हल्द्वानीः उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी का आज 95वां जन्मदिन के साथ ही आज उनकी पहली पुण्यतिथि भी है. 18 अक्टूबर 2018 को कांग्रेसी कार्यकर्ता और उनके समर्थक उनका जन्मदिन धूमधाम से मना रहे थे, तभी लोगों को मनहूस खबर लगी कि नारायण दत्त तिवारी इस दुनिया से अलविदा हो गए. फिर क्या पूरे उत्तराखंड सहित पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट
94 वर्षीय नारायण दत्त तिवारी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती थे .18 अक्टूबर 2018 को उनके समर्थक उनका जन्मदिन धूमधाम से मना रहे थे तभी एनडी तिवारी का अस्पताल में निधन हो गया, जिसके बाद 20 अक्टूबर को उनका पार्थिव शरीर उत्तराखंड के हल्द्वानी के काठगोदाम स्थित सर्किट लाया गया.
सैकड़ों वाहनों के काफिले साथ पंतनगर एयरपोर्ट से हल्द्वानी के सर्किट हाउस में एनडी तिवारी का पार्थिव शरीर पहुंचा. इस दौरान लोगों ने पुष्प वर्षा कर उनको याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी और 21 अक्टूबर को रानी बाग स्थित चित्रशिला घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया. एनडी तिवारी के अंतिम संस्कार में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री समेत कई कैबिनेट मंत्री और प्रदेश के कई अन्य दलों के नेता भी पहुंचे थे.
जिस सर्किट हाउस का निर्माण करवाया, वहीं अंतिम संस्कार का गवाह बना
उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम नारायण तिवारी को यह पता नहीं था कि जिस सर्किट हाउस का उन्होंने शिलान्यास किया था वही उनके अंतिम संस्कार का गवाह बनेगा. काठगोदाम सर्किट हाउस उनका जीवन का अंतिम यादगार बना.
14 साल पूर्व तिवारी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए इस सर्किट हाउस को बनवाया था. उनके पार्थिव शरीर को अंतिम बार इस सर्किट हाउस में रखा गया था. नारायण दत्त तिवारी का उत्तराखंड और जन्मभूमि नैनीताल जिले से उनका लगाव इस बात से दर्शाता है कि सक्रिय राजनीति से हटने के बावजूद वे कई बार इस सर्किट हाउस में रहने के लिए आते थे.
कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने बताया था पिता तुल्य
अंतिम विदाई में पहुंचे कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य उस समय काफी भावुक हो गए थे. उन्होंने बताया कि एनडी तिवारी उनके पिता तुल्य थे और उनके राजनीतिक गुरु भी थे. एनडी तिवारी के बदौलत ही आज वे इस मुकाम पर हैं. उन्होंने बताया कि चुनाव के दौरान टिकट दिलाने में एनडी तिवारी का विशेष योगदान रहता था और एनडी तिवारी को विकास को कभी नहीं भुलाया जा सकता है.
जब 500 रुपए लेकर घर से भागे थे एनडी
हल्द्वानी से नारायण दत्त तिवारी का काफी पुराना रिश्ता रहा है. बचपन से लेकर राजनीति की शुरुआत करने तक एनडी की कई यादें जुड़ी रहीं हैं. नारायण दत्त तिवारी के साथ लंबे समय से राजनीति में सहयोगी रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिश्चंद्र दुर्गापाल ने बताया था कि एनडी तिवारी 12वीं पास करने के बाद 500 रुपए लेकर घर से भाग आए थे. 3 साल बाद उनके पिता पूर्णानंद तिवारी को पता चला कि उनका पुत्र इलाहाबाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ आनंद भवन में रहकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन कर रहा है.
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बाद में तिवारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र यूनियन के अध्यक्ष बने. पहली बार नैनीताल जिले में चुनाव लड़ने पर हल्द्वानी और लाल कुआं के लोगों से काफी सहयोग मिला. गन्ना बावड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहां के गन्ना किसानों ने तिवारी को उस समय 9,000 रुपए गन्ने की पर्ची देकर उनके चुनाव में सहयोग किया था.
जॉलीग्रांट एयरपोर्ट का नाम एनडी तिवारी रखे जाने की उठी थी मांग
एनडी तिवारी के पुत्र रोहित शेखर जो इस दुनिया में नहीं हैं, उन्होंने अपने पिता के सम्मान के लिए यहां की सरकार से भी लड़ाई लड़ी. रोहित शेखर ने जॉलीग्रांट एयरपोर्ट का नाम अपने पिता एनडी तिवारी के नाम पर रखने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि अगर जौलीग्रांट एयरपोर्ट को एनडी तिवारी नाम दिया जाए तो उनका सम्मान होगा.
फिलहाल, एनडी तिवारी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी उत्तराखंड के लोगों के जेहन में हैं. एनडी तिवारी के उत्तराखंड और देश के लिए किए गए विकास और योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. इसीलिए एनडी तिवारी इतने सौभाग्यशाली रहे कि उनका जन्मदिन और मृत्यु एक ही दिन हुआ.