हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार से भगवान शंकर का गहरा नाता रहा है. दक्ष नगरी कनखल भगवान शंकर की ससुराल है. यही कारण है कि हरिद्वार में कई ऐसे पौराणिक महत्व के स्थान हैं, जिनसे भोलेनाथ का गहरा नाता माना जाता है. इनमें से ही एक प्रसिद्ध स्थान कुंडी सोटा या कुंडी सोटेश्वर महादेव भी है, जो किसी समय घने जंगलों के बीच स्थित हुआ करता था लेकिन अब यह स्थान हाईवे के नजदीक आ गया है.
इस स्थान के बारे में बताया जाता है कि भगवान शंकर की बारात कैलाश से उतर इसी स्थान पर रुकी थी. यहीं पर उनके गणों ने कुंडी सोटा में भांग घोटी थी, जिसके प्रमाण आज भी इस जगह की खुदाई में समय-समय पर सामने आते रहते हैं. बड़ी बात यह है कि यहां पर आज भी जमीन से तरह-तरह के न केवल शिवलिंग बल्कि हजारों साल पुराने ऐसे पाषाण निकल रहे हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि इस स्थान की कोई विशेष महत्ता रही होगी.
कुंडी सोटेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता: ईटीवी भारत आज भोले के भक्तों को शिव शंकर का एक ऐसा स्थान दिखाने जा रहा है, जिसका संबंध शिव एवं सती के विवाह से है. भगवान भोलेनाथ की बारात जब उनके गणों देवी देवताओं के साथ कैलाश से उतरकर हरिद्वार पहुंची. पुराणों के अनुसार बारात सबसे पहले वर्तमान के श्यामपुर क्षेत्र में स्थित उसी स्थान पर रुकी थी, जहां पर आज कुंडी सोटा महादेव का मंदिर स्थित है.
बारात के पहुंचने पर भगवान शंकर के गणों ने कुंडी सोटा में भांग घोटी थी, तभी से इस स्थान का नाम कुंडी सोटा महादेव पड़ा. इस पौराणिक महत्व के स्थान पर बीते कई दशकों से जमीन की खुदाई में ऐसे अवशेष मिलते रहे हैं, जो इसकी पौराणिकता को बताने के लिए काफी हैं. इतना ही नहीं, पुरातत्व विभाग भी इस क्षेत्र में समय-समय पर खुदाई कर कई हजार साल पुराने कुंडी सोटा और तरह-तरह के शिवलिंग आकार के पत्थर व अन्य सामान बरामद कर चुका है.
स्कंद पुराण के अनुसार यहां वह गुफा भी मौजूद है. जहां पर भगवान शंकर ने आराम किया था. हालांकि, अब इसमें काफी परिवर्तन आ गया है. कहा जाता है कि इस क्षेत्र में एक ऐसा वृक्ष भी है, जिस पर आज भी वे भूत प्रेत वास करते हैं, जो भगवान शंकर की बारात में आए थे. लेकिन भांग पीकर इतने मस्त हो गए कि बारात को भूल इसी पेड़ पर रह गए थे. इस पेड़ के आसपास जाने की लोगों को मनाही है. आज भी इस वृक्ष पर रहने वाले भूत पिशाच के लिए भोजन पहुंचाया जाता है. बताया जाता है कि यह भूत पिशाच उस भोजन को आज भी रोजाना ग्रहण करते हैं.
बारात का था पहला पड़ाव: भगवान शंकर जब अपने गणों के साथ माता सती को ब्याहने कैलाश पर्वत से दक्ष नगरी कनखल की ओर चले तो बारात के पड़ाव का पहला स्थान कुंडी सोटा महादेव के मंदिर को ही बताया जाता है. आज मंदिर के प्रवेश द्वार पर जो कुंडी और सोटा स्थित है, यह कुंडी और सोटा सरकारी जांच में कई हजार साल पुराना पाया गया है.
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अभी भी निकल रहे पौराणिक अवशेष: राजाजी टाइगर रिजर्व के घने जंगलों की एक पहाड़ी पर स्थित कुंडी सोटा महादेव मंदिर परिसर में आज ही ऐसे अवशेष समय-समय पर निकल रहे हैं. जो 200-400 साल पुराने नहीं बल्कि हजारों साल पुराने बताए जाते हैं. यहां से विभिन्न आकार की शिवलिंग, नंदी और पाषाण मूर्तियां निकलती रहती हैं.
अम्रकेश्वर है नाम: वर्तमान के समय में कुंडी सोटा महादेव का पौराणिक ग्रंथों में नाम अम्रकेश्वर महादेश है. इस बात का वर्णन पुराणों में भी साफ होता है.
साढ़े पांच हजार पुरानी है पिंडी: कुंडी सोटा महादेव मंदिर में भगवान शंकर की जो पिंडी है, वह हूबहू केदारनाथ में स्थित भगवान शंकर की पिंडी का छोटा रूप है. यहां पर भगवान शंकर लिंग के रूप में नहीं बल्कि पीठ के रूप में पूजे जाते हैं.
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बड़ के पेड़ पर रहते हैं पिशाच: ग्रंथों में लिखा है कि बारात के साथ आए भूत पिशाच यहां पर भांग पीकर इस कदर मस्त हुए कि परिसर में स्थित एक विशाल बड़ के पेड़ पर ही चढ़ गए. उनके सिर पर इस कदर मस्ती चढ़ी कि वहीं पर मदमस्त होकर रह गए. यह भी भूल गए कि भगवान शंकर की बारात दक्ष मंदिर कनखल की ओर प्रस्थान करना है. कहा जाता है तभी से इस पक्ष पर न केवल भूत पिशाच वास करते हैं बल्कि यहां पर रोजाना उनके लिए भोजन भी निकाला जाता है.
बाबा संतराम ने खोजा स्थान: करीब ढाई दशक पहले तक घने जंगलों के बीच स्थित यह स्थान पूरी तरह से बियाबान था. लेकिन गुरुकुल में नौकरी करने वाले बाबा संतराम ने नौकरी छोड़ इस स्थान पर पूजा अर्चना शुरू की और तब से यहीं के होकर रह गए. बीते 25 सालों से भी अधिक से बाबा संत राम ने इस स्थान का कायाकल्प कर दिया है.
जानवर भी करते हैं नमन: इस स्थान सीमा को न केवल देवी देवता और इंसान पूजते हैं बल्कि जानवर भी भगवान भोलेनाथ को नमन करने आते हैं. यहां रहने वाले पुजारी बताते हैं कि यहां कभी हाथियों का बड़ा झुंड जाता है, जो मंदिर के बाहर लगे घंटे को तेज-तेज बजाकर भगवान भोलेनाथ को नमन करता है. लेकिन कभी किसी को इन जानवरों ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया.
आधी रात में बजने लगते हैं घंटे: जंगल में स्थित इस मंदिर में कभी भी आधी रात को मंदिर के घंटे तेज तेज बजने लग जाते हैं. ऐसा नहीं कि यह घंटे हवा या आंधी से हिलते हैं, बल्कि शांत माहौल में भी यहां के घंटे अचानक बजने लगते हैं. यह बताने के लिए काफी है कि इस स्थान में कोई न कोई अद्भुद ताकत है.
सावन फाल्गुन की शिवरात्रि पर आती है भीड़: फाल्गुन और सावन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि पर इस स्थान पर दूर-दूर से लोग पहुंच कर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. हरिद्वार ज्वालापुर कटहल के बहुत से ऐसे लोग हैं, जो रोजाना इस मंदिर में आकर माथा टेकते हैं और भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं.
भोले के आने का दावा: बीते लंबे समय से इस मंदिर में रहकर यहां की सेवा अर्चना कर रहे लोगों का दावा है कि यहां पर स्वयं भगवान भोलेनाथ ने भी अपने दर्शन दिए हैं. इससे पहले कि वह समझ पाते, भगवान अंतर्ध्यान हो गए.
कैसे पहुंचें इस मंदिर तक: कुंडी सोटा महादेव का यह मंदिर श्यामपुर क्षेत्र में स्थित है. अगर आप बिजनौर की तरफ से अपनी गाड़ी से आते हैं, तो बॉर्डर क्रॉस करने के बाद सीधे हाथ पर जंगल में आपको यह मंदिर मिल जाएगा. लेकिन अगर आप बस या ट्रेन से आते हैं, तो आपको वहीं से ऑटो या टैक्सी करनी होगी. ऑटो वाले यहां तक जाने के लिए करीब ₹200 प्रति सवारी जबकि टैक्सी ₹400 प्रति सवारी चार्ज करेगी.