हल्द्वानीः कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में ऐतिहासिक रामलीला का मंचन हो रहा है. इस रामलीला को 125 साल से ज्यादा समय हो गया है. समय के साथ रामलीला के मंचन में कई परिवर्तन आए हैं. जिसमें सबसे बड़ा परिवर्तन बेटियों का रामलीला में प्रतिभाग करना है. यहां बेटियां 50 फीसदी से ज्यादा पात्रों का रोल दमदार तरीके से निभा रही हैं. जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान की कसौटी पर खरा उतर रही हैं.
हल्द्वानी के आवास विकास में चल रही रामलीला में मुख्य पात्रों का किरदार बेटियां निभा रही हैं. यहां लड़कियां राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न, शबरी, मंदोदरी जैसे दमदार किरदारों को स्टेज पर सरलता से निभा कर जनता की वाहवाही लूट रही हैं. उनके किरदार को लोग जमकर सराह रहे हैं. रामलीला में अभिनय करने वाली लड़कियां स्कूल, कॉलेज की हैं. जो पहली बार रामलीला मंचन में अपना अपना रोल अदा कर रही हैं.
बेझिझक रामलीला के मंच पर अपने डायलॉग से जनता का मन मोह लेने वाली बेटियों का कहना है कि अगर उन्हें किसी भी क्षेत्र में मौका दिया जाए तो वो अपना लोहा मनवाने में पीछे नहीं रहती हैं. रामलीला में बेटियों को आगे लाने और बढ़ाने की शानदार पहल है. मौका मिला तो आगे भी दमदार अभिनय करेंगी.
रामलीला की मेकअप आर्टिस्ट प्रेमा बिष्ट का कहना है कि 38 साल के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि राम परिवार के सभी पात्रों का किरदार बेटियां अदा कर रही हैं. उन्हें भी बहुत अच्छा लगता है, जब रामलीला मंचन के दौरान बेटियों का मेकअप करती हैं. बेटियों को रामलीला मंच सौंपे जाने से बेटियां और मजबूत होंगी और आने वाले भविष्य में कहीं अच्छी जगह बेहतर परफॉर्मेंस देंगी.
वहीं, पंचेश्वर महादेव मंदिर रामलीला कमेटी से जुड़े लोग बताते हैं कि नवरात्रि में कन्या पूजन होता है. सभी कन्या माता का स्वरूप होती हैं तो ऐसे में माता रानी भी प्रसन्न हो जाएंगी. यह कदम महिला सशक्तिकरण को भी मजबूत कर रहा है. बेटियों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें किसी न किसी रूप में आगे बढ़ाना होगा. कुछ साल पहले तक रामलीला में महिला किरदारों का अभिनय भी लड़के किया करते थे, लेकिन अब बेटियां ही सभी किरदार निभा रही हैं.
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पहाड़ की रामलीला में बेटियों के किरदार (Girls Playing Character in Ramlila) निभाने से पलायन, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव भी नजर आ रहा है. अब दशकों से पहाड़ की रीढ़ रही बेटियों ने अब उत्तराखंड की संस्कृति और रामलीला मंचन को बचाने की जिम्मेदारी उठा ली है. इसे महिला सशक्तिकरण में बेहतर कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.