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रमजान के पाक महीने में दी जाती है जकात, जानिए क्यों होती है इतनी खास - Zakat

ईद की नमाज से पहले जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है. माहे रमजान में रोजा, नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात देने का भी बड़ा महत्व है. जकात में साल भर की कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है.

ईद की नमाज से पहले जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान का होतो है फर्ज.
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Published : May 31, 2019, 1:52 PM IST

Updated : May 31, 2019, 4:56 PM IST

रुड़की: इस्लाम मजहब की बुनियाद 5 अरकान कलमा, नमाज, रोजा, हज और जकात पर टिकी है. रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है. माहे रमजान में रोजा, नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात देने का भी बड़ा महत्व है. जकात में साल भर की कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है. यही कारण है कि जकात साहिबे निशात मुस्लमानों पर फर्ज है.

जानकारी देते मुस्लिम धर्मगुरु अल्हाज कारी शमीम अहमद.

बता दें कि रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है. वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस साल रमजान का मुकद्दस महीना 7 मई से शुरू हुआ था. रमजान को इबादत का महीना भी कहा जाता है. रमजान का महीना वो महीना है जिसमें खुदा ने पैगंबर मोहम्मद के जरिए कुरान को इंसानों के लिए उतारा था. यही वजह है कि रमजान के महीने में कुरान की तिलावत करने का अलग ही महत्व है.

पढ़ें- उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से है फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, ये है खासियत

कहा जाता है कि रमजान का पाक महीना गरीबों का हक अदा करने का महीना होता है. इस महीने में गरीबों को खैरात, जकात और सदका दिया जाता है. मानयता है कि रमजान के इस पाक महीने में नेकी करने से 70 गुणा सवाब यानी पुण्य मिलता है और जो मुस्लमान अल्लाह की रजा में जकात नहीं देता वो गुनहगारों में शुमार हो जाता है.

मुस्लिम उलेमाओं के मुताबिक, अगर परिवार में पांच सदस्य हैं और सभी नौकरी या किसी भी जरिए से पैसा कमाते हैं. तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फर्ज है. उन्होंने बताया कि जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है, जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होते.

उलेमा बताते हैं कि अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है. गरीब भी अपनी ईद मना सके इसलिए जकात दी जाती है. उन्होंने बताया की अमीरी गरीबी के फासले को कम करने के लिए जकात का हुक्म दिया गया है. जकात सामाजिक समानता का बेहतरीन जरिया है.

रुड़की: इस्लाम मजहब की बुनियाद 5 अरकान कलमा, नमाज, रोजा, हज और जकात पर टिकी है. रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है. माहे रमजान में रोजा, नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात देने का भी बड़ा महत्व है. जकात में साल भर की कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है. यही कारण है कि जकात साहिबे निशात मुस्लमानों पर फर्ज है.

जानकारी देते मुस्लिम धर्मगुरु अल्हाज कारी शमीम अहमद.

बता दें कि रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है. वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस साल रमजान का मुकद्दस महीना 7 मई से शुरू हुआ था. रमजान को इबादत का महीना भी कहा जाता है. रमजान का महीना वो महीना है जिसमें खुदा ने पैगंबर मोहम्मद के जरिए कुरान को इंसानों के लिए उतारा था. यही वजह है कि रमजान के महीने में कुरान की तिलावत करने का अलग ही महत्व है.

पढ़ें- उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से है फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, ये है खासियत

कहा जाता है कि रमजान का पाक महीना गरीबों का हक अदा करने का महीना होता है. इस महीने में गरीबों को खैरात, जकात और सदका दिया जाता है. मानयता है कि रमजान के इस पाक महीने में नेकी करने से 70 गुणा सवाब यानी पुण्य मिलता है और जो मुस्लमान अल्लाह की रजा में जकात नहीं देता वो गुनहगारों में शुमार हो जाता है.

मुस्लिम उलेमाओं के मुताबिक, अगर परिवार में पांच सदस्य हैं और सभी नौकरी या किसी भी जरिए से पैसा कमाते हैं. तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फर्ज है. उन्होंने बताया कि जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है, जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होते.

उलेमा बताते हैं कि अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है. गरीब भी अपनी ईद मना सके इसलिए जकात दी जाती है. उन्होंने बताया की अमीरी गरीबी के फासले को कम करने के लिए जकात का हुक्म दिया गया है. जकात सामाजिक समानता का बेहतरीन जरिया है.

