ETV Bharat / state

सावित्री बाई फुले की 190वीं जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन

भारतीय समाज की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को उनकी 190वीं जयंती पर रामनगर में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया गया.

ramnagar news
ramnagar news
author img

By

Published : Jan 3, 2021, 5:03 PM IST

रामनगरः भारतीय समाज की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को उनकी 190वीं जयंती पर रामनगर में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया गया. रचनात्मक शिक्षा मंडल द्वारा रामनगर के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित 20 से अधिक पुस्तकालयों में बच्चों ने उनके जीवन के बारे में जाना और उनका चित्र भी बनाया.

उनके जीवन के बारे में बताते हुए नविंदु मठपाल ने कहा कि, सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री और प्रथम महिला शिक्षिका थीं. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है. 1 जनवरी 1848 को उन्होंने बालिकाओं के लिए पुणे में पहले विद्यालय की स्थापना की. उस समय की कट्टरपंथी ताकतों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ, इसलिए वह जब स्कूल में जातीं तो उनके ऊपर कीचड़ फेंका जाता था, पर वह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं और साथ में एक अलग से साड़ी लेकर जाती थीं जिसे स्कूल जाकर बदल लेती थीं.

उनका जन्म महाराष्ट्र में 3 जनवरी 1831 को एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था. वहीं शिक्षक नंदराम आर्य ने बताया कि उस वक्त बहुत सारी लड़कियां महज 12-13 की उम्र में विधवा हो जाती थीं. जिसके बाद उनका केसवपन कर उन्हें कुरूप बनाया जाता था, ताकि उनकी तरफ कोई पुरुष आकर्षित ना हो सके. लेकिन अनेक बार वह ठग ली जाती थीं. ऐसी गर्भवती हुई विधवाओं का समाज बहिष्कार कर देता था. ऐसे में उस गर्भवती विधवा के सामने सिर्फ दो पर्याय बचते थे या तो वह उस बच्चे को मार दे या खुद आत्महत्या कर लें.

इस अमानवीय नरसंहार से महिलाओं को बाहर निकालने के लिए ज्योतिबा और सावित्री माई ने गर्भवतियों के लिए प्रसुतिग्रह शुरू किया, जिसका नाम था "बालहत्या प्रतिबंधक ग्रह" जो उन गर्भवती महिलाओं के लिए उनका घर भी था. वहीं सुभाष गोला ने बताया कि, विधवा केशवपन का विरोध करते हुए सावित्रीबाई ने एक गर्भवती महिला को आत्महत्या करने से रोका और उसे वादा किया कि, होने वाले बच्चे को वह अपना नाम देंगे. सावित्रीबाई ने उस महिला को पूरी सहायता दी. बाद में उस महिला से जन्मे बच्चे को सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने अपना नाम देकर उसकी परवरिश की, उसे पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया.

ये भी पढ़ेंः GB पंत विश्वविद्यालय के कुलपति का कृषि कानूनों पर बयान, कहा- 12 हिमालयी राज्यों के लिए साबित होगा वरदान

छुआछूत जातिवाद जैसे अमानवीय परंपरा को नष्ट करने के लिए अविरल काम करने वाले ज्योतिबा का सावित्रीबाई ने बराबरी से साथ निभाया. वहीं ज्योतिबा की मौत के बाद सावित्रीबाई ने उनकी चिता को आग लगाई. यह क्रांतिकारी कदम उठाने वाली सावित्री देश की पहली महिला थीं. ज्योतिबा की मृत्यु के बाद सावित्रीबाई ने उनके आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथों में लिया और पूरी कुशलता से उसे निभाया.

इसी दौरान उन्होंने काव्य भूलें, बावन कशी और सुबोध रत्नाकर नामक ग्रंथों का निर्माण कर समाज का प्रबोधन किया और वह आधुनिक जगत में मराठी की पहली कवियत्री बनीं. इसके साथ ही 1897 में पुणे में फैले प्लेग के दौरान सावित्रीबाई दिन-रात मरीजों की सेवा में लगी थीं. उन्होंने प्लेग से पीड़ित गरीब बच्चों के लिए कैंप लगाया था. प्लेग से पीड़ित बच्चे पांडुरंग गायकवाड को लेकर जब वह जा रही थीं तो उन्हें भी प्लेग ने जकड़ लिया और 10 मार्च 9897 को सावित्रीबाई का देहांत हो गया.

इस अवसर पर पुस्तकालयों में बच्चों द्वारा सावित्रीबाई फुले का चित्र भी बनाया गया. इसके साथ ही उनके जीवन पर आधारित फिल्म भी दिखाई गई. वहीं स्कूली बच्चों के व्हाट्सएप ग्रुप 'जश्न ए बचपन' में नानकमत्ता से प्रमोद ने सावित्रीबाई के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उनके समाज में योगदान पर अपनी बात रखी.

