कालाढूंगीः नैनीताल जिले के कालाढूंगी की रामलीला का अपना एक स्वर्णिम इतिहास रहा है. इस रामलीला को 125 साल हो गए हैं. यहां की रामलीला मुख्यतः रामचरित मानस पर आधारित है. बदलते दौर के साथ रामलीला के मंचन में कई बदलाव हुए हैं.
उत्तराखंड के कुमाऊं की रामलीला का विशेष महत्व है. कुमाऊं में रामलीला मंचन की परंपरा का इतिहास 160 साल से अधिक पुराना है. जबकि, कालाढूंगी रामलीला कमेटी (Kaladhungi Ramlila Committee) बीते 125 सालों से रामलीला करती (125 years old history of Ramlila in Kaladhungi) आ रही है, जो आज भी जारी है. पहले कुमाऊं की कुछ गिनी चुनी रामलीलाओं में शामिल इस रामलीला को देखने के लिए दूर दराज से लोग आते थे. यह रामलीला उस जमाने से चली आ रही है, जब गांवों में सड़कें और बिजली नहीं हुआ करती थी.
ये भी पढ़ेंः 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' थीम पर अल्मोड़ा में रामलीला का मंचन, राम से रावण तक हर किरदार निभाएंगी महिलाएं
रामलीला को देखने के लिए ज्यादातर लोग मीलों पैदल तो कुछ बैलगाड़ियों से कालाढूंगी पहुंचते थे. कालाढूंगी के 81 वर्षीय स्थानीय बुजुर्ग जीवन लाल वर्मा बताते हैं कि करीब सात दशक पहले रामलीला का मंचन (Kaladhungi Ramlila Staged) रात को मशाल, लालटेन, पैट्रोमैक्स और चीड़ के छिलकों (राल युक्त लकड़ी) की रोशनी में किया जाता था. जनता भी काफी उत्सुकता और धार्मिक भावना से रामलीला का लुत्फ उठाते थे, लेकिन आधुनिकता के साथ रामलीला के मंचन में भी बदलाव देखने को मिला.