वे भारत के इकलौते ऐसे नेता हैं जो आजादी से पहले और आजादी के बाद लगातार किसी एक प्रांत के मुख्यमंत्री रहे. भारत के गृह मंत्री रहते हुए गोविंद बल्लभ पंत ने संविधान में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा को दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा खत्म करने का कार्य किया. महान देशभक्त कुशल प्रशासक सफल वक्ता होने के चलते सन 1957 में गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उनको भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा. केंद्रीय गृह मंत्री के पद पर रहते हुए हृदयाघात के कारण 7 मई 1961 को उनका देहांत हो गया. आज गोविंद बल्लभ पंत हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में रहती हैं, क्योंकि गोविंद बल्लभ पंत का योगदान उत्तराखंड के साथ-साथ पूरे देश के लिए रहा है.