रामनगरः भारतीय समाज की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को उनकी 190वीं जयंती पर रामनगर में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया गया. रचनात्मक शिक्षा मंडल द्वारा रामनगर के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित 20 से अधिक पुस्तकालयों में बच्चों ने उनके जीवन के बारे में जाना और उनका चित्र भी बनाया.

उनके जीवन के बारे में बताते हुए नविंदु मठपाल ने कहा कि, सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री और प्रथम महिला शिक्षिका थीं. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है. 1 जनवरी 1848 को उन्होंने बालिकाओं के लिए पुणे में पहले विद्यालय की स्थापना की. उस समय की कट्टरपंथी ताकतों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ, इसलिए वह जब स्कूल में जातीं तो उनके ऊपर कीचड़ फेंका जाता था, पर वह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं और साथ में एक अलग से साड़ी लेकर जाती थीं जिसे स्कूल जाकर बदल लेती थीं.

उनका जन्म महाराष्ट्र में 3 जनवरी 1831 को एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था. वहीं शिक्षक नंदराम आर्य ने बताया कि उस वक्त बहुत सारी लड़कियां महज 12-13 की उम्र में विधवा हो जाती थीं. जिसके बाद उनका केसवपन कर उन्हें कुरूप बनाया जाता था, ताकि उनकी तरफ कोई पुरुष आकर्षित ना हो सके. लेकिन अनेक बार वह ठग ली जाती थीं. ऐसी गर्भवती हुई विधवाओं का समाज बहिष्कार कर देता था. ऐसे में उस गर्भवती विधवा के सामने सिर्फ दो पर्याय बचते थे या तो वह उस बच्चे को मार दे या खुद आत्महत्या कर लें.

इस अमानवीय नरसंहार से महिलाओं को बाहर निकालने के लिए ज्योतिबा और सावित्री माई ने गर्भवतियों के लिए प्रसुतिग्रह शुरू किया, जिसका नाम था "बालहत्या प्रतिबंधक ग्रह" जो उन गर्भवती महिलाओं के लिए उनका घर भी था. वहीं सुभाष गोला ने बताया कि, विधवा केशवपन का विरोध करते हुए सावित्रीबाई ने एक गर्भवती महिला को आत्महत्या करने से रोका और उसे वादा किया कि, होने वाले बच्चे को वह अपना नाम देंगे. सावित्रीबाई ने उस महिला को पूरी सहायता दी. बाद में उस महिला से जन्मे बच्चे को सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने अपना नाम देकर उसकी परवरिश की, उसे पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया.

ये भी पढ़ेंः GB पंत विश्वविद्यालय के कुलपति का कृषि कानूनों पर बयान, कहा- 12 हिमालयी राज्यों के लिए साबित होगा वरदान

छुआछूत जातिवाद जैसे अमानवीय परंपरा को नष्ट करने के लिए अविरल काम करने वाले ज्योतिबा का सावित्रीबाई ने बराबरी से साथ निभाया. वहीं ज्योतिबा की मौत के बाद सावित्रीबाई ने उनकी चिता को आग लगाई. यह क्रांतिकारी कदम उठाने वाली सावित्री देश की पहली महिला थीं. ज्योतिबा की मृत्यु के बाद सावित्रीबाई ने उनके आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथों में लिया और पूरी कुशलता से उसे निभाया.

इसी दौरान उन्होंने काव्य भूलें, बावन कशी और सुबोध रत्नाकर नामक ग्रंथों का निर्माण कर समाज का प्रबोधन किया और वह आधुनिक जगत में मराठी की पहली कवियत्री बनीं. इसके साथ ही 1897 में पुणे में फैले प्लेग के दौरान सावित्रीबाई दिन-रात मरीजों की सेवा में लगी थीं. उन्होंने प्लेग से पीड़ित गरीब बच्चों के लिए कैंप लगाया था. प्लेग से पीड़ित बच्चे पांडुरंग गायकवाड को लेकर जब वह जा रही थीं तो उन्हें भी प्लेग ने जकड़ लिया और 10 मार्च 9897 को सावित्रीबाई का देहांत हो गया.

इस अवसर पर पुस्तकालयों में बच्चों द्वारा सावित्रीबाई फुले का चित्र भी बनाया गया. इसके साथ ही उनके जीवन पर आधारित फिल्म भी दिखाई गई. वहीं स्कूली बच्चों के व्हाट्सएप ग्रुप 'जश्न ए बचपन' में नानकमत्ता से प्रमोद ने सावित्रीबाई के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उनके समाज में योगदान पर अपनी बात रखी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.