हल्द्वानीः उत्तराखंड के हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र (Haldwani Forest Research Center) के पौधे अब दिल्ली की आबोहवा को ठीक करेंगे. प्रदूषण की समस्या से घिरी राजधानी दिल्ली की आबोहवा काफी दूषित हो चुकी है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिमांड पर रविवार को हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र से 50 से अधिक प्रजातियों के 3500 से अधिक पौधे दिल्ली भेजे गए.
वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि लालकुआं रिसर्च सेंटर और हल्द्वानी रिसर्च सेंटर से दिल्ली यूनिवर्सिटी के लिए 3500 से अधिक पौधे भेजे गए हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने इस पौधों की डिमांड की है. जहां विभाग द्वारा उचित मूल्य पर पौधों को उपलब्ध कराया गया है. उन्होंने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी द्वारा बायो डायवर्सिटी पार्क (Bio Diversity Park) तैयार किया जा रहा है, जिसके लिए पौधे की डिमांड आई है.
उन्होंने बताया कि डिमांड के मुताबिक 50 से अधिक प्रजातियों के पौधे भेजे गए हैं. यह पौधे बोंटा पार्क, सिविल लाइन, राउंड हिल्स पार्क में लगाए जाएंगे. इसमें फाइकस प्रजाति के अलावा हरड़, बेहड़ा, आंवला, कदंब, सिंदूरी, बनियाला, रोहिणी, बरगद, पीपल, पाखड़, जामुन, चमरोड़, चंदन, तिमला, फालसा व बेल आदि विभिन्न प्रजाति के पौधे शामिल हैं.
मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि पूर्व में भी डिमांड के अनुसार दिल्ली को करीब एक लाख से अधिक पौधे वन अनुसंधान केंद्र से भेजे जा चुके हैं. पूर्व में भेजे गए पौधों का परिणाम बेहतर रहा है. वन अनुसंधान केंद्र की नर्सरी में तैयार पौधों की डिमांड देशभर में है. उन्होंने बताया कि तिमला, फालसा एवं बेल ऑक्सीजन के लिहाज से अधिक उपयोगी हैं. इसके अलावा अन्य पौधे ऑक्सीजन के अलावा औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं. इन पेड़ों की अन्य जगह पर खूब डिमांड है.
फाइकस प्रजाति के पेड़: विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर ज्यादा से ज्यादा फाइकस प्रजाति के पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड गैस सबसे ज्यादा मात्रा में ग्रहण करते हैं. जबकि सबसे ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ने का काम करते हैं. इसी तरफ पर्यावरण को शुद्ध करने में फाइकस प्रजाति के एरेका पाम, पीपल, बरगद जैसे पौधे शामिल हैं.
अशोक का पेड़ः अशोक का पेड़ न सिर्फ ऑक्सीजन उत्पादित करता है बल्कि इसके फूल पर्यावरण को सुंगधित रखते हैं और उसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं. यह एक छोटा सा पेड़ होता है, जिसकी जड़ एकदम सीधी होती है.
अर्जुन का पेड़ः अर्जुन के पेड़ के बारे में कहते हैं कि यह हमेशा हरा-भरा रहता है. इसके बहुत से आर्युवेदिक फायदे हैं. इस पेड़ का धार्मिक महत्व भी बहुत है और कहते हैं कि ये माता सीता का पसंदीदा पेड़ था. हवा से कार्बन डाइऑक्साइड और दूषित गैसों को सोख कर उन्हें ऑक्सीजन में बदल देता है.