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डीफंड अधिनियम: अमेरिका के लिए एक साहसिक कदम या कूटनीतिक जुआ? - DEFUND ACT

रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने अमेरिकी कांग्रेस में संयुक्त राष्ट्र संकट से पूरी तरह से अलग होने (DEFUND) अधिनियम को पेश किया है.

UN
यूनाइटेड नेशंस (सांकेतिक तस्वीर)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Feb 23, 2025, 1:14 PM IST

नई दिल्ली: दशकों से अमेरिका संयुक्त राष्ट्र (UN) का एक स्तंभ रहा है, जो ग्लोबल पॉलिसी को आकार देता है और प्रमुख पहलों को फंडेड करता है, लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत में यूटा (Utah ) से रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने अमेरिकी कांग्रेस में संयुक्त राष्ट्र संकट से पूरी तरह से अलग होने (DEFUND) अधिनियम को पेश किया. इसके साथ ही यह संबंध जल्द ही समाप्त हो सकता है.इस विधेयक में संगठन की अक्षमता, कथित अमेरिकी विरोधी रुख और अमेरिकी टैक्सपेयर्स पर वित्तीय बोझ का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र से पूरी तरह से अलग होने का प्रस्ताव है.

ली की वेबसाइट के अनुसार यह कानून राष्ट्रीय संप्रभुता और वित्तीय जवाबदेही के गंभीर मुद्दों को संबोधित करता है, जिसने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी भागीदारी को प्रभावित किया है. डीफंड अधिनियम को सीनेट में टेनेसी से रिपब्लिकन सीनेटर मार्शा ब्लैकबर्न और फ्लोरिडा से रिक स्कॉट द्वारा सह-प्रायोजित किया गया है.हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष माइक रोजर्स, मिशिगन से रिपब्लिकन और प्रतिनिधि चिप रॉय, टेक्सास से रिपब्लिकन, प्रतिनिधि सभा में साथी विधेयक पेश कर रहे हैं.

ली ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र के लिए अब कोई ब्लैंक चेक नहीं है. अमेरिकियों की मेहनत से कमाई गई राशि को उन पहलों में लगाया गया है, जो हमारे मूल्यों के विपरीत हैं, अत्याचारियों को बढ़ावा दे रहे हैं, सहयोगियों को धोखा दे रहे हैं और कट्टरता फैला रहे हैं. डीफंड एक्ट के साथ हम इस संकट से दूर जा रहे हैं.

अगर अमेरिका संयुक्त राष्ट्र से पूरी तरह से अलग हो जाता है तो इसके वैश्विक, राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक परिणाम होंगे. 1945 में इसकी स्थापना के बाद से ही अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसका अलग होना अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा.

वहीं, रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली द्वारा संयुक्त राष्ट्र संकट से पूरी तरह से अलग होने (डीफ़ंड) अधिनियम की शुरूआत ने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की भूमिका के बारे में एक गरमागरम बहस छेड़ दी है.

डीफंड अधिनियम के मुख्य प्रावधान
डीफंड अधिनियम में अकुशलता, कथित अमेरिकी विरोधी रुख और अमेरिकी करदाताओं पर वित्तीय बोझ का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र से पूरी तरह से हटने का प्रस्ताव है. विधेयक के मुख्य प्रावधानों में कई अहम बिंदु शामिल हैं.जैसे कि वित्तीय सहायता की समाप्ति आदि.

महत्वपूर्ण कृत्यों को निरस्त करना
डीफंड अधिनियम में कई अहम कामों को खत्म करने का प्रावधान है. इसमें कहा गया है कि अमेरिका उन कृत्यों को निरस्त करेगा जो उसे संयुक्त राष्ट्र से बांधते हैं, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र भागीदारी अधिनियम 1945 और संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय समझौता अधिनियम.

वित्तीय सहायता की समाप्ति
अमेरिका संयुक्त राष्ट्र को सभी प्रकार की वित्तीय सहायता देना बंद कर देगा, जिसमें निर्धारित और स्वैच्छिक योगदान शामिल हैं.

शांति स्थापना में अमेरिका की भागीदारी पर प्रतिबंध
इसके अलावा इस एक्ट में ऐसे प्रावधान भी हैं, जो अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर सकते हैं.

रेवोकेशन ऑफ डिप्लोमैटिक इम्यूनिटी
इसके अलावा इस एक्ट के कई कूटनीतिक परिणाम भी होंगे. इसमें कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को अब अमेरिका में रेवोकेशन ऑफ डिप्लोमैटिक इम्यूनिटी मिलेगी.

संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों से वापसी की औपचारिकता
इसके अलावा इस अधिनियम के लागू होने पर अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और पेरिस जलवायु समझौते सहित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों से औपचारिक रूप से हट जाएगा.

