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उत्तराखंड में शुरू हुई श्रृंगार रस की बैठकी होली, इस अनुठी परंपरा को निभाता है मुस्लिम समुदाय

उत्तराखंड में बसंत पंचमी से बैठकिया होली शुरू हो गई है. श्रृंगार रस की इस होली में मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं.

Holi News
श्रृंगार रस की बैठकी होली
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Published : Jan 31, 2020, 2:52 PM IST

नैनीताल: नगर में श्रृंगार रस की बैठकी होली शुरू हो गई है. पौष माह के पहले रविवार से कुमांऊ में होली का आगाज हो गया है. होली की यह अनोखी परंपरा कुमाऊं में सदियों से चली आ रही है, लेकिन अब यह होली विलुप्ती की कगार पर है. कुमांऊ की इस सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए यहां के बुजुर्गों ने श्रृंगार रस की बैठकी होली की फिर से पहल की है. जो नई पीढ़ी को लुप्त हो रही इस विरासत से जोड़ सकेगी.

होलियार जहूर आलम ने बताया कि पौष माह के पहले रविवार के साथ ही कुमांऊ की धरती में होली का शुभारंभ हो जाता है. इस अनूठी परंपरा में होली तीन चरणों में मनाई जाती है. पहले चरण में विरह की होली गायी जाती है. बसंत पंचमी के बाद होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है. वहीं अब यहां के युवा भी इसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. बैठकी होली में होली गायन का ये दौर देर रात तक चलता रहता है. बैठकी होली राग-रागनियों पर आधारित होती है. जिसमें राग यमन, बादरू काफी, जंगला काफी, खम्माज, देश राग, पीलु और रागभैरवी जैसे रागों के साथ ही होली गायन किया जाता है. आगामी महाशिव रात्रि से यह बैठकीय होली खुले रंग में आ जाएगी. जिसके बाद होली के टीके तक राधा-कृष्ण, छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलेगा. अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है. जिसके बाद होली रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है.

त्तराखंड में शुरू हुई श्रृंगार रस की बैठकी होली.

ये भी पढ़ें: देहरादून में एक करोड़ की टैक्स चोरी का खुलासा, एसटीएफ को मिली बड़ी कामयाबी

होलियार पारस जोशी ने बताया कि कुमांऊ में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है. करीब डेढ़ दशक पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमांऊ में होली गीतों की शुरूआत की थी. तब से लेकर आज तक कुमांऊ में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है. कुमांऊ की होली का एक और पक्ष है, जो कुमांऊ की होली को विशेष बनाता है. यहां की होली किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है. यहां सभी समुदाय के लोग आपस में मिल-जुलकर होली मनाते हैं. नैनीताल में पिछले कई सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आ रहे हैं. इस लुप्त हो रही होली की परंपरा को बचाने के लिए होली महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जिसमें जिलेभर के होलीयार शिरकत करते हैं. साथ ही नई पीढ़ी को भी होली गायन से रूबरू कराने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है.

नैनीताल: नगर में श्रृंगार रस की बैठकी होली शुरू हो गई है. पौष माह के पहले रविवार से कुमांऊ में होली का आगाज हो गया है. होली की यह अनोखी परंपरा कुमाऊं में सदियों से चली आ रही है, लेकिन अब यह होली विलुप्ती की कगार पर है. कुमांऊ की इस सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए यहां के बुजुर्गों ने श्रृंगार रस की बैठकी होली की फिर से पहल की है. जो नई पीढ़ी को लुप्त हो रही इस विरासत से जोड़ सकेगी.

होलियार जहूर आलम ने बताया कि पौष माह के पहले रविवार के साथ ही कुमांऊ की धरती में होली का शुभारंभ हो जाता है. इस अनूठी परंपरा में होली तीन चरणों में मनाई जाती है. पहले चरण में विरह की होली गायी जाती है. बसंत पंचमी के बाद होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है. वहीं अब यहां के युवा भी इसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. बैठकी होली में होली गायन का ये दौर देर रात तक चलता रहता है. बैठकी होली राग-रागनियों पर आधारित होती है. जिसमें राग यमन, बादरू काफी, जंगला काफी, खम्माज, देश राग, पीलु और रागभैरवी जैसे रागों के साथ ही होली गायन किया जाता है. आगामी महाशिव रात्रि से यह बैठकीय होली खुले रंग में आ जाएगी. जिसके बाद होली के टीके तक राधा-कृष्ण, छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलेगा. अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है. जिसके बाद होली रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है.

