हल्द्वानी: हिंदू धर्म में कहा जाता है कि बेटा या परिवार का ही कोई सदस्य ही पिता की चिता को मुखाग्नि देता है, लेकिन यह बात अब गुजरे जमाने की हो चुकी है. उत्तराखंड में रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुए दो बेटियों ने पहले अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया और उसके बाद मुखाग्नि भी दी. मामला नैनीताल जिले के रानीबाग स्थित चित्रशाला घाट का है. लालकुआं स्थित मिठाई विक्रेता कृष्णानंद खोलिया का सोमवार को आकस्मिक निधन के बाद गमगीन माहौल में उनका अंतिम संस्कार किया गया.
लालकुआं निवासी 58 वर्षीय कृष्णानंद खोलिया का लंबी बीमारी के कारण सोमवार को निधन हो गया. वह अपने पीछे पत्नी शोभा खोलिया, दो बेटियों सोनू और तारा को छोड़ गए. कृष्णानंद का बेटा ना होने के कारण दोनों बेटियों सोनू और तारा (अविवाहित) ने पिता की मौत के बाद न केवल अपनी मां को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बल्कि पिता के अंतिम संस्कार की रस्मों को भी निभाया. दोनों बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा दिया. दोनों अर्थी के साथ चित्र शीला घाट पहुंचे और हिंदू रीति-रिवाज से पिता की चिता को मुखाग्नि दी. शव यात्रा में दोनों बेटियों ने हिस्सा लेते हुए हिंदू रीति रिवाज की तमाम मर्यादाओं को तोड़ते हुए पुत्र का फर्ज स्वयं निभाया.
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दोनों बेटियों ने अपने पिता की अर्थी को कंधा देने के साथ-साथ श्मशान घाट में चिता तैयार करने में सहयोग भी किया. बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने की परंपरा के बाद हर कोई दोनों बेटियों के साहस की प्रशंसा कर रहा है. इस दौरान चित्रशिला घाट में मौजूद सैकड़ों लोगों की आंखें नम हो गई.