डिफंड एक्ट के प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय नीतियों को आकार देने वैश्विक मानदंड स्थापित करने और प्रमुख कूटनीतिक मुद्दों को प्रभावित करने के लिए एक शक्तिशाली मंच प्रदान करता है. सदस्यता के बिना अमेरिका को केवल द्विपक्षीय और क्षेत्रीय गठबंधनों पर निर्भर रहना होगा, जिससे जलवायु परिवर्तन, परमाणु प्रसार और मानवाधिकार उल्लंघन जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने की उसकी क्षमता सीमित हो जाएगी.

अमेरिका के यूएन से हटने से विश्व मंच पर उसका प्रभाव कमजोर हो जाएगा, जिससे अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को आकार देने और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाएगी.इसके अलावा अमेरिका अब संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों का हिस्सा नहीं रहेगा, जिससे संभावित रूप से सुरक्षा जोखिम और शक्ति शून्यता पैदा हो सकती है.

अमेरिका के हटने से जलवायु परिवर्तन, परमाणु प्रसार और मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग बाधित होगा, साथ ही संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य देशों के साथ अमेरिका के संबंध संभवतः तनावपूर्ण होंगे, जिससे बहुपक्षीय सहयोग और अधिक कठिन हो जाएगा.

एक्सपर्ट की राय
किंग्स कॉलेज लंदन में इंटरनेशल रिलेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि डीफंड अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के लिए खुद में सुधार करने के लिए एक चेतावनी होगी. उन्होंने ने बताया कि अमेरिका में हमेशा से यह विचारधारा रही है कि संयुक्त राष्ट्र पर बहुत अधिक समय खर्च किया जा रहा है.

पंत ने बताया कि अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों में रिपब्लिकन का बहुमत बहुत कम है.पारंपरिक रिपब्लिकन इस विधेयक को पारित नहीं होने देंगे. इसमें ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) बेस का समर्थन हो सकता है.

पंत कहा कि डीफंड एक्ट ऐसे समय में आया है जब भारत 21वीं सदी की दुनिया को प्रतिबिंबित करने के लिए अधिक स्थायी सदस्यों को शामिल करके संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की मांग कर रहा है. हालांकि, भारत खुद को ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में पेश कर रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र को एक विश्वसनीय समर्थन प्रणाली के रूप में देखता है.

अमेरिकी राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले भारतीय मूल के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मयंक छाया ने शिकागो से ईटीवी भारत को फोन पर बताया, "कुछ रिपब्लिकन ऐसे हैं जो संयुक्त राष्ट्र को दखलंदाजी करने वाला मानते हैं और वे देखते हैं कि अमेरिका अपने वैश्विक लक्ष्यों के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रति जवाबदेह नहीं है.

नई दिल्ली स्थित इमेजइंडिया थिंक टैंक के अध्यक्ष रोबिन्दर सचदेव का मानना ​​है कि निर्माणाधीन नई विश्व व्यवस्था को देखते हुए डीफंड अधिनियम एक महत्वपूर्ण विकास है.सचदेव ने कहा, "दुनिया बहुत तेजी से और मौलिक रूप से बदल रही है. वह मानते हैं कि डीफंड अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के सुधारों में कुछ तेजी ला सकता है.

जहां तक भारत का सवाल हैसचदेव ने कहा कि नई दिल्ली संयुक्त राष्ट्र में बाहर से नहीं बल्कि अंदर से सुधार देखना चाहेगी. उन्होंने कहा, "लेकिन साथ ही, भारत खुश होगा, क्योंकि अभी तक सुरंग के अंत में कोई रोशनी नहीं दिख रही है.भारत संयुक्त राष्ट्र में बदलाव का स्वागत करेगा, लेकिन इसे खत्म करने का नहीं."

माइक ली की वेबसाइट पर पोस्टिंग में लिखा है, "डीफंड एक्ट की शुरुआत अमेरिकी करदाताओं की कीमत पर यूएन द्वारा वर्षों से अनियंत्रित नौकरशाही विस्तार और वित्तीय दुरुपयोग के जवाब में की गई है. सीनेटर ली का कानून वित्तीय जिम्मेदारी और आत्मनिर्णय के आदर्शों को बनाए रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो संयुक्त राज्य अमेरिका की नींव हैं."

संक्षेप में कहें तो, संयुक्त राष्ट्र से अमेरिका के पूरी तरह से बाहर होने से वैश्विक कूटनीति, सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर दूरगामी परिणाम होंगे. हालांकि, यह अलगाववाद के पक्षधर कुछ घरेलू राजनीतिक गुटों को संतुष्ट कर सकता है, लेकिन इससे विश्व मंच पर अमेरिका का प्रभाव कमजोर पड़ सकता है, सुरक्षा जोखिम पैदा हो सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बाधित हो सकता है.

यह भी पढ़ें- अमेरिकी फंडिंग से भारत या बांग्लादेश किसे मिला फायदा? भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर मढ़ रहे आरोप

नई दिल्ली: दशकों से अमेरिका संयुक्त राष्ट्र (UN) का एक स्तंभ रहा है, जो ग्लोबल पॉलिसी को आकार देता है और प्रमुख पहलों को फंडेड करता है, लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत में यूटा (Utah ) से रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने अमेरिकी कांग्रेस में संयुक्त राष्ट्र संकट से पूरी तरह से अलग होने (DEFUND) अधिनियम को पेश किया. इसके साथ ही यह संबंध जल्द ही समाप्त हो सकता है.इस विधेयक में संगठन की अक्षमता, कथित अमेरिकी विरोधी रुख और अमेरिकी टैक्सपेयर्स पर वित्तीय बोझ का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र से पूरी तरह से अलग होने का प्रस्ताव है.

ली की वेबसाइट के अनुसार यह कानून राष्ट्रीय संप्रभुता और वित्तीय जवाबदेही के गंभीर मुद्दों को संबोधित करता है, जिसने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी भागीदारी को प्रभावित किया है. डीफंड अधिनियम को सीनेट में टेनेसी से रिपब्लिकन सीनेटर मार्शा ब्लैकबर्न और फ्लोरिडा से रिक स्कॉट द्वारा सह-प्रायोजित किया गया है.हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष माइक रोजर्स, मिशिगन से रिपब्लिकन और प्रतिनिधि चिप रॉय, टेक्सास से रिपब्लिकन, प्रतिनिधि सभा में साथी विधेयक पेश कर रहे हैं.

ली ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र के लिए अब कोई ब्लैंक चेक नहीं है. अमेरिकियों की मेहनत से कमाई गई राशि को उन पहलों में लगाया गया है, जो हमारे मूल्यों के विपरीत हैं, अत्याचारियों को बढ़ावा दे रहे हैं, सहयोगियों को धोखा दे रहे हैं और कट्टरता फैला रहे हैं. डीफंड एक्ट के साथ हम इस संकट से दूर जा रहे हैं.

अगर अमेरिका संयुक्त राष्ट्र से पूरी तरह से अलग हो जाता है तो इसके वैश्विक, राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक परिणाम होंगे. 1945 में इसकी स्थापना के बाद से ही अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसका अलग होना अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा.

वहीं, रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली द्वारा संयुक्त राष्ट्र संकट से पूरी तरह से अलग होने (डीफ़ंड) अधिनियम की शुरूआत ने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की भूमिका के बारे में एक गरमागरम बहस छेड़ दी है.

डीफंड अधिनियम के मुख्य प्रावधान
डीफंड अधिनियम में अकुशलता, कथित अमेरिकी विरोधी रुख और अमेरिकी करदाताओं पर वित्तीय बोझ का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र से पूरी तरह से हटने का प्रस्ताव है. विधेयक के मुख्य प्रावधानों में कई अहम बिंदु शामिल हैं.जैसे कि वित्तीय सहायता की समाप्ति आदि.

महत्वपूर्ण कृत्यों को निरस्त करना
डीफंड अधिनियम में कई अहम कामों को खत्म करने का प्रावधान है. इसमें कहा गया है कि अमेरिका उन कृत्यों को निरस्त करेगा जो उसे संयुक्त राष्ट्र से बांधते हैं, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र भागीदारी अधिनियम 1945 और संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय समझौता अधिनियम.

वित्तीय सहायता की समाप्ति
अमेरिका संयुक्त राष्ट्र को सभी प्रकार की वित्तीय सहायता देना बंद कर देगा, जिसमें निर्धारित और स्वैच्छिक योगदान शामिल हैं.

शांति स्थापना में अमेरिका की भागीदारी पर प्रतिबंध
इसके अलावा इस एक्ट में ऐसे प्रावधान भी हैं, जो अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर सकते हैं.

रेवोकेशन ऑफ डिप्लोमैटिक इम्यूनिटी
इसके अलावा इस एक्ट के कई कूटनीतिक परिणाम भी होंगे. इसमें कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को अब अमेरिका में रेवोकेशन ऑफ डिप्लोमैटिक इम्यूनिटी मिलेगी.

संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों से वापसी की औपचारिकता
इसके अलावा इस अधिनियम के लागू होने पर अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और पेरिस जलवायु समझौते सहित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों से औपचारिक रूप से हट जाएगा.

डिफंड एक्ट के प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय नीतियों को आकार देने वैश्विक मानदंड स्थापित करने और प्रमुख कूटनीतिक मुद्दों को प्रभावित करने के लिए एक शक्तिशाली मंच प्रदान करता है. सदस्यता के बिना अमेरिका को केवल द्विपक्षीय और क्षेत्रीय गठबंधनों पर निर्भर रहना होगा, जिससे जलवायु परिवर्तन, परमाणु प्रसार और मानवाधिकार उल्लंघन जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने की उसकी क्षमता सीमित हो जाएगी.

अमेरिका के यूएन से हटने से विश्व मंच पर उसका प्रभाव कमजोर हो जाएगा, जिससे अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को आकार देने और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाएगी.इसके अलावा अमेरिका अब संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों का हिस्सा नहीं रहेगा, जिससे संभावित रूप से सुरक्षा जोखिम और शक्ति शून्यता पैदा हो सकती है.

अमेरिका के हटने से जलवायु परिवर्तन, परमाणु प्रसार और मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग बाधित होगा, साथ ही संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य देशों के साथ अमेरिका के संबंध संभवतः तनावपूर्ण होंगे, जिससे बहुपक्षीय सहयोग और अधिक कठिन हो जाएगा.

एक्सपर्ट की राय
किंग्स कॉलेज लंदन में इंटरनेशल रिलेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि डीफंड अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के लिए खुद में सुधार करने के लिए एक चेतावनी होगी. उन्होंने ने बताया कि अमेरिका में हमेशा से यह विचारधारा रही है कि संयुक्त राष्ट्र पर बहुत अधिक समय खर्च किया जा रहा है.

पंत ने बताया कि अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों में रिपब्लिकन का बहुमत बहुत कम है.पारंपरिक रिपब्लिकन इस विधेयक को पारित नहीं होने देंगे. इसमें ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) बेस का समर्थन हो सकता है.

पंत कहा कि डीफंड एक्ट ऐसे समय में आया है जब भारत 21वीं सदी की दुनिया को प्रतिबिंबित करने के लिए अधिक स्थायी सदस्यों को शामिल करके संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की मांग कर रहा है. हालांकि, भारत खुद को ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में पेश कर रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र को एक विश्वसनीय समर्थन प्रणाली के रूप में देखता है.

अमेरिकी राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले भारतीय मूल के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मयंक छाया ने शिकागो से ईटीवी भारत को फोन पर बताया, "कुछ रिपब्लिकन ऐसे हैं जो संयुक्त राष्ट्र को दखलंदाजी करने वाला मानते हैं और वे देखते हैं कि अमेरिका अपने वैश्विक लक्ष्यों के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रति जवाबदेह नहीं है.

नई दिल्ली स्थित इमेजइंडिया थिंक टैंक के अध्यक्ष रोबिन्दर सचदेव का मानना ​​है कि निर्माणाधीन नई विश्व व्यवस्था को देखते हुए डीफंड अधिनियम एक महत्वपूर्ण विकास है.सचदेव ने कहा, "दुनिया बहुत तेजी से और मौलिक रूप से बदल रही है. वह मानते हैं कि डीफंड अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के सुधारों में कुछ तेजी ला सकता है.

जहां तक भारत का सवाल हैसचदेव ने कहा कि नई दिल्ली संयुक्त राष्ट्र में बाहर से नहीं बल्कि अंदर से सुधार देखना चाहेगी. उन्होंने कहा, "लेकिन साथ ही, भारत खुश होगा, क्योंकि अभी तक सुरंग के अंत में कोई रोशनी नहीं दिख रही है.भारत संयुक्त राष्ट्र में बदलाव का स्वागत करेगा, लेकिन इसे खत्म करने का नहीं."

माइक ली की वेबसाइट पर पोस्टिंग में लिखा है, "डीफंड एक्ट की शुरुआत अमेरिकी करदाताओं की कीमत पर यूएन द्वारा वर्षों से अनियंत्रित नौकरशाही विस्तार और वित्तीय दुरुपयोग के जवाब में की गई है. सीनेटर ली का कानून वित्तीय जिम्मेदारी और आत्मनिर्णय के आदर्शों को बनाए रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो संयुक्त राज्य अमेरिका की नींव हैं."

संक्षेप में कहें तो, संयुक्त राष्ट्र से अमेरिका के पूरी तरह से बाहर होने से वैश्विक कूटनीति, सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर दूरगामी परिणाम होंगे. हालांकि, यह अलगाववाद के पक्षधर कुछ घरेलू राजनीतिक गुटों को संतुष्ट कर सकता है, लेकिन इससे विश्व मंच पर अमेरिका का प्रभाव कमजोर पड़ सकता है, सुरक्षा जोखिम पैदा हो सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बाधित हो सकता है.

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