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लोगों का भाया काफल का रसीला स्वाद, ये है इस फल की रोचक कहानी

काफल जंगली फल है, लेकिन इसकी पहचान अलग है. गर्मी शुरू होते ही पहाड़ में इस मौसमी फल के आने की शुरुआत हो जाती है. काफल पर्वतीय क्षेत्रों में 1300 मीटर से 20000 मीटर तक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है.

मैदानी क्षेत्रों में बढ़ी काफल फल की डिमांड.
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Published : May 21, 2019, 3:35 PM IST

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है. जो पहाड़ के हर स्टेशन में बिक रहा है. इसका खट्टा-मीठा स्वाद लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है. काफल में औषधिय गुण पाए जाने से ये सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है. वहीं कुमाऊं के बाजार में इस फल की डिमांड काफी बढ़ गई है.

लोगों का भाया काफल का रसीला स्वाद.

गौर हो कि काफल जंगली फल है, लेकिन इसकी पहचान अलग है. गर्मी शुरू होते ही पहाड़ में इस मौसमी फल के आने की शुरुआत हो जाती है. काफल पर्वतीय क्षेत्रों में 1300 मीटर से 20000 मीटर तक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है. जंगलों में काफल तीन महीनों तक पाया जाता है. जो अब पर्वतीय क्षेत्रों के रोजगार का साधन भी बनता जा रहा है. इसका खट्टा-मीठा स्वाद लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है. वहीं देश-विदेश से घूमने आने वाले सैलानियों को अपने स्वाद से ये फल आकर्षित कर रहा है. इसके अलावा पहाड़ से सटे तराई वाले इलाकों में भी इस फल की डिमांड काफी बढ़ गई है.

काफल में औषधि गुण

  • काफल फल एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है, जो स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना जाता है.
  • इस फल के खाने से पेट के कई प्रकार के बीमारी दूर होती हैं.
  • रसीला होने के चलते शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाता है.
  • इसके अलावा काफल फल कई बीमारियो में औषधि के रूप में काम करता है. जैसे अस्थमा, जुकाम बुखार और मूत्र रोग में लाभदायक है.
  • काफल की गुठली अल्सर,गैस, कब्ज में सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है.
  • इसके अलावा फल के पेड़ की पत्ती और इसका तना कई बीमारियों में औषधीय के रूप में भी काम आता है.

ये है पर्वतीय अचंलों में काफल की कहानी

काफल के ऊपर कई लोकगीत बनाए गए हैं लेकिन काफल की एक अन्य मान्यता भी है जो देवभूमि के लोगों में काफी लोकप्रिय भी हैं. मान्यता है कि वर्षों पहले देवभूमि के एक गांव में एक महिला अपने बेटी के साथ रहती थी जो काफी गरीब थी. खेती कर महिला अपने परिवार का गुजारा किया करती थी. जबकि गर्मियों में काफल तोड़कर पहाड़ के शहर में ले जाकर बेच कर अपने परिवार का गुजारा करती थी. एक दिन महिला ने जंगल से काफल तोड़ घर में रख गई और खेत में काम पर चली गई.

महिला ने का फल की रखवाली के लिए बेटी को घर पर छोड़ दिया. महिला ने बेटी से कहा कि का फल को मत खाना क्योंकि इसको बाजार में बेचना है. महिला का बेटी गहरी नींद में सो गई और काफल सूख गए महिला ने समझा कि उसकी बेटी ने काफल खा लिया हैं. जिसके चलते काफल कम हो गए हैं, गुस्से में महिला ने अपनी बेटी को इतना पीटा की बेटी की मौत हो गई. शाम को जब मौसम ठंडा हुआ तो काफल अपने आप बड़ा हो गए. जिसके बाद महिला ने देखा कि काफल तो उतने के उतर हैं. उसकी बेटी ने नहीं खाए हैं, जिसके बाद महिला को अपने किए पर काफी पछतावा हुआ और बेटी के वियोग में महिलाएं भी अपने प्राण त्याग दिए.

बताया जाता है कि मां बेटी दूसरे जन्म में चिड़िया के रूप में जन्म लिया. दूसरे जन्म बेटी चिड़िया के रूप में कहती है कि (काफल पाको मैल नी चाखो) यानी काफल पक गए हैं मैंने नहीं खाए. वहीं लड़की की मां चिड़िया के रूप में (पुर पुताई पुर पुर) कहती है यानी पूरे है बेटी पूरे हैं. ये कहानी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में काफी प्रचलित है.

