हरिद्वार: शारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Jagatguru Swaroopanand Saraswati) के गोलोक गमन के बाद उत्तराधिकारी को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. द्वारिका पीठ और ज्योतिष पीठ पर उत्तराधिकारियों की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इस घोषणा को लेकर संत समाज सवाल (Question on appointment of Shankaracharya) खड़े कर रहा है.
शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष आनंद स्वरूप ने इस चयन प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि शंकराचार्य के चयन की अपनी एक प्रक्रिया है. जिसका पालन नहीं किया गया. उन्होंने कहा महा मट्ठा मनाए ग्रंथ के अनुसार शंकराचार्य के चयन के लिए वर्तमान के शंकराचार्य की मौजूदगी में चयन किया जाता है. इसके अलावा विद्वत परिषद भी इस प्रक्रिया में शामिल होती है, लेकिन वर्तमान समय में द्वारिका पीठ और ज्योतिष पीठ पर नियुक्त किए गए शंकराचार्य की नियुक्ति इस प्रक्रिया के तहत नहीं की गई है. उन्होंने कहा सनातन धर्म की पताका को बनाए रखने के लिए परंपराओं का निर्वहन बहुत जरूरी है, उन्होंने कहा जो भी शंकराचार्य बने वह पूरे विधि विधान से बने बस हम इतना चाहते हैं.
जानिए कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद: ज्यातिषपीठ के शंकराचार्य बनाए गए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का वाराणसी से गहरा नाता है. किशोरावस्था से ही काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है. इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री भी रहे.
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कौन हैं स्वामी सदानंद सरस्वती: ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रमुख शिष्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती व अविमुक्तेश्वरानंद हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जा सकता है. यह जानकारी शंकराचार्य आश्रम, परमहंसी गंगा क्षेत्र, झोतेश्वर के पंडित सोहन शास्त्री ने दी है. स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ था. पूर्व नाम रमेश अवस्थी था. वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खींचे चले आए.
ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा. सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं.