ETV Bharat / state

यहां दूर होता है सर्प दोष, हरिद्वार में तक्षक नाग के मंदिर आइए

author img

By

Published : Sep 3, 2022, 9:38 AM IST

Updated : Sep 3, 2022, 11:03 AM IST

हरिद्वार के ज्वालापुर में नाग देवता तक्षक (Haridwar Nag Devta Takshak Temple) का हजारों साल पुराना मंदिर है. मंदिर की मान्यता है कि यहां साक्षात नाग देवता तक्षक विराजमान हैं. लेकिन खास बात ये है कि यहां घूमने वाले सांपों ने आज तक किसी को डसा नहीं है. रविवार के दिन मंदिर में विशेष पूजा का महत्व है.

Etv Bharat
Etv Bharat

हरिद्वारः गंगा नदी किनारे हरिद्वार में वैसे तो देवी देवताओं के कई प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर विद्यमान हैं. लेकिन हरिद्वार के ज्वालापुर में नाग देवता तक्षक (Nag Devta Takshak Temple) का ऐसा हजारों साल पुराना मंदिर है, जहां नाग देवता (Takshak god of serpents) साक्षात विराजमान रहते हैं. इतना ही नहीं, आज तक का इतिहास है कि यहां पर जगह जगह घूमने वाले सांपों ने किसी को डसा नहीं है. बीते कई 100 सालों से न केवल यहां के बल्कि, दूर-दूर के लोग मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं.

हरिद्वार का ज्वालापुर क्षेत्र वैसे तो यहां के पंडा समाज के लिए जाना जाता है. लेकिन ज्वालापुर के बाहरी इलाके में स्थित हजारों साल पुराना तक्षक देवता का मंदिर है. कहा जाता है कि नागों के देवता तक्षक इसी इलाके में रहकर लोगों की रक्षा करते हैं. इस स्थान की महत्ता महाभारत काल से बताई जाती है. कहा जाता है तभी से यह स्थान नागराज तक्षक का स्थान है. यहां स्थित नाग देवता का मंदिर की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस समय नवरत्न संस्थानों में शुमार औद्योगिक नगरी भेल की स्थापना हो रही थी, उस समय नाग देवता का यह मंदिर भी भेल के अधीन आ रहा था.

नाग देवता तक्षक मंदिर की महिमा

भेल के अधिकारी को नागराज तक्षक ने स्वप्न में दर्शन दिए और सख्त हिदायत दी कि यदि उनके मंदिर क्षेत्र में एक भी फावड़ा चला तो वह इस निर्माणाधीन इकाई को तहस-नहस कर देंगे. इसके बाद भारत सरकार ने भी इस मंदिर क्षेत्र को भेल कैंपस से अलग करने का बड़ा निर्णय लिया. आज भी भले यह भूमि भेल इकाई के अंतर्गत आती हो लेकिन, यहां पर किसी तरह का कोई निर्माण कार्य नहीं किया गया है. बताया जाता है कि प्रत्येक पूर्णिमा की रात को यहां पर नाग देवता कभी जोड़े के साथ तो कभी अकेले दर्शन देने आते हैं.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड का ये मंदिर दिलाता है राहु दोष से मुक्ति

महाभारत काल का है यह स्थान: बागों वाला देवता का यह स्थान महाभारत का बताया जाता है. तक्षक नाग का यह वर्णन परीक्षित काल का है. जब राजा युधिष्ठिर परीक्षित को संपूर्ण राज पाट सौंपकर चले गए तब परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया. तभी से तक्षक नाग अपने स्वरूप में इसी स्थान पर विद्यमान हैं.