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है. जो पहाड़ के हर स्टेशन में बिक रहा है. इसका खट्टा-मीठा स्वाद लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है. काफल में औषधिय गुण पाए जाने से ये सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है. वहीं कुमाऊं के बाजार में इस फल की डिमांड काफी बढ़ गई है.

लोगों का भाया काफल का रसीला स्वाद.

गौर हो कि काफल जंगली फल है, लेकिन इसकी पहचान अलग है. गर्मी शुरू होते ही पहाड़ में इस मौसमी फल के आने की शुरुआत हो जाती है. काफल पर्वतीय क्षेत्रों में 1300 मीटर से 20000 मीटर तक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है. जंगलों में काफल तीन महीनों तक पाया जाता है. जो अब पर्वतीय क्षेत्रों के रोजगार का साधन भी बनता जा रहा है. इसका खट्टा-मीठा स्वाद लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है. वहीं देश-विदेश से घूमने आने वाले सैलानियों को अपने स्वाद से ये फल आकर्षित कर रहा है. इसके अलावा पहाड़ से सटे तराई वाले इलाकों में भी इस फल की डिमांड काफी बढ़ गई है.

काफल में औषधि गुण

  • काफल फल एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है, जो स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना जाता है.
  • इस फल के खाने से पेट के कई प्रकार के बीमारी दूर होती हैं.
  • रसीला होने के चलते शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाता है.
  • इसके अलावा काफल फल कई बीमारियो में औषधि के रूप में काम करता है. जैसे अस्थमा, जुकाम बुखार और मूत्र रोग में लाभदायक है.
  • काफल की गुठली अल्सर,गैस, कब्ज में सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है.
  • इसके अलावा फल के पेड़ की पत्ती और इसका तना कई बीमारियों में औषधीय के रूप में भी काम आता है.

ये है पर्वतीय अचंलों में काफल की कहानी

काफल के ऊपर कई लोकगीत बनाए गए हैं लेकिन काफल की एक अन्य मान्यता भी है जो देवभूमि के लोगों में काफी लोकप्रिय भी हैं. मान्यता है कि वर्षों पहले देवभूमि के एक गांव में एक महिला अपने बेटी के साथ रहती थी जो काफी गरीब थी. खेती कर महिला अपने परिवार का गुजारा किया करती थी. जबकि गर्मियों में काफल तोड़कर पहाड़ के शहर में ले जाकर बेच कर अपने परिवार का गुजारा करती थी. एक दिन महिला ने जंगल से काफल तोड़ घर में रख गई और खेत में काम पर चली गई.

महिला ने का फल की रखवाली के लिए बेटी को घर पर छोड़ दिया. महिला ने बेटी से कहा कि का फल को मत खाना क्योंकि इसको बाजार में बेचना है. महिला का बेटी गहरी नींद में सो गई और काफल सूख गए महिला ने समझा कि उसकी बेटी ने काफल खा लिया हैं. जिसके चलते काफल कम हो गए हैं, गुस्से में महिला ने अपनी बेटी को इतना पीटा की बेटी की मौत हो गई. शाम को जब मौसम ठंडा हुआ तो काफल अपने आप बड़ा हो गए. जिसके बाद महिला ने देखा कि काफल तो उतने के उतर हैं. उसकी बेटी ने नहीं खाए हैं, जिसके बाद महिला को अपने किए पर काफी पछतावा हुआ और बेटी के वियोग में महिलाएं भी अपने प्राण त्याग दिए.

बताया जाता है कि मां बेटी दूसरे जन्म में चिड़िया के रूप में जन्म लिया. दूसरे जन्म बेटी चिड़िया के रूप में कहती है कि (काफल पाको मैल नी चाखो) यानी काफल पक गए हैं मैंने नहीं खाए. वहीं लड़की की मां चिड़िया के रूप में (पुर पुताई पुर पुर) कहती है यानी पूरे है बेटी पूरे हैं. ये कहानी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में काफी प्रचलित है.

Intro:स्लग- कुमाऊ का खट्टा मीठा का फल( काफल खाना है तो पहुंचे देवभूमि)
रिपोर्टर- भावनाथ पंडित /हल्द्वानी

एंकर- उत्तराखंड फल और औषधि प्रदेश माना जाता है। उत्तराखंड के कई फल देश विदेशों में अपना पहचान रखता है। लेकिन उत्तराखंड का एक खास फल खट्टे मीठे काफल का आनंद लेना हो तो आपको देवभूमि आना ही होगा। देव भूमि का यहजंगली फल का कुमाऊ के बाजारों में खूब डिमांड हो रहा है और लोग खट्टे मीठे रसीले का फल का आनंद उठा रहे हैं।
देखिए खास रिपोर्ट........