Intro:ज़कात का महत्व


Body:माहे मुकद्दस रमजान शरीफ में रोजा नमाज और कुरआन पढ़ने के साथ-साथ जकात देने का भी बहुत महत्व है इस्लाम के 5 अरकान (स्तंभ) मैं से एक है इस्लाम मजहब की बुनियाद 5 अरकानों पर टिकी है कलमा शहादत नमाज रोजा हज और जकात रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है साथ में साल भर की कमाई का हिसाब लगाकर दाई प्रतिशत हिस्सा ज़कात में दिया जाता है साहिबे निशात मुस्लिमों पर ज़कात फर्ज है और ज़कात ग़रीब,यतीम,मिस्कीन,विधवाओं,और जरुरतमंद को दी जाती है।

VO-1- कहा जाता है कि रमजान का यह पाक महीना गरीबों का हक अदा करने का महीना होता है इस महीने में गरीबों को खैरात जकात और सदका दिया जाता है बताया जाता है कि जो भी मोमिन माल-ए- हैसियत होता है वह अपने माल की जकात मुख्य तौर से इसी महीने में गरीबों को देता है मानयता है कि रमजान के इस पाक महीने में नेकी करने से 70 गुणा सवाब यानी पूण्य मिलता है कहते हैं यह महीना अमीर और गरीब के बीच के सब फासलों को खत्म कर उनमें एकता पैदा करता है और उन्हें एक समान बनाता है।

VO-2 - रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है इस साल रमजान का मुकद्दस महीना 7 मई से शुरु हुआ था रमजान को इबादत का महीना भी कहा जाता है इसी महीने में पैगंबर मोहम्मद के जरिए कुरान भी उतारा गया था रमजान में रोजा नमाज और कुरआन की तिलावत कुरआन पढ़ने के साथ ज़कात देने का भी बहुत बड़ा महत्व है जकात इस्लाम के पांच स्तम्भों में से एक है इस्लाम के मुताबिक़ जिस मुसलमान के पास भी इतना पैसा या संपत्ति हो कि वह उसके अपने खर्च पूरे हो रहे हो और वो किसी की मदद करने की स्तिथि मैं हो तो वह ज़कात दान करने का पात्र बन जाता है रमजान में जकात ग़रीब जरुरतमंद को ही दी जाती है।

VO- 3- इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरुरी बताया गया है आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है उसका ढाई फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरुरतमंद को दिया जाता है जिसे जकात कहते हैं यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद सो रुपए बचे हैं तो उसमें से ढाई रूपए किसी गरीब को देना जरुरी होता है youtube जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है लेकिन ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात निकालते हैं मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं और उसमें से ढाई फीसदी दान करते हैं असल में ईद से पहले यानी रमजान में ज़कात अदा करने की परंपरा है यह जकात ख़ासकर गरीबों विधवा महिलाओं अनाथ बच्चों या किसी बीमार व कमजोर व्यक्ति को दी जाती है ताकि उसकी जरुरत भी पूरी हो सके उलेमाओं के मुताबिक महिलाओं या परुषों के पास अगर ज्वेलरी के रूप में भी कोई संपत्ति होती है तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है लेकिन जो लोग हैसियतमंद होते हुए भी अल्लाह की रज़ा में जकात नहीं देते हैं वह गुनहगारों में शुमार हो जाते हैं।

VO- 4 - मुस्लिम उलेमाओं के मुताबिक अगर परिवार में पांच सदस्य हैं और वह सभी नौकरी या किसी भी जरिए पैसा कमाते हैं तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फ़र्ज़ माना जाता है मसलन अगर कोई बेटा या बेटी भी नौकरी या कारोबार के जरिए पैसा कमाते हैं तो सिर्फ उनके मां बाप अपनी कमाई पर ज़कात देकर नहीं बच सकते हैं बल्कि कमाने वाले बेटे या बेटी पर भी जकात देना फ़र्ज़ होता है जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होती है और वही मालौ दौलत उसके लिए अज़ाब बनता है उलेमा बताते हैं कि अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार ग़रीब और अमीर सभी के लिए बनाया है गरीब भी अपनी ईद मना सके इसलिए जकात दी जाती है उन्होंने बताया की अमीरी गरीबी के फासले को कम करने के लिए जकात का हुक्म दिया गया है जकात सामाजिक समानता का बेहतरीन ज़रिया है उन्होंने कहा कि माल की पाकीज़गी के लिए जकात देना लाजिम है।

बाइट - अल्हाज़ कारी शमीम अहमद (मुस्लिम धर्मगुरु)


Conclusion:
Last Updated : May 31, 2019, 4:56 PM IST
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