भेल अधिकारी को स्वप्न में दिए थे दर्शन: 1962 के दौरान जब भेल रानीपुर इकाई की स्थापना हो रही थी, उस समय भेल के आला अधिकारियों को नाग देवता तक्षक ने स्वप्न में दर्शन दिए. इस दर्शन के दौरान तक्षक काफी क्रोध में थे और उन्होंने अधिकारियों को साफ कहा कि यदि इस स्थान पर एक भी कुदाल चली तो भेल का सर्वनाश कर दूंगा. इसके बाद यहां अधिकारी आए और इस स्थान में भेल ने कोई निर्माण कार्य नहीं कराया.

सर्प दोष का होता है निवारण: आम तौर पर कालसर्प दोष को लेकर लोग काफी भयभीत रहते हैं. लोगों के इसी भय का फायदा उठाकर कुछ लोग इसके निवारण की बात करते हैं. लेकिन कहा जाता है कि जिनकी जन्मपत्री के अंदर कालसर्प नहीं बल्कि सर्प दोष (संतान नहीं है, घर में गृह क्लेश) होता है तो यहां पर आकर मान्यता बोलकर जाइए. जब मान्यता पूरी हो तो यहां पर दूध, गंगाजल चढ़ाने के साथ मनुष्य को भोजन कराइए तो आपकी मनोकामना का संकल्प पूरा होगा.
ये भी पढ़ेंः देवभूमि के इस मंदिर से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा, महादेव की रही है तपोभूमि

पूर्णिमा की रात होते हैं दर्शन: कहा जाता है कि इस बागों वाले देवता के क्षेत्र में प्रत्येक पूर्णिमा को यदि कोई जाता है तो उसे नागों के जोड़े के दर्शन होते हैं. बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सिर्फ नाग नजर आता है या फिर नागिन.

किसी को नहीं डसते सर्प: सैकड़ों साल पुराने इस नाग देवता के मंदिर में भले अब सांप कम नजर आते हैं, लेकिन एक समय था जब यहां पर सांप ही सांप नजर आते थे. इस क्षेत्र का इतिहास रहा है कि यहां पर आज तक कभी किसी सांप ने किसी भी मनुष्य को नहीं डसा है. इतना ही नहीं, यहां रहने वाले पुजारी के शरीर को छूकर अक्सर सांप बिना कुछ किए निकल जाते हैं. इस स्थान पर वह व्यक्ति प्रवेश ही नहीं कर सकता, जिसके मन में पाप है.

देवताओं का निवास स्थानः घने बाग के बीच स्थित बागों वाले देवता के मंदिर में स्थानीय लोगों की इतनी आस्था और श्रद्धा है कि यहां पर न केवल ब्राह्मण बल्कि प्रत्येक जाति के लोगों का प्रवेश खुला हुआ है. यहां पर किसी भी जाति का कोई भी व्यक्ति आकर देवता की पूजा कर सकता है. यही कारण है कि इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों द्वारा अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार माढ़ी (घरों के रूप में मंदिर) की स्थापना की गई है.

सात दिन तक भागवत सुनने का विशेष महत्व: इस इलाके की विशेष मान्यता यह है जो भी व्यक्ति 7 दिन तक यहां पर भागवत कथा का आयोजन कराता है और भागवत में वर्णित तक्षक नाग के वर्णन को बैठकर सुनता है तो उसके मन की प्रत्येक मनोकामना ना केवल पूर्ण होती है, बल्कि किसी भी तरह के घर में चल रहे क्लेश से भी मुक्ति मिलती है.
ये भी पढ़ेंः हनुमान जी के इस मंदिर में 2025 तक हो चुकी है भंडारे की एडवांस बुकिंग

नाग हैं प्रत्यक्ष देवता: इस स्थान पर नाग देवता प्रत्यक्ष देवता के रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं. ग्रंथों में भी लिखा हुआ है कि प्रत्यक्ष देवताओं में अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, गंगा के साथ सर्प की पूजा का भी वही फल है जो भगवान विष्णु की पूजा का है. यहां पर तक्षक सर्प स्वयं विद्यमान हैं और उनकी पूजा का भी फल वही है, जो भगवान विष्णु की पूजा का है.