त्तराखंड में शुरू हुई श्रृंगार रस की बैठकी होली.

ये भी पढ़ें: देहरादून में एक करोड़ की टैक्स चोरी का खुलासा, एसटीएफ को मिली बड़ी कामयाबी

होलियार पारस जोशी ने बताया कि कुमांऊ में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है. करीब डेढ़ दशक पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमांऊ में होली गीतों की शुरूआत की थी. तब से लेकर आज तक कुमांऊ में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है. कुमांऊ की होली का एक और पक्ष है, जो कुमांऊ की होली को विशेष बनाता है. यहां की होली किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है. यहां सभी समुदाय के लोग आपस में मिल-जुलकर होली मनाते हैं. नैनीताल में पिछले कई सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आ रहे हैं. इस लुप्त हो रही होली की परंपरा को बचाने के लिए होली महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जिसमें जिलेभर के होलीयार शिरकत करते हैं. साथ ही नई पीढ़ी को भी होली गायन से रूबरू कराने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है.

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उत्तराखण्ड में सुरु हुई श्रृंगार रस की बैठकी होली।

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कुमाउं में होली का आगाज हो गया है। कुमाउं का इलाका एक ऐसा इलाका है जहां होली पौष माह के पहले रविवार से शुरूआत हो जाती है, होली की यह अनौखी परंपरा कुमाउं में सदियों से चली आ रही है, कुमाउ क्षेत्र मंे बुर्जग लोगो के द्धारा लुप्त हो रही सास्कृतीक विरासत को बचाने की एक अच्धी पहल है जिस्से आने वाली नई पीडी को लुप्त हो रही विरासत से जोडा जा सके, नैनीताल की होली धार्मीक एकता को भी दर्शाती हैंBody:पौष माह के पहले रविवार के साथ ही कुमाउं की धरती में होली का शुभारम्भ हो जाता है, इस अनूठी परंपरा में होली तीन चरणों में मनाई जाती है, बैठकी होली के माध्यम से पहले चरण में विरह की होली गाई जाती है, और बसंत पंचमी के आ जाने से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है और युवाओ की भागेदारी भी बड चड कर होने लगती है, होली गायन में बैठकी होली का ये दौर देर रात तक चलता रहता है। बसंत पंचमी के प्रारम्भ होने के साथ ही नैनीताल में श्रगार रसो की होली का गायन शुभारम्भ हो गया है। बैठकीय होली राग-रागनीयो पर आधारीत होती है जिसमें राग यमन, बादरू काफी, जंगला काफी, खम्माज, देश राग, पीलु, रागभैरवी आदी रागो के साथ ही होली गाया जाता है। महा शिवरात्री से बैठकीय होली खुले और रंग में आ जाएगी। जिसके बाद होली के टीके तक राधा-कृष्ण और छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलेगा। अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है और रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है।

बाइट- जहूर आलम, होलियार।
Conclusion:कुमाउं में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है। करीब डेढ़ दसक पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाउं में होली गीतों की शुरूआत की थी और तब से लेकर आज तक कुमाउं में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है कुमाउ की होली का एक और पक्ष है जो कुमाउं की होली को विशेष बनाता है और वह है कि यहां होली किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है यहा सभी समुदाय के लोग आपस में मील जुल कर होली मनाते है। नैनीताल में पिछले कई सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आ रहे हैं। इस लुप्त होती होली की परम्परा को बचाने के लिए होली महोत्शव का आयोजन करा जाता है जिसमें जिले भर के होलीयार सीरकत करते है साथ ही नई पीढी को होली गायन से रूबरू कराने के लिए कार्यशाला का भी आयोजन करा जारहा है।

बाइट- पारस जोशी होलियार, नैनीताल।
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