हल्द्वानी: उत्तराखंड के जंगलों में कई कई विलुप्त प्रजातियों के पेड़ पौधे हैं. इन विलुप्त प्रजातियों को संरक्षित करने का काम उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र पिछले कई वर्षों से कर रहा है. इसी के साथ हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में देश विदेश में अपनी पहचान बना चुका है. अनुसंधान केंद्र द्वारा कई विलुप्त प्रजातियों के पेड़ पौधों को संरक्षित करने का काम किया जा रहा है .अनुसंधान केंद्र में डायनासोर काल के पेड़ पौधों को भी संरक्षित किया गया है, यहां मिनी जुरासिक पार्क के माध्यम से लोगों को इन पेड़ पौधों के विषय में जानकारी दी जाती है.
अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि वन अनुसंधान केंद्र की ओर से देश का पहला वानस्पतिक मिनी जुरासिक पार्क तैयार किया गया है. इसमें डायनासोर का भोजन में शामिल थी. पार्क में मुख्य रूप से जिंको बाइलोबा, सीकड फर्न लिवरवर्ट्स, हॉर्सटेल, मोसेस और कोनिफर के पौधे लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि शंकुधारी पौधे भी जुरासिक काल में ही विकसित हुए और जुरासिक काल के अंत तक मौजूद रहे. इन्हीं वनस्पतियों को खाकर डायनासोर लंबे समय तक जीवित रहे. उन्होंने ने बताया कि जिंको बाइलोबा चीन का राष्ट्रीय पौधा है, यह कई औषधीय गुणों से भरपूर है.
इसका उपयोग दवाइयों में भी किया जाता है. मुख्य रूप से डायनासोर काल की यह वनस्पति विलुप्ति की कगार पर है. लेकिन उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में अभी भी इन पौधों को देखा जा सकता है. वहीं वन अनुसंधान केंद्र में इन पौधों को संरक्षित करने का काम किया जा रहा है. जुरासिक पार्क में बड़ी संख्या में छात्र और शोधार्थी पहुंच रहे हैं. यहां लगे बोर्ड के जरिये इनके बारे में पूरी जानकारी भी मिल रही है. असल में डायनासोर को इंसानों ने नहीं देखा, लेकिन इस पार्क के जरिए लोगों को पता चल सकेगा कि आखिर डायनासोर क्या खाते थे. पार्क के अंदर शाकाहारी और मांसाहारी डायनासोर की मूर्तियों को भी डिस्प्ले किया गया है.