रविवार को पूजा का है महत्व: वैसे तो इस स्थान पर अक्सर दूर-दूर से लोग आया करते हैं लेकिन रविवार के दिन यहां पर पूजा का विशेष महत्व है. यही कारण है कि यहां पर रविवार के दिन अक्सर भंडारों का आयोजन होता है और लोग सर्व देवता की पूजा कर अपनी मनोकामना की पूर्ति करते हैं.

कैसे पहुंचें इस स्थान तक: तक्षक सर्प का यह स्थान ज्वालापुर क्षेत्र के बागों वाले देवता के नाम से मशहूर है. यदि आप यहां अपने वाहन से आना चाहते हैं तो आप औद्योगिक नगरी भेल के बाउंड्री गेट पर पहुंचें. इसके सामने से ज्वालापुर को जाने वाले रास्ते पर ही सीधे हाथ पर एक कच्चा रास्ता बागों वाले देवता तक जाता है. यदि आप बस या ट्रेन से हरिद्वार आते हैं तो आपको ऑटो या रिक्शा द्वारा यहां पहुंचा दिया जाएगा. रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से इस स्थान की दूरी करीब सात किलोमीटर है.

कौन थे तक्षक नाग: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, तक्षक नागों में से एक नाग जो कश्यप ऋषि के पुत्र थे और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुए थे श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को इन्होंने ही काटा था. इसी कारण राजा जन्मेजय इनसे बहुत क्रोधित हुए थे. उन्होंने संसार भर के नागों का नाश करने के लिये नागयज्ञ आरंभ किया था. तक्षक इससे डरकर इंद्र की शरण में चले गये. इसपर जन्मेजय ने अपने ऋषियों को आज्ञा दी कि इंद्र यदि तक्षक को न छोड़ें, तो उन्हें भी तक्षक के साथ खींच कर भस्म कर दें. ऋत्विकों के मंत्र पढ़ने पर तक्षक के साथ इंद्र भी खिंचने लगे. तब इंद्र ने डरकर तक्षक को छोड़ दिया. जब तक्षक खिंचकर अग्निकुंड के समीप पहुंचे, तब आस्तीक ने आकर जन्मेजय से प्रार्थना की और तक्षक के प्राण बच गए.

हरिद्वारः गंगा नदी किनारे हरिद्वार में वैसे तो देवी देवताओं के कई प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर विद्यमान हैं. लेकिन हरिद्वार के ज्वालापुर में नाग देवता तक्षक (Nag Devta Takshak Temple) का ऐसा हजारों साल पुराना मंदिर है, जहां नाग देवता (Takshak god of serpents) साक्षात विराजमान रहते हैं. इतना ही नहीं, आज तक का इतिहास है कि यहां पर जगह जगह घूमने वाले सांपों ने किसी को डसा नहीं है. बीते कई 100 सालों से न केवल यहां के बल्कि, दूर-दूर के लोग मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं.

हरिद्वार का ज्वालापुर क्षेत्र वैसे तो यहां के पंडा समाज के लिए जाना जाता है. लेकिन ज्वालापुर के बाहरी इलाके में स्थित हजारों साल पुराना तक्षक देवता का मंदिर है. कहा जाता है कि नागों के देवता तक्षक इसी इलाके में रहकर लोगों की रक्षा करते हैं. इस स्थान की महत्ता महाभारत काल से बताई जाती है. कहा जाता है तभी से यह स्थान नागराज तक्षक का स्थान है. यहां स्थित नाग देवता का मंदिर की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस समय नवरत्न संस्थानों में शुमार औद्योगिक नगरी भेल की स्थापना हो रही थी, उस समय नाग देवता का यह मंदिर भी भेल के अधीन आ रहा था.

