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कोरोना: इस साल फिकी पड़ी विश्व गौरेया दिवस की धूम, गुरुकुल कांगड़ी में नहीं होगा कार्यक्रम

विश्व गौरेया दिवस गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में हर साल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन इस साल देश में तेजी से पैर पसार रहे कोरोना वायरस के चलते नहीं मनाया जाएगा.

haridwar
विश्व गौरेया दिवस
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Published : Mar 20, 2020, 7:54 AM IST

हरिद्वार: गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में हर साल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला गौरेया दिवस इस साल कोरोना की वजह से नहीं मनाया जाएगा. 'विश्व गौरैया दिवस' सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाने वाला महत्त्वपूर्ण दिवस है. यह दिवस विलुप्त होते गौरैया पक्षी से जुड़ा है और हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है.

विश्व गौरेया दिवस

पढ़ें- कोरोना का खौफः RTO में 31 मार्च तक होंगे सिर्फ जरूरी काम

जंतु विज्ञान के प्रोफेसर और पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट के अनुसार गौरैया दिवस 2006 के बाद ही मनाया जाना शुरू हुआ है. क्योंकि शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट की इमारतें वे औद्योगिक नगरी की स्थापना के चलते गौरैया की प्रजाति लुप्त होती जा रही है. जिस के बचाव के लिए गौरेया दिवस की शुरूआत की गई थी. विदेशों में भी इस प्रजाति के लुप्त होने पर कई सेमिनार हो चुके हैं, जिसमें वे स्वयं भाग ले चुके हैं.

प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि उन्होंने गौरैया की विलुप्त होती प्रजाति के बचाव के लिए कई प्रयास किए हैं, उन्होंने विश्वविद्यालय की तरफ से ग्रामीण क्षेत्रों में 15 हजार घोसले वितरित किए हैं. जिससे गौरैया इन घोसलों में अपना बसेरा बना सकें. साथ ही उन्होंने एक छात्र की पीएचडी खास इसी पर कराई है.

हरिद्वार: गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में हर साल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला गौरेया दिवस इस साल कोरोना की वजह से नहीं मनाया जाएगा. 'विश्व गौरैया दिवस' सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाने वाला महत्त्वपूर्ण दिवस है. यह दिवस विलुप्त होते गौरैया पक्षी से जुड़ा है और हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है.

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जंतु विज्ञान के प्रोफेसर और पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट के अनुसार गौरैया दिवस 2006 के बाद ही मनाया जाना शुरू हुआ है. क्योंकि शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट की इमारतें वे औद्योगिक नगरी की स्थापना के चलते गौरैया की प्रजाति लुप्त होती जा रही है. जिस के बचाव के लिए गौरेया दिवस की शुरूआत की गई थी. विदेशों में भी इस प्रजाति के लुप्त होने पर कई सेमिनार हो चुके हैं, जिसमें वे स्वयं भाग ले चुके हैं.

प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि उन्होंने गौरैया की विलुप्त होती प्रजाति के बचाव के लिए कई प्रयास किए हैं, उन्होंने विश्वविद्यालय की तरफ से ग्रामीण क्षेत्रों में 15 हजार घोसले वितरित किए हैं. जिससे गौरैया इन घोसलों में अपना बसेरा बना सकें. साथ ही उन्होंने एक छात्र की पीएचडी खास इसी पर कराई है.

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