हल्द्वानी: मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष ( Ashtami of Krishna Paksha) की अष्टमी के दिन काल भैरव की जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) मनाई जाती है. इस दिन को भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. भैरव अष्टमी 16 नवंबर 2022 बुधवार को मनाई जाएगी. काल भैरव भगवान शिव का एक रौद्र रूप माना गया है. बाबा भैरव को शिव जी का अंश माना जाता है. कहा जाता है कि भगवान शिव के पांचवें अवतार भगवान भैरव बाबा हैं.
भगवान शिव के अवतार: हिंदू देवताओं में भगवान भैरव का बहुत ही महत्व है. इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है. भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला. कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित हैं. भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी (Astrologer Navin Chandra Joshi) के मुताबिक सनातन परंपरा में भगवान भैरव की साधना जीवन से जुड़ी सभी परेशानियों से उबारने और शत्रु-बाधा आदि से मुक्त करने वाली मानी गई है.
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संकटों से उबारते हैं बाबा भैरव: संकटों से उबारने वाले भगवान भैरव की पूजा को आप कभी भी कर सकते हैं, लेकिन उनकी पूजा के लिए रविवार का दिन सबसे ज्यादा शुभ और उत्तम माना गया है. इसी प्रकार भगवान काल भैरव की जयंती के पावन पर्व पर उनकी साधना-आराधना का विशेष महत्व माना गया है. अगहन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी 16 नवंबर को प्रात: 05:49 बजे से प्रारंभ होकर 17 नवंबर 2022 को सायंकाल 07:57 बजे तक रहेगी. भगवान काल भैरव की पूजा रात्रि के समय शुभ मानी गई है, लेकिन दिन में कभी किसी भी शुभ मुहूर्त में कर सकते हैं.
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ऐसे करें उपासना: भैरव अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान-ध्यान के बाद उनके व्रत का संकल्प लें. काल भैरव अष्टमी की पूजा रात के समय अत्यंत ही शुभ मानी गई है. ऐसे में रात्रि के समय भगवान भैरव के सामने चौमुखा दीया जलाकर पुष्प, फल, भोग आदि चढ़ाकर विधि-विधान से पूजा करें. भगवान भैरव की पूजा में उनकी चालीसा या भैरवाष्टकं का विशेष रूप से पाठ करें. अंत में उनकी आरती करते हुए पूजा में हुई गलतियों के लिए माफी और मनोकामना को पूरा करने का आशीर्वाद मांगें.
काल भैरव अष्टमी पर अपने कष्टों को दूर करने और मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए ‘ॐ भैरवाय नम:’ अथवा ‘ॐ ब्रह्म काल भैरवाय फट’ मंत्र का अधिक से अधिक जप करें. इसके साथ काल भैरवाष्टकं का पाठ करना भी अत्यंत ही शुभ एवं फलदायी माना गया है.
कैसे हुई भैरव की उत्पत्ति: शास्त्रों के अनुसार भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी (puja vidhi upay kaal bhairav ashtami). शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं. जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है. शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति और संकट से छुटकारा मिलता है. काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है. शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है, इसलिए इनका एक नाम दंडपाणी भी है. मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए उनको काल भैरव कहा जाता है.