हल्द्वानी: नैनीताल को कभी तालों का जिला कहा जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे इन तालों का अस्तित्व खत्म हो रहा है. जिला मुख्यालय से मात्र 25 किलोमीटर दूर भीमताल स्थित विश्व प्रसिद्ध कमलताल झील अपना अस्तित्व को खो रही है. स्थानीय लोग अब झील के संरक्षण के लिए शासन-प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सुध नहीं ली जा रही है. पिछले कई सालों से शासन की उदासीनता के चलते यह झील संकट में है.
आलम ये है कि कभी कमल के फूलों से लबालब रहने वाले कमलताल में पिछले 5 सालों से कमल का एक भी फूल नहीं खिला है. कमलताल झील सैर सपाटे के लिए कभी पर्यटकों की पहली पसंद होती थी, लेकिन अब झील से गंदे पानी की बदबू आ रही है और जंगली घासों ने झील को जकड़ लिया है. समाजसेवी पूरन चंद्र बृजवासी पिछले कई सालों से झील के संरक्षण के लिए शासन-प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. कई बार विभाग और शासन को पत्र भी भेज चुके हैं, लेकिन झील के अस्तित्व को बचाने की बजाय शासन-प्रशासन के लोग आंख बंद किए हुए हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता पूरन चंद बृजवासी ने बताया कि झील के अस्तित्व को बचाने के लिए पिछले 5 सालों से संघर्ष कर रहे हैं. साल 2020 में झील के अस्तित्व को लेकर सिंचाई विभाग को पत्र लिखा गया. जिसके बाद सिंचाई विभाग ने पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से संपर्क किया था, जहां पंतनगर विश्वविद्यालय ने वैज्ञानिकों की सलाह पर झील के जीर्णोद्धार के लिए साल 2021 में सिंचाई विभाग ने शासन से करीब 29 लाख रुपए का बजट मांगा था, लेकिन बजट पास नहीं होने का कारण झील की स्थिति और खराब हो गई है.
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धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मा के चार पुत्र सनक, सनातन, सनंदन और सनत कुमार ने यहां तपस्या की थी. कमलताल के साथ लगे नौकुचियाताल को सनद सरोवर के नाम से भी जाना जाता है. स्कंद पुराण में कमलताल और नौकुचियाताल का उल्लेख मिलता है. नौ कोने में नौ ऋषियों की ओर से तपस्या करने का भी उल्लेख है. जिसके चलते इस झील के नौ कोनों को कोई भी एक साथ नहीं देख सकता है.
कमलताल झील के रखरखाव के लिए मत्स्य विभाग को निर्देशित किया गया है. मत्स्य विभाग अपने स्तर से झील को नए रूप में लाने का काम कर रहा है. कुछ मछलियों के चलते इस झील को नुकसान पहुंचा है. - अनिल कुमार, अधिशासी अभियंता, सिंचाई विभाग