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जेलों में CCTV और अन्य सुविधाओं का मामला, DG जेल ने HC में पेश किया शपथ पत्र

उत्तराखंड की जेलों सीसीटीवी कैमरों और अन्य सुविधाओं को लेकर जेल निदेशक ने मंगलवार को नैनीताल हाईकोर्ट में अपना जवाब पेश किया. वहीं अब इस मामले पर अगली सुनवाई तीन हफ्ते बाद होगी.

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Published : Aug 31, 2021, 5:38 PM IST

उत्तराखंड हाईकोर्ट
उत्तराखंड हाईकोर्ट

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद की तय की है. मंगलवार को मामले की सुनवाई वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई.

पिछली तारीख को कोर्ट ने जेल महानिदेशक से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन किया गया? राज्य के जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. कैदियों की जेल में रहने की क्या व्यवस्था है. जेल में उनको क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है? जेल मैनुअल में संशोधन किया गया है या नहीं? वहीं जेलों की क्षमता कितनी है? इस पर कोर्ट ने स्पष्ट जवाब मांगते हुए शपथ पत्र पेश करने को कहा था.

पढ़ें-फूलन देवी हत्याकांड के आरोपी शेर सिंह राणा का एलान, बाबा रामदेव की फैक्ट्री में लगाएंगे ताला

मंगलवार को जेल निदेशक ने शपथ पत्र पेश कर कहा कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और सब जेल हल्द्वानी में सीसीटीवी कैमरें लगाने का निर्णय लिया गया है. दूसरे चरण में राज्य के सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का सहयोग लिया जा रहा है. कैदियों के जीवन सुधार हेतु आर्ट ऑफ लिविंग के सहारा लिया जा रहा है.

जेल निदेशक ने बताया कि जेलों में कैदियो के रहने के लिए आवासों के निर्माण हेतु टेंडर निकाला गया है और तीन नई जेल पिथौरागढ़, चंपावत व उधम सिंह नगर में बनाने का प्रस्ताव भेजा है. जेल निदेशक ने कोर्ट ने बताया कि देहरादून जेल में 580 की जगह 1421 कैदी, हरिद्वार में 840 की जगह 1328 और सब जेल हल्द्वानी में 382 की जगह 1756 कैदी बंद हैं. कुल मिलाकर तीनों जेलों 3540 की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में 6608 कैदी इन जेलों में बंद हैं.

पढ़ें- भूमिहीन विस्थापन: निचली अदालत को 4 महीने में मामला निस्तारित करने का निर्देश

मामले के अनुसार रामचन्द्र उर्फ राजू एवं संतोष उपाध्याय ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने सन 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने राज्य की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं. इसके अलावा कोर्ट ने जेलों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं. राज्य में खाली पड़े राज्य मानवाधिकार आयोग के पदों को भी भरें. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया. याचिकर्ताओ का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन करे.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद की तय की है. मंगलवार को मामले की सुनवाई वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई.

पिछली तारीख को कोर्ट ने जेल महानिदेशक से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन किया गया? राज्य के जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. कैदियों की जेल में रहने की क्या व्यवस्था है. जेल में उनको क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है? जेल मैनुअल में संशोधन किया गया है या नहीं? वहीं जेलों की क्षमता कितनी है? इस पर कोर्ट ने स्पष्ट जवाब मांगते हुए शपथ पत्र पेश करने को कहा था.

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मंगलवार को जेल निदेशक ने शपथ पत्र पेश कर कहा कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और सब जेल हल्द्वानी में सीसीटीवी कैमरें लगाने का निर्णय लिया गया है. दूसरे चरण में राज्य के सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का सहयोग लिया जा रहा है. कैदियों के जीवन सुधार हेतु आर्ट ऑफ लिविंग के सहारा लिया जा रहा है.

जेल निदेशक ने बताया कि जेलों में कैदियो के रहने के लिए आवासों के निर्माण हेतु टेंडर निकाला गया है और तीन नई जेल पिथौरागढ़, चंपावत व उधम सिंह नगर में बनाने का प्रस्ताव भेजा है. जेल निदेशक ने कोर्ट ने बताया कि देहरादून जेल में 580 की जगह 1421 कैदी, हरिद्वार में 840 की जगह 1328 और सब जेल हल्द्वानी में 382 की जगह 1756 कैदी बंद हैं. कुल मिलाकर तीनों जेलों 3540 की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में 6608 कैदी इन जेलों में बंद हैं.

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मामले के अनुसार रामचन्द्र उर्फ राजू एवं संतोष उपाध्याय ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने सन 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने राज्य की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं. इसके अलावा कोर्ट ने जेलों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं. राज्य में खाली पड़े राज्य मानवाधिकार आयोग के पदों को भी भरें. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया. याचिकर्ताओ का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन करे.

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