Body:ऐसे तो उत्तराखंड में कई फलों का भगवानी किया जाता है जो किसानों के आमदनी का मुख्य जरिया है। लेकिन इन्हीं फलों में एक फल है काफल जो जंगली फल है लेकिन इसकी पहचान अलग ही है। गर्मी शुरू होते हैं पहाड़ के मौसमी फलों शुरुआत हो जाती है। काफल उन्हें फलों में एक है। ऐसे तो काफल देवभूमि के 1300 मीटर से 20000 मीटर तक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। गर्मी शुरू होते हैं पहाड़ों के जंगलों में काफल 3 महीने तक जंगलों में पाए जाते हैं। और पहाड़ के कई लोगों के रोजगार का साधन भी बन जाता है। गांव के बेरोजगार लोग दिनभर मेहनत का फल को तोड़ कर आसपास के शहरों में बेचते हैं। इसके अलावा पहाड़ से सटे तराई वाले इलाकों में भी इनका फलों का डिमांड खूब किया जा रहा है।

काफल के औषधि गुण।
यह जंगली फल एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरा हुआ औषधि फल है जो मनुष्य के शरीर को फायदा पहुंचाता है।
इस फल के खाने से पेट के कई प्रकार के बीमारी दूर हो जाते हैं।
रसीला होने के चलते शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाता है
इसके अलावा का फल कई बीमारियो मैं औषधि के रूप में काम आता है जैसे आर्मीनिया अस्थमा जुकाम बुखार और मूत्र रोग मैं विशेष कार्यक्रम होता है।
बताया जाता है कि काफल की गुठली अलसर ,गैस, कब्ज और के काम के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है।
बताया जाता है कि लंबे समय तक इस फल के खाने से कैंसर और बकवास जैसे कई गंभीर बीमारी खत्म हो जाती है।
इसके अलावा का फल के पेड़ की पत्ती और इसके तने कई बीमारियों में औषधि के रूप में भी काम आते हैं।

बाइट- काफल विक्रेता



Conclusion:ऐसे तो काफल के ऊपर कई कुमाऊनी गीत बनाए गए हैं लेकिन काफल की एक अन्य मान्यता भी है जो देवभूमि के लोगों में काफी लोकप्रिय भी हैं।
मान्यता है कि वर्षों पहले देवभूमि के सुंदर गांव में एक महिला अपने बेटी के साथ रहती थी जो काफी गरीब थी। खेती कर महिला अपने परिवार का गुजारा किया करती थी। जबकि गर्मियों में काफल तोड़कर पहाड़ के शहर में ले जाकर बेच कर अपने परिवार का गुजारा करती थी। एक दिन महिला ने जंगल से काफल तोड़ घर में रख गई और खेत में काम पर चली गई। महिला ने का फल की रखवाली के लिए बेटी को घर पर छोड़ दिया। महिला ने बेटी से कहा कि का फल को मत खाना क्योंकि इसको बाजार में बेचना है। महिला का बेटी गहरी नींद में सो गई और काफल सूख गए महिला ने समझा कि उसकी बेटी ने काफल खा लिया हैं जिसके चलते का फल कम हो गए हैं। गुस्से में महिला ने अपनी बेटी को इतना पीटा की बेटी की मौत हो गई। शाम को जब मौसम ठंडा हुआ तो काफल अपने आप बड़ा हो गए। जिसके बाद महिला ने देखा कि काफल तो उतने के उतर आए हैं। उसकी बेटी ने नहीं खाई है। जिसके बाद महिला को पछतावा आया कि उसने अपनी बेटी को ही मार डाला। बेटी के वियोग में महिलाएं भी अपने प्राण त्याग दिए।
बताया जाता है कि मां बेटी दूसरे जन्म में चिड़िया के रूप में जन्म लिया । दूसरे जन्म बेटी चिड़िया के रूप में कहती है कि (काफल पाको मैल नी चखो) यानी काफल पक गए हैं मैंने नहीं खाए।
वहीं लड़की की मां चिड़िया के रूप में (पुर पुताई पुर पुर ) कहती है यानी पूरे है बेटी पूरे हैं । जो इन चिड़ियों की आवाज आज भी गर्मियों के सीजन में देवभूमि में सुनने को मिलती है ।

बाइट -आन सिंह मटियाली काफल खरीदार
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