हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में ‘गंगा के अस्तित्व’ शीर्षक पर संतों की एक संगोष्ठी आयोजन किया गया. जिसमें गंगा के वर्तमान और भविष्य की स्थिति पर चर्चा हुई. संगोष्ठी में सभी संतों ने अपने विचार रखे. इस दौरान गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने कहा कि वैदिक संस्कृति को चिरकाल तक जीवंत रखने के लिये गंगा की अविरल धारा का हमेशा प्रवाहित रहना अति आवश्यक है. उन्होंने कुंभ को गंगा का ही पर्याय कहा है.
अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने कहा कि गंगा तट पर ही हरिद्वार का कुंभ आयोजित हो रहा है. साल 2025 में तीर्थराज प्रयाग में भी गंगा की रेती पर ही कुंभ का आयोजन है. गंगा, कुंभ और अन्य पर्वों के साथ भारतीय वैदिक संस्कृति की मूल आधार हैं. गंगा त्रिपथ गामिनी हैं. गंगा ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों को अपने में समाहित किये हैं. ऐसे में गंगा का अविरल और स्वछंद प्रवाहित रहना वैदिक संस्कृति के अस्तित्व के लिये आवश्यक है. गंगा के प्रवाह को बांध बनाकर रोकना स्वयं संकट को आमंत्रित करने जैसा है.
उन्होंने कहा कि हरिद्वार कुंभ के अवसर पर संत-महात्माओं ने आज संगोष्ठी के माध्यम से ‘गंगा के अस्तित्व’ पर चिंतन मनन किया और एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार व संबंधित राज्य सरकारों को सुझाव दिया गया. जिसमें कहा गया है कि हिमालय से गंगा सागर तक गंगा पर बने हुये सभी बांधों को खत्म कर गंगा की अविरल धारा को निर्वाध गति से प्रवाहित होने दिया जाए. साथ ही गंगा में जो भी प्रदूषण हो रहा है, उसे तत्काल रोक लगाई जाए. उन्होंने बताया कि जल्द ही प्रस्ताव की प्रतियां केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को भेज दी जाएगी.