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कुमाऊं में रेशम उत्पादन से किसानों की आर्थिकी हो रही मजबूत, विभाग चला रहा कई योजनाएं

कुमाऊं मंडल में रेशम उत्पादन को लेकर किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. रेशम उत्पादन से किसानों की आर्थिकी को भी मजबूत किया जा रहा है. इसके लिए रेशम विभाग किसानों को निशुल्क शहतूत के पेड़ और रेशम कीट भी उपलब्ध करवा रहा है.

Farmers' economy is getting stronger due to silk production in Kumaon division
रेशम उत्पादन से किसानों की आर्थिकी हो रही मजबूत
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Published : Sep 22, 2022, 12:40 PM IST

Updated : Sep 22, 2022, 1:06 PM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ अब रेशम उत्पादन (silk production in uttarakhand) के क्षेत्र में भी बेहतर काम कर रहे हैं. रेशम विभाग रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के योजनाएं चला रहा है. इसी के तहत कुमाऊं मंडल करीब 3100 काश्तकार रेशम उत्पादन (silk production Kumaon Division) के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं.

इस समय रेशम उत्पादन का अनुकूल मौसम है. ऐसे में रेशम विभाग इन दिनों रेशम उत्पादकों के लिए कीट तैयार करने में जुटा हुआ है. विभाग कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीड़ों का पालन कर काश्तकारों को वितरित कर रहा है. उपनिदेशक रेशम विभाग हेमचंद्र(Hemchandra Deputy Director Silk Department) ने बताया उत्तराखंड में साल में दो बार रेशम का उत्पादन होता है. सितंबर और मार्च का महीना रेशम उत्पादन के लिए अनुकूल माना जाता है. रेशम उत्पादन के अनुकूल मौसम को देखते हुए विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चला रहा है. जिसमें किसानों को निशुल्क शहतूत के पेड़ और रेशम के कीड़े को उपलब्ध कराये जा रहे हैं.

कुमाऊं में रेशम उत्पादन से किसानों की आर्थिकी हो रही मजबूत
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किसान 21 दिन तक इन रेशम के कीड़ों को पालन करेंगे. जिसके बाद वह उनसे तैयार रेशम के कोए को विभाग को उपलब्ध कराएंगे. जहां किसानों को उनके कोए का उचित मूल्य दिया जाएगा. उन्होंने बताया रेशम की खेती का काम केवल एक महीने का होता है. किसान अगर रेशम उत्पादन का काम करता है तो अन्य खेती के साथ किसान साल में दो बार रेशम का उत्पादन कर 30 से 40 हजार तक की आमदनी अलग से कर सकता है.
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उपनिदेशक रेशम विभाग हेमचंद्र(Hemchandra Deputy Director Silk Department) ने बताया किसानों की आय को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग किसानों को पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है. रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह का इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं है. किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है. विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को निशुल्क 300 शहतूत के पेड़ दिए जाते हैं. इसके अलावा किसानों को रेशम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है. जिससे कि किसान ज्यादा से ज्यादा रेशम उत्पादन के क्षेत्र में जुड़ सकें.
पढे़ं- उत्तराखंड में अगले एक हफ्ते तक जमकर बरसेंगे बदरा, 30 सितंबर तक विदा होगा मानसून

उन्होंने बताया कुमाऊं मंडल में 40 रेशम के राजकीय सेंटर हैं. जिसके माध्यम से किसानों को रेशम के कीट उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इस मौसम में 91500 डीएलएफ रेशम अंडे से कीट का उत्पादन किया गया है. जिसके माध्यम से इस सीजन में 29000 किलो रेशम कोया तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है. जहां इस कोए से करीब 6000 किलो रेशम का धागा तैयार हो सकेगा.

हल्द्वानी: उत्तराखंड के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ अब रेशम उत्पादन (silk production in uttarakhand) के क्षेत्र में भी बेहतर काम कर रहे हैं. रेशम विभाग रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के योजनाएं चला रहा है. इसी के तहत कुमाऊं मंडल करीब 3100 काश्तकार रेशम उत्पादन (silk production Kumaon Division) के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं.

इस समय रेशम उत्पादन का अनुकूल मौसम है. ऐसे में रेशम विभाग इन दिनों रेशम उत्पादकों के लिए कीट तैयार करने में जुटा हुआ है. विभाग कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीड़ों का पालन कर काश्तकारों को वितरित कर रहा है. उपनिदेशक रेशम विभाग हेमचंद्र(Hemchandra Deputy Director Silk Department) ने बताया उत्तराखंड में साल में दो बार रेशम का उत्पादन होता है. सितंबर और मार्च का महीना रेशम उत्पादन के लिए अनुकूल माना जाता है. रेशम उत्पादन के अनुकूल मौसम को देखते हुए विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चला रहा है. जिसमें किसानों को निशुल्क शहतूत के पेड़ और रेशम के कीड़े को उपलब्ध कराये जा रहे हैं.

कुमाऊं में रेशम उत्पादन से किसानों की आर्थिकी हो रही मजबूत
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किसान 21 दिन तक इन रेशम के कीड़ों को पालन करेंगे. जिसके बाद वह उनसे तैयार रेशम के कोए को विभाग को उपलब्ध कराएंगे. जहां किसानों को उनके कोए का उचित मूल्य दिया जाएगा. उन्होंने बताया रेशम की खेती का काम केवल एक महीने का होता है. किसान अगर रेशम उत्पादन का काम करता है तो अन्य खेती के साथ किसान साल में दो बार रेशम का उत्पादन कर 30 से 40 हजार तक की आमदनी अलग से कर सकता है.
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उपनिदेशक रेशम विभाग हेमचंद्र(Hemchandra Deputy Director Silk Department) ने बताया किसानों की आय को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग किसानों को पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है. रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह का इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं है. किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है. विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को निशुल्क 300 शहतूत के पेड़ दिए जाते हैं. इसके अलावा किसानों को रेशम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है. जिससे कि किसान ज्यादा से ज्यादा रेशम उत्पादन के क्षेत्र में जुड़ सकें.
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उन्होंने बताया कुमाऊं मंडल में 40 रेशम के राजकीय सेंटर हैं. जिसके माध्यम से किसानों को रेशम के कीट उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इस मौसम में 91500 डीएलएफ रेशम अंडे से कीट का उत्पादन किया गया है. जिसके माध्यम से इस सीजन में 29000 किलो रेशम कोया तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है. जहां इस कोए से करीब 6000 किलो रेशम का धागा तैयार हो सकेगा.

Last Updated : Sep 22, 2022, 1:06 PM IST
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