नाग देवता तक्षक मंदिर की महिमा

भेल के अधिकारी को नागराज तक्षक ने स्वप्न में दर्शन दिए और सख्त हिदायत दी कि यदि उनके मंदिर क्षेत्र में एक भी फावड़ा चला तो वह इस निर्माणाधीन इकाई को तहस-नहस कर देंगे. इसके बाद भारत सरकार ने भी इस मंदिर क्षेत्र को भेल कैंपस से अलग करने का बड़ा निर्णय लिया. आज भी भले यह भूमि भेल इकाई के अंतर्गत आती हो लेकिन, यहां पर किसी तरह का कोई निर्माण कार्य नहीं किया गया है. बताया जाता है कि प्रत्येक पूर्णिमा की रात को यहां पर नाग देवता कभी जोड़े के साथ तो कभी अकेले दर्शन देने आते हैं.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड का ये मंदिर दिलाता है राहु दोष से मुक्ति

महाभारत काल का है यह स्थान: बागों वाला देवता का यह स्थान महाभारत का बताया जाता है. तक्षक नाग का यह वर्णन परीक्षित काल का है. जब राजा युधिष्ठिर परीक्षित को संपूर्ण राज पाट सौंपकर चले गए तब परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया. तभी से तक्षक नाग अपने स्वरूप में इसी स्थान पर विद्यमान हैं.

भेल अधिकारी को स्वप्न में दिए थे दर्शन: 1962 के दौरान जब भेल रानीपुर इकाई की स्थापना हो रही थी, उस समय भेल के आला अधिकारियों को नाग देवता तक्षक ने स्वप्न में दर्शन दिए. इस दर्शन के दौरान तक्षक काफी क्रोध में थे और उन्होंने अधिकारियों को साफ कहा कि यदि इस स्थान पर एक भी कुदाल चली तो भेल का सर्वनाश कर दूंगा. इसके बाद यहां अधिकारी आए और इस स्थान में भेल ने कोई निर्माण कार्य नहीं कराया.

सर्प दोष का होता है निवारण: आम तौर पर कालसर्प दोष को लेकर लोग काफी भयभीत रहते हैं. लोगों के इसी भय का फायदा उठाकर कुछ लोग इसके निवारण की बात करते हैं. लेकिन कहा जाता है कि जिनकी जन्मपत्री के अंदर कालसर्प नहीं बल्कि सर्प दोष (संतान नहीं है, घर में गृह क्लेश) होता है तो यहां पर आकर मान्यता बोलकर जाइए. जब मान्यता पूरी हो तो यहां पर दूध, गंगाजल चढ़ाने के साथ मनुष्य को भोजन कराइए तो आपकी मनोकामना का संकल्प पूरा होगा.
ये भी पढ़ेंः देवभूमि के इस मंदिर से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा, महादेव की रही है तपोभूमि

पूर्णिमा की रात होते हैं दर्शन: कहा जाता है कि इस बागों वाले देवता के क्षेत्र में प्रत्येक पूर्णिमा को यदि कोई जाता है तो उसे नागों के जोड़े के दर्शन होते हैं. बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सिर्फ नाग नजर आता है या फिर नागिन.

किसी को नहीं डसते सर्प: सैकड़ों साल पुराने इस नाग देवता के मंदिर में भले अब सांप कम नजर आते हैं, लेकिन एक समय था जब यहां पर सांप ही सांप नजर आते थे. इस क्षेत्र का इतिहास रहा है कि यहां पर आज तक कभी किसी सांप ने किसी भी मनुष्य को नहीं डसा है. इतना ही नहीं, यहां रहने वाले पुजारी के शरीर को छूकर अक्सर सांप बिना कुछ किए निकल जाते हैं. इस स्थान पर वह व्यक्ति प्रवेश ही नहीं कर सकता, जिसके मन में पाप है.

देवताओं का निवास स्थानः घने बाग के बीच स्थित बागों वाले देवता के मंदिर में स्थानीय लोगों की इतनी आस्था और श्रद्धा है कि यहां पर न केवल ब्राह्मण बल्कि प्रत्येक जाति के लोगों का प्रवेश खुला हुआ है. यहां पर किसी भी जाति का कोई भी व्यक्ति आकर देवता की पूजा कर सकता है. यही कारण है कि इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों द्वारा अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार माढ़ी (घरों के रूप में मंदिर) की स्थापना की गई है.

सात दिन तक भागवत सुनने का विशेष महत्व: इस इलाके की विशेष मान्यता यह है जो भी व्यक्ति 7 दिन तक यहां पर भागवत कथा का आयोजन कराता है और भागवत में वर्णित तक्षक नाग के वर्णन को बैठकर सुनता है तो उसके मन की प्रत्येक मनोकामना ना केवल पूर्ण होती है, बल्कि किसी भी तरह के घर में चल रहे क्लेश से भी मुक्ति मिलती है.
ये भी पढ़ेंः हनुमान जी के इस मंदिर में 2025 तक हो चुकी है भंडारे की एडवांस बुकिंग

नाग हैं प्रत्यक्ष देवता: इस स्थान पर नाग देवता प्रत्यक्ष देवता के रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं. ग्रंथों में भी लिखा हुआ है कि प्रत्यक्ष देवताओं में अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, गंगा के साथ सर्प की पूजा का भी वही फल है जो भगवान विष्णु की पूजा का है. यहां पर तक्षक सर्प स्वयं विद्यमान हैं और उनकी पूजा का भी फल वही है, जो भगवान विष्णु की पूजा का है.

रविवार को पूजा का है महत्व: वैसे तो इस स्थान पर अक्सर दूर-दूर से लोग आया करते हैं लेकिन रविवार के दिन यहां पर पूजा का विशेष महत्व है. यही कारण है कि यहां पर रविवार के दिन अक्सर भंडारों का आयोजन होता है और लोग सर्व देवता की पूजा कर अपनी मनोकामना की पूर्ति करते हैं.

कैसे पहुंचें इस स्थान तक: तक्षक सर्प का यह स्थान ज्वालापुर क्षेत्र के बागों वाले देवता के नाम से मशहूर है. यदि आप यहां अपने वाहन से आना चाहते हैं तो आप औद्योगिक नगरी भेल के बाउंड्री गेट पर पहुंचें. इसके सामने से ज्वालापुर को जाने वाले रास्ते पर ही सीधे हाथ पर एक कच्चा रास्ता बागों वाले देवता तक जाता है. यदि आप बस या ट्रेन से हरिद्वार आते हैं तो आपको ऑटो या रिक्शा द्वारा यहां पहुंचा दिया जाएगा. रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से इस स्थान की दूरी करीब सात किलोमीटर है.

कौन थे तक्षक नाग: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, तक्षक नागों में से एक नाग जो कश्यप ऋषि के पुत्र थे और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुए थे श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को इन्होंने ही काटा था. इसी कारण राजा जन्मेजय इनसे बहुत क्रोधित हुए थे. उन्होंने संसार भर के नागों का नाश करने के लिये नागयज्ञ आरंभ किया था. तक्षक इससे डरकर इंद्र की शरण में चले गये. इसपर जन्मेजय ने अपने ऋषियों को आज्ञा दी कि इंद्र यदि तक्षक को न छोड़ें, तो उन्हें भी तक्षक के साथ खींच कर भस्म कर दें. ऋत्विकों के मंत्र पढ़ने पर तक्षक के साथ इंद्र भी खिंचने लगे. तब इंद्र ने डरकर तक्षक को छोड़ दिया. जब तक्षक खिंचकर अग्निकुंड के समीप पहुंचे, तब आस्तीक ने आकर जन्मेजय से प्रार्थना की और तक्षक के प्राण बच गए.

Last Updated : Sep 3, 2022, 